कसूरी मेथी की खेती कैसे करे

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डाक्टर और वैज्ञानिक कई तरह की बीमारियों के इलाज के लिए भी कसूरी मेथी के इस्तेमाल की सलाह देते हैं. कई औषधीय गुणों से भरपूर इस मेथी का इस्तेमाल पुराने जमाने से ही पेटदर्द के साथसाथ कब्ज दूर करने और बलवर्धक औषधीय के रूप में होता आया है.

मेथी की बहुपयोगी पत्तियां सेहत के लिए फायदेमंद होने के साथसाथ खाने को लजीज बनाने में भी खास भूमिका निभाती हैं. खास तरह की खुशबू और स्वाद की वजह से मेथी का इस्तेमाल सब्जियों, परांठे, खाखरा, नान और कई तरह के खानों में होता है.

नागौर की यह मशहूर मेथी अंतर्राष्ट्रीय कारोबार जगत में बेहद लजीज मसाले के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है. अब तो मेथी का इस्तेमाल लोग ब्रांड नेम के साथ करने लगे हैं.

सेहत की नजर से देखें तो मेथी में प्रचुर मात्रा में विटामिन ए, कैल्शियम, आयरन व प्रोटीन मौजूद है. किसान सेवा समिति, मेड़ता के एक किसान बलदेवराम जाखड़ बताते हैं कि किसी जमाने में पाकिस्तान के कसूरी इलाके में ही यह मेथी पैदा होती थी, जिस के चलते इस का नाम कसूरी मेथी पड़ा. धीरेधीरे इस की पैदावार फसल के रूप में सोना उगलने वाली नागौर की धरती पर होने लगी.

आज हाल यह है कि नागौर दुनियाभर में कसूरी मेथी उपजाने वाला सब से बड़ा जिला बन गया है. यहां की मेथी मंडियों ने विश्व व्यापारिक मंच पर अपनी एक अलग जगह बनाई है. न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी नागौर की कसूरी मेथी बिकने के लिए जाती है.

नागौर के ही एक मेथी कारोबारी बनवारी लाल अग्रवाल के मुताबिक, ‘‘कई मसाला कंपनियों ने कसूरी मेथी को दुनियाभर में पहचान दिलाई है. देश की दर्जनभर मसाला कंपनियां कसूरी मेथी को खरीद कर देशविदेश में कारोबार करती हैं. इसी वजह से इस मेथी का कारोबारीकरण हो गया है.’’

नागौर जिला मुख्यालय में 40 किलोमीटर की दूरी में फैले इलाके खासतौर से कुचेरा, रेण, मूंडवा, अठियासन, खारड़ा व चेनार गांवों में मेथी की सब से ज्यादा पैदावार होती है. मेथी की फसल के लिए मीठा पानी सब से अच्छा रहता है. चिकनी व काली मिट्टी इस की खेती के लिए ठीक रहती है.

कसूरी मेथी की फसल अक्तूबर माह में बोई जाती है. 30 दिन बाद इस की पत्तियां पहली बार तोड़ने लायक हो जाती हैं. इस के बाद फिर हर 15 दिन बाद इस की नई पत्तियां तोड़ी जाती हैं.

मेथी के एकएक पौधे की पत्तियां किसान अपने हाथों से तोड़ते हैं. लोकल बोलचाल में मेथी की पत्तियां तोड़ने के काम को लूणना या सूंठना कहते हैं. पहली बार तोड़ी गई पत्तियां स्वाद व क्वालिटी के हिसाब से अच्छी होती हैं.

वर्तमान में मेथी की पैदावार में संकर बीज का इस्तेमाल सब से ज्यादा होता है. यहां के किसान इसे काश्मीरी के नाम से जानते हैं. कसूरी मेथी उतारने में सब से ज्यादा मेहनत होती है, क्योंकि इस के हर पौधे की पत्तियों को हाथ से ही तोड़ना पड़ता है.

कैसे करें खेती

भारत में मेथी की कई किस्में पाई जाती हैं. कुछ उन्नत हो रही किस्मों में चंपा, देशी, पूसा अलविंचीरा, राजेंद्र कांति, हिंसार सोनाली, पंत रागिनी, काश्मीरी, आईसी 74, कोयंबूटर 1 व नागौर की कसूरी मेथी खास हैं.

इस की अच्छी खेती के लिए इन बातों पर ध्यान देना जरूरी है:

आबोहवा व जमीन : कसूरी मेथी की खेती के लिए शीतोष्ण आबोहवा की जरूरत होती है, जिस में बीजों के जमाव के लिए हलकी सी गरमी, पौधों की बढ़वार के लिए थोड़ी ठंडक और पकने के लिए गरम मौसम मिले. वैसे, यह मेथी हर तरह की जमीन में उगाई जा सकती है, लेकिन अच्छी उपज के लिए बलुई या दोमट मिट्टी सही रहती है.

