आसन की परिभाषा

आसन

विभिन्न ग्रंथों में आसन के लक्षण हैं - उच्च स्वास्थ्य की प्राप्ति, शरीर के अंगों की दृढ़ता, प्राणायामादि उत्तरवर्ती साधनक्रमों में सहायता, स्थिरता, सुख दायित्व आदि। पंतजलि ने स्थिरता और सुख को लक्षणों के रूप में माना है। प्रयत्नशैथिल्य और परमात्मा में मन लगाने से इसकी सिद्धि बतलाई गई है। इसके सिद्ध होने पर द्वंद्वों का प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता। किंतु पतंजलि ने आसन के भेदों का उल्लेख नहीं किया। उनके व्याख्याताओं ने अनेक भेदों का उल्लेख (जैसे - पद्मासन, भद्रासन आदि)  Read More : आसन about आसन

ध्यानयोग की विधियाँ

ध्यानयोग की विधियाँ

शिव ने कहा: होश को दोनों भौहों के मध्य में लाओ और मन को विचार के समक्ष आने दो। देह को पैर से सिर तक प्राण तत्व से भर जाने दो, ओर वहां वह प्रकाश की भांति बरस जाए।
“होश को दोनों भौंहों के मध्य में लाऔ।”……अपनी आंखें बंद कर लो, और अपनी आंखों को दोनों भौंहों के ठीक बीच में केंद्रित करो। आंखे बंद करके ठीक मध्य में होश को केंद्रित करो, जैसे कि तुम अपनी दोनों आँखो से देख रहे हो। उस पर पूरा ध्यान दो।
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