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स्ट्राबेरी क्या है जानें स्ट्राबेरी की खेती करें उचित प्रकार
स्ट्राबेरी एक महत्वपूर्ण नरम फल है। जिसको विभिन्न प्रकार की भूमि तथा जलवायु में उगाया जा सकता है। इसका पौधा कुछ ही महीनों में फल दे सकता है। इस फसल का उत्पादन बहुत लोगों को रोजगार दे सकता है। स्ट्रॉबेरी एंटीऑक्सिडेंट, विटामिन 'सी' , प्रोटीन और खनिजों का एक अच्छा प्राकृतिक स्रोतों है।
स्ट्राबेरी की कौन - कौन किस्में है जानें एस तरह
स्ट्राबेरी की बहुत सी किस्में उगाई जाती हैं। परन्तु मुख्यत: निम्नलिखित किस्मों का उत्पादन हरियाणा में किया जाता है।
कैमारोजा
यह एक कैलीफोर्निया में विकसित की गई किस्म है व थोड़े दिन में फल देने वाली किस्म है। इसका फल बहुत बड़ा व मजबूत होता है। इस फल की महक अच्छी होती है। यह किस्म लंबे समय तक फल देती है व वायरस रोधक है।
ओसो ग्रैन्ड
यह भी एक कैलीफोर्निया में विकसित किस्म है। जो छोटे दिनों में फल देती है। इसका फल बड़ा होता है तथा खाने व उत्पाद बनाने के लिए अच्छा होता है। परंतु इसके फल में फटने की समस्या देखी जा सकती है। यह किस्म काफी मात्रा में रनर पैदा कर सकती है।
ओफरा
यह किस्म इजराईल में विकसित की गई है। यह एक अगेती किस्म है और इसका फल उत्पादन जल्दी आरंभ हो जाता है।
चैंडलर
यह कैलीफोर्निया में विकसित किस्म है। इसका उत्पादन विभिन्न स्थितियों में किया जा सकता है। इसका फल आकर्षक होता है। परंतु इसकी त्वचा नाजुक होती है।
स्वीट चार्ली
इस किस्म के पौधे जल्दी फल देते हैं। इसका फल मीठा होता है। पौधे में कई फफूंद रोगों की रोधक शक्ति होती है।
जलवायु व भूमि का प्रयोग कैसे करें
इस फल का उत्पादन भिन्न प्रकार की जलवायु में किया जा सकता है। इसके फूलों व नाजुक फलों को पाले से बचाना जरूरी है। विभिन्न प्रकार की भूमि में इसको लगाया जा सकता है। परंतु रेतीली-दोमट भूमि इसके लिए सर्वोत्ताम है। भूमि में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए।
स्ट्रॉबेरी की पौध करें एस प्रकार तैयार
इसके पौधे ऊपर उठी क्यारियों में लगाए जाते हैं। इन क्यारियों की चौड़ाई 105-110 सै.मी. व ऊँचाई लगभग 25 से.मी. रखी जाती है। दो क्यारियों के बीच में 55 सै.मी. का अन्तर रखा जाता है। क्यारियों में पौधों को चार पंक्तियों के बीच में 25 सै.मी. की दूरी व पौधे की आपसी दूरी 25-30 सै.मी. रखना आवश्यक है। पौधों की रोपाई दिन के ठंडे समय में की जानी चाहिए।
पौधे लगाने का समय : पौधों की रोपाई 10 सितम्बर से 10 अक्तूबर तक की जानी चाहिए। रोपाई के समय अधिक तापमान होने पर पौधों को कुछ समय बाद अर्थात् 20 सितम्बर तक शुरू किया जा सकता है।
खाद व उर्वरक का प्रयोग करें एस प्रकार
खाद एवं उर्वरकों का उपयोग मिट्टी की जाँच के आधार पर करना चाहिए। साधारण रेतीली भूमि में 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति एकड़ की दर से भूमि तैयारी के समय बिखेर कर मिट्टी में मिला देनी चाहिए। भूमि तैयारी के समय 100 कि.ग्रा. फास्फोरस (पी2ओ5) व 60 कि.ग्रा. पोटाश (के2ओ) प्रति एकड़ डालना चाहिए। रोपाई के उपरांत टपका सिंचाई विधि द्वारा निम्नलिखित घुलनशील उर्वरकों को दिया जाना चाहिए।
समय
घुलनशील उर्वरकों की मात्रा ग्राम/एकड़/दिन
नाइट्रोजन
फास्फोरस (पी2ओ5)
पोटाश (के2ओ)
10 अक्तूबर से 20 नवम्बर
250
200
400
21 नवम्बर से 20 दिसम्बर
600
200
600
21 दिसम्बर से 20 जनवरी
250
160
600
21 जनवरी से 28 फरवरी
700
200
900
1 मार्च से 31 मार्च
600
200
900
सूक्ष्म तत्वों के लिए पौधों पर छिड़काव किया जाना चाहिए।
सिंचाई करें उचित प्रकार
इस पौधे के लिए उत्ताम गुणवत्ता (नमक रहित) का पानी होना चाहिए। पौधों को लगाने के तुरंत पश्चात् सिंचाई करना आवश्यक है। सिंचाई सूक्ष्म फव्वारों द्वारा की जानी चाहिए। यह सावधानी रखें कि सूक्ष्म फव्वारों से सिंचाई करते समय पौधा स्वस्थ एवं रोग/फफूंद रहित होना आवश्यक है। फूल आने पर सूक्ष्म फव्वारा सिंचाई को बदल कर टपका विधि द्वारा सिंचाई करें।
मल्चिंग क्या है जानें
पौधों पर फूलों के आने पर मल्चिंग करना आवश्यक है। मल्चिंग काले रंग की 50 माइक्रोन मोटाई वाली पॉलीथीन चद्दर से करनी चाहिए जिससे खरपतवारों पर नियंत्रण एवं फलों को सड़ने से बचाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त मल्चिंग करने से भूमि से पानी के वाष्पीकरण क्रिया को भी कम किया जाता है।
लो टनल का उपयोग करें
पौधों को पाले से बचाने के लिए ऊपर उठी क्यारियों पर पॉलीथीन की पारदर्शी चद्दर जिसकी मोटाई 100-200 माइक्रोन हो, ढकना आवश्यक है। चद्दर को क्यारियों से ऊपर रखने के लिए बांस की डंडियां या लोहे की तार से बने हुप्स का उपयोग करना चाहिए। ढकने का कार्य सूर्यास्त से पहले कर दें व सूर्योदय उपरांत इस पॉलीथीन की चद्दर से हटा दें।
उपज एस प्रकार
प्रति पौधा 200 से 300 ग्राम (रोग रहित) फलों का उत्पादन इन विधियों के उपयोग से लिया जा सकता है।