इस के अलावा 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-40 किलो फास्फोरस व पोटाश प्रति हेक्टेयर देने से उपज में बढ़ोतरी होती है. नाइट्रोजन की बाकी बची आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई से पहले देते हैं. बाकी नाइट्रोजन 15-15 दिन के अंतराल पर 2 बार में देते हैं.

बोआई : कसूरी मेथी को अगर बीज के रूप में उगाना है, तो इसे मध्य सितंबर से नवंबर माह तक बोया जाता है. लेकिन अगर इसे हरी सब्जी के लिए उगाना है तो मध्य अक्तूबर से मार्च माह तक भी बो सकते हैं. वैसे, अच्छी उपज लेने के लिए नागौर इलाके में इसे ज्यादातर अक्तूबर से दिसंबर माह के बीच ही बोया जाता है.

इस की बोआई लाइनों में करनी चाहिए. लाइन से लाइन की दूरी 15 से 20 सैंटीमीटर व गहराई 2 से 3 सैंटीमीटर रखनी चाहिए. ज्यादा गहराई पर बीज का जमाव अच्छा नहीं रहता.

बीज बोने के बाद पाटा जरूर लगाएं, ताकि बीज मिट्टी से ढक जाए. यह मेथी 8 से 10 दिनों में जम जाती है.

सिंचाई : कसूरी मेथी के पौधे जब 7-8 पत्तियों के हो जाएं तब पहली सिंचाई कर देनी चाहिए. यह समय खेत की दशा, मिट्टी की किस्म व मौसमी बारिश वगैरह के मुताबिक घटबढ़ सकता है. हरी पत्तियों की ज्यादा कटाई के लिए सिंचाई की तादाद बढ़ा सकते हैं.

फसल की हिफाजत  : कसूरी मेथी में पत्तियों व तनों के ऊपर सफेद चूर्ण हो जाता है व पत्तियां हलकी पीली पड़ जाती हैं. बचाव के लिए 800 से 1200 ग्राम प्रति हेक्टेयर ब्लाईटाक्स 500-600 लिटर पानी में घोल बना कर पौधों पर छिड़क दें.

पत्तियां व तनों को खाने वाली गिड़ार से बचाने के लिए 2 मिलीलिटर रोगर 200 लिटर पानी में घोल कर फसल पर छिड़काव करें. छिड़काव कटाई से 5 से 7 दिन पहले करें.

कटाई : बोआई के 3-4 हफ्ते बाद कसूरी मेथी हरी सब्जी के तौर पर कटाई के लिए तैयार हो जाती है. बाद में फूल आने तक हर 15 दिन में कटाई करते हैं. बीज उत्पादन के लिए 2 कटाई के बाद कटाई बंद कर देनी चाहिए.

उपज और स्टोरेज : सब्जी के लिए मेथी की औसत उपज 80 से 90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर व बीज के लिए 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हासिल होती है. हरी सब्जी के लिए मेथी की पत्तियों को अच्छी तरह से सुखा कर एक साल तक स्टोर कर सकते हैं और बीज को 3 साल तक स्टोर किया जा सकता है.


 

 

मिट्टी अथवा भूमि का चयन –

मेथी की खेती के लिए जीवांशयुक्त अच्छे जल निकास वाली दोमट चिकनी मिट्टी सर्वोत्तम होती है । मेथी की खेती 5.5 – 6.5 तक ph मान वाली भूमि से आसानी से की जा सकती है।

भूमि की तैयारी –

मेथी की खेती के लिए भूमि को कल्टीवेटर अथवा देशी हल से 2 से 3 जुताइयाँ करनी चाहिए। हर जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना लेना चाहिए।

बुवाई का समय –

जलवायु के आधार पर मेथी के खेती के लिए बीजों की बुवाई अलग-अलग समय पर की जाती है जैसे –

भारत के उत्तरी मैदानी भागों में –

दाने हेतु – 15 सितंबर से 15 नवमबर तक ।

शाक पत्तियाँ हेतु – फ़रवरी से 7 मार्च तक ।

पर्वतीय इलाक़ों में –

मार्च से अप्रैल तक

एक बात और मेथी की दूसरी प्रजाति कसूरी मेथी की बुवाई अक्टूबर- से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक करें।

उन्नत क़िस्में

क्रम संख्या

उन्नत किस्म का नाम

विवरण

1 हिसार सोनाली ऊँची बढ़ने वाली क़िस्म है ।पत्तियाँ हरी गहरी, बीज सुनहरे पीले होते हैं । 140-150 दिन में पक जाती है। 1600-1800 kg/हे0 उपज प्राप्त होती है।
2 लेम सेलेक्शन 1 68 दिन में पककर तैयार होने वाली यह अगेती क़िस्म है। इस क़िस्म के पौधे झाड़ीनुमा होते हैं। 750 – 800 किलोग्राम उपज इस क़िस्म से प्राप्त होती है।
3 राजेंद्र क्रांति इस क़िस्म के पौधे अधिक शाखाओं वाले मध्यम,ऊँचाई वाले झाड़ीनुमा होते हैं। पत्ती रोग धब्बा प्रतिरोधी क़िस्म 120 दिन तैयार व 1200-1500 उपज ।
4 को0 1 इसमें 20-30% प्रोटीन होता है। पत्तों व मसालों के लिए लोकप्रिय क़िस्म 90 दिन में पककर तैयार होती है। 4-6 टन शाक व 700 kg बीज उपज ।
5 UM 305 यह क्यारियों में बोयी जाने वाली क़िस्म है। पौधे मध्यम ऊँचाई वाले होते हैं।
6 RMT 143 यह क़िस्म चूर्णी फफूँदी प्रतिरोधी होती है। भारी मृदा में उगाने के लिए उपयुक्त यह क़िस्म 140-150 दिन में तैयार हो जाती है। 1300-1500 तक उपज।
7 RMT 1 यह भी चूर्णी फफूँदी के प्रति सहनशील होती है। बुवाई के 140-150 दिन में तैयार होने वाली यह क़िस्म 1300-1500 किलोग्राम तक उपज देती है।
8 HM 103 इस क़िस्म के पौधे अर्धसीधे झाड़ीनुमा होते हैं। दाने पीले व आकर्षक होते हैं। बुवाई के 140-150 दिन में तैयार होती है। उपज 1800-2000 किलोग्राम।

 

बीज की मात्रा –

शाक व बीजों के लिए सामान्य रूप से 25-30 किलोग्राम व कसूरी मेथी की खेती (kasoori methi ki kheti in hindi ) के लिए 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की ज़रूरत पड़ती है। किसान साथी ध्यान रखें बीज सुडौल,समान आकार के व रोग रहित उन्नत क़िस्म का होने चाहिए।

पौधों का अंतरण –

मेथी व कसूरी मेथी की खेती से अच्छी उपज लेने के लिए लाइन से लाइन की दूरी 20-25 सेंटीमीटर व पौध से पौध की दूरी 10-15 सेंटीमीटर किसान भाई रखें।

 

मेथी के बीजों का बीज उपचार –

अच्छे अंकुरण व बीजों को रोगों से बचाने के लिए राइजोबियम मेलोलोरी कल्चर से बुवाई से पहले उपचारित कर लेना चाहिए।

मेथी व कसूरी मेथी की बुवाई कैसे करें 

हमारे देश में किसान भाई मेथी व कसूरी मेथी की खेती के लिए दो बुवाई की विधियाँ उपयोग में लाते है – पहली है छिटकवाँ और दूसरी विधि है पंक्तियों में बुवाई ।

खाद व उर्वरक –

मेथी की खेती व कसूरी मेथी की खेती  में प्रति हेक्टेयर इस प्रकार खाद व उर्वरक की मात्रा को प्रयोग में लाते है –

गोबर की खाद अथवा कंपोस्ट – 10-15 टन व 40 किलोग्राम नत्रजन व 40 किलोग्राम फ़ोस्फोरस तथा 20 किलोग्राम पोटाश ।

नत्रजन की आधी व फ़ोस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए। तथा नत्रजन की आधी मात्रा हर कटाई के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में मेथी के फ़सल में डालें।

सिंचाई –

बुवाई के बाद शुरुआत में बीजों के अंकुरण के लिए नमी का होना अच्छा होता है इसलिए हल्की सिंचाई करें । इसके पश्चात हर सप्ताह करना चाहिए। साथी ही मौसम के अनुसार भी सिंचाई की संख्या कम अथवा अधिक की जाती है।

 

कटाई –

 

मेथी का साग के उद्देश्य से उगाने वाले किसान भाई बुवाई के माह भर बाद मेथी की कटाई शुरू कर दें । कसूरी मेथी की 5-6 कटाइयों के बाद बीज उत्पादन के लिए छोड़ देना चाहिए। परंतु सामान्य मेथी को जड़ के पास से 4 से 6 कटाई के बाद जड़ सहित उखाड़कर बाज़ार में बेंचने के लिए भेज दें। ऐसा करने से अगली फ़सल हेतु फ़सल अवशेष हटाने की दिक़्क़त नही उठनी पड़ेगी।

उपज –

किसान भाइयों मेथी की खेती से प्राप्त उपज मृदा की उर्वरा शक्ति, बीज की क़िस्म व देखभाल पर निर्भर करती है। फिर भी एक औसत उपज पर बात करें तो एक हेक्टेयर से लगभग 70-80 कुन्तल हरा साग व 15-20 कुन्तल मेथी के बीज मिल जाता है। वहीं कसूरी मेथी की खेती से 90-100 कुन्तल प्रति हेक्टेयर साग प्राप्त हो जाता है।

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