धान की कीट और रोगों

क्षेत्र में कुछ स्थानों को छोड़कर अधिकांश खेतों में धान की रोपाई का कार्य समाप्त हो चुका। अब किसान रोपाई के बाद फसल में लगने वाले कीट व रोगों पर नियंत्रण रखने पर खास ध्यान दे रहे हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार वह इन कीट व रोगों पर नियंत्रण करके फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

धान की फसल क्षेत्र की मुख्य फसलों में गिनी जाती है। जिसके चलते इस वर्ष जनपद में करीब 2650 हेक्टेयर रकबे में धान की फसल बताई जा रही है। हालांकि अभी सरकारी आंकड़ा नहीं आया है। कृषि रक्षा इकाई के प्रभारी ज्ञानवीर ¨सह ने धान की फसल को रोपाई से लेकर कटाई तक रोग व कीटों से सुरक्षित रखने के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि धान की फसल के छह से बीस दिन के बीस होने पर जड़ की सूड़ी में कीट लगने की संभावना होती है। यह कीट चावल के आकार का (सफेद रंग) होता है। यह कीट पौधे की जंड को कटाकर उसे नष्ट करता है। इसके फसल में लगने पर तुरंत फसल पर क्लोरोफायरीफोस दवा का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा फसल की रोपाई से लेकर उसकी कटाई तक पत्ती लपेटकर कीट लगने की संभावना होती है। यह हरे रंग की गिड़ार होती है, जो पत्ती को अपने ऊपर लपेट कर उसे खाती रहती है। फसल को इससे बहुत नुकसान होता है। इसके अलावा फसल में तना छेदक कीट भी लग सकता है। इस कीट पर शुरूआती दौर में ही नियंत्रण करना जरूरी है। तना छेदक कीट (स्टेम बोरर) के फसल में लगने से पौधा बीच से सूखने लगता है और पौधे का ऊपरी भाग अलग हो जाता है। इस कीट पर नियंत्रण करने के लिए किसान एक लीटर मोनोक्रोटोफास 36 ईसी या डेढ़ लीटर क्यूनालफास पच्चीस ईसी दवा को आठ सौ लीटर पानी में मिलकर फसल पर छिड़काव करें। जो किसान स्प्रे करने से बचना चाहते हैं वह दानेदार फोरएट या कारटेफ दवा का भी इस कीट पर नियंत्रण करने के लिए प्रयोग कर सकते हैं। दानेदार दवा डालने के बाद फसल में ¨सचाई जरूर करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि फसल के चालीस से अस्सी दिन तक शीत ब्लाईट व बैक्टीरियल ब्लाईट रोग होने का खतरा होता है। उन्होंने कहा कि यह शीत ब्लाईट रोग मुख्यता फसल के आसपास मेड़ पर होने वाली धूब घास से फसल में आता है इसलिए किसान फसल के आसपास हो रही धूब घास को नष्ट कर दें। इस रोग के नियंत्रण के लिए किसान कारवंडाजीम दवा का प्रयोग करें। इसके अलावा बैक्टीरियल ब्लाईट रोग पर नियंत्रण के लिए किसान कापर आक्सीक्लोराइड व स्टपोसाइक्लीन दवा को मिलाकर प्रयोग करें। फसल के 90 से 110 दिन के बीच कंदवा रोग लगने का खतरा होता है। इस रोग से फसल बाल में पीला रंग का पाउडर बना हुआ दिखाई देता है। इसके नियंत्रण के लिए ओक्सीक्लोराइड दवा का प्रयोग करें। फसल में बाली की दुग्ध अवस्था होने पर गंदी कीट लगने का पूरा खतरा होता है। इस कीट पर मिथाइलपेराथीयसन दवा का प्रयोग किया जा सकता है। फसल के 90 दिन से कटने तक ब्रांउन प्लांट हापर कीट का खतरा रहता है। यह कीट फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचता है। यह महामारी का रूप भी ले लेता है। इस कीट पर नियंत्रण के लिए मनोक्रोटोफास या बिपरोफैजीन दवा का प्रयोग किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कीट व रोगों पर नियंत्रण करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकता है।

धान की खेती प्रमुख रोग नियत्रंण प्रबंधन

धान की खेती प्रमुख रोग नियत्रंण प्रबंधन

विश्व में धान (चावल) के कुल उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा कम आय  वाले देशों में छोटे स्तर के किसानों द्वारा उगाया जाता है। इसलिए विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास और जीवन में सुधार के लिए दक्ष और उत्पादक धान (चावल) आधारित पद्धति आवश्यक है। अतंर्राष्ट्रीय धान (चावल) वर्ष 2004 ने धान (चावल) को केन्द्र बिंदु मानकर कृषि, खाद्य सुरक्षा, पोषण, कृषि जैव विविधता,पर्यावरण, संस्कृति, आर्थिकी, विज्ञान, लिंगभेद और रोजगार के परस्पर संबंधों को नये नजरिये से देखा है। अंतर्राष्ट्रीय धान (चावल) वर्ष, ‘सूचना प्रदाता’ के रूप में हमारे समक्ष है ताकि सूचना आदान-प्रदान, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और ठोस Read More : धान की खेती प्रमुख रोग नियत्रंण प्रबंधन about धान की खेती प्रमुख रोग नियत्रंण प्रबंधन