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बोने से पहले ही आप पानी और नमक के घोल से

प्रमाणित बीज को भी बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा आधार बीज से पैदा कराया जाता है। यह कार्य प्रत्येक वर्ष म.प्र. राज्य बीज एवं फार्म विकास निगम या उन्नतशील किसानों द्वारा बीज पैदा करने की मानक विधियों के अनुसार किया जाता है। प्रमाणित बीज के थैलों पर नीले रंग का लेबिल लगा रहता है। प्रमाणित बीज को किसानों द्वारा व्यावसायिक फसल के उत्पादन के लिये उपयोग में लाया जाता है।
(ब) बीज शुद्धता व अंकुरण परीक्षण:-
अच्छे उत्पादन के लिये आवश्यक है कि बीज शुद्ध हो और उसका अंकुरण प्रतिशत मानक स्तर से कम न हो। बोने के काम में लाने वाला बीज एक ही प्रजाति का हो, इसके लिए उपलब्ध बीज में से 4-5 अलग-अलग जगह से नमूने लेकर यह सुनिश्चित करें कि इसमें किसी दूसरी फसल के बीज घास चारा आदि न मिले हों साथ ही यह भी देखें कि उसी किस्म के अपरिपक्व, टूटे हुये बीज न हों।
बीजों की अंकुरण क्षमता मानक स्तर की है या नहीं इसके लिये अंकुरण परीक्षण आवश्यक है। अंकुरण परीक्षण के लिये कम से कम 400 बीजों का 3-4 आवृत्ति में परीक्षण करना चाहिए। अंकुरण परीक्षण निम्न प्रकार से किया जा सकता है।
पेपर द्वारा:- 3-4 पेपर एक के ऊपर एक रखकर सतह बनायें और उन्हें पानी से भिगोये। फिर सतह पर सौ-सौ बीज गिनकर लाइन में रखे तथा पेपर को मोड़कर रख दें। पेपर को समय-समय पर पानी डालकर नम बनाये रखें। तीन-चार दिन बाद अंकुरित बीजों को गिन लें।
सीड बॉक्स विधि:- इस विधि में लकड़ी के बॉक्स में रेत बिछाकर उस पर दानों को लाइन में रखें और फिर भुरभुरी मिट्टी की 1.5 सेमी. की तह लगा दें।
रेत को नम बनाये रखने के लिये समय-समय पर पानी डालते रहें। लगभग 4-5 दिनों में अंकुरण मिट्टी की समूह पर आ जाते हैं।
बीज अंकुुरण क्षमता कम से कम 80-90 प्रतिशत होनी चाहिए। परीक्षण के समय तापक्रम फसल के अनुसार होनी चाहिए। अंकुरण क्षमता परीक्षण में पहले सामान्य पौधे और फिर असामान्य पौधे फिर बीज तत्पश्चात् उन अंकुरित बीजों की गिनती की जाती है।
(स) बीजोपचार:- बीज शुद्धता व अंकुरण परीक्षण के पश्चात् बोनी से पूर्व बीजोपचार अति आवश्यक है। यह फसलों को रोगों से होने वाली हानि को रोककर अंकुरण क्षमता भी बढ़ाता है। बीज की बुवाई के बाद रोगजनक अपनी प्रकृति के अनुसार बीज को खेत में अंकुरण के पहले या उसके तुरंत बाद आक्रमण कर हानि पहुंचाते हैं या बाद में पत्तियों पर पर्ण दाग जड़ पर सडऩ एवं बालियों पर कंडवा रोग पैदा करते हैं। अगर हम बीजोपचार द्वारा बीजोढ़ रोगजनक को खेत में जाने से रोक दें तो रोग से होने वाली हानि को काफी हद तक कम किया जