योग की परिभाषा एवं उनके प्रकार

योग शास्त्र की भूमिका

योग शास्त्र की भूमिका

योग शास्त्र की भूमिका

योग का वर्णन वेदों में, 
फिर उपनिषदों में और 
फिर गीता में मिलता है,
 लेकिन पतंजलि और 
गुरु गोरखनाथ ने 
योग के बिखरे हुए ज्ञान को 
व्यवस्थित रूप से लिपिबद्ध किया।

 योग हिन्दू धर्म के 
छह दर्शनों में से एक है। 
ये छह दर्शन हैं:-- 
1.न्याय 
2.वैशेषिक 
3.मीमांसा 
4.सांख्य 
5.वेदांत और 
6.योग।* 

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आप ट्रिम होना चाहते है, यह देखे

आप ट्रिम

मैँ खाना बँद क्योँ नहीँ कर सकता? लेकिन प्रश्न यह नहीँ है; उसके पीछे कुछ और है, कुछ और. यह बहुत बचकाना लगता है...

 

नहीँ, परखेँ नहीँ, अगर तुम इसे बचकाना कहते हो तो तुमने इसे पहले ही निँदित कर दिया, और वही समस्या की जड़ है. और समस्या से बाहर आने का यह रास्ता नहीँ है. चीजोँ को बुरा मत कहो—समझने की कोशिश करो.

अगर कोई व्यक्ति ज्यादा खा रहा है तो यह भीतर चल रहे किसी का सँकेत है.

 

भोजन सदा प्रेम का परिपूरक है. जो लोग प्रेम नहीँ करते, जिनके जीवन मेँ प्रेम की कमी है, वे ज्यादा खाने लगते हैँ; यह प्रेम-पूर्ति है.

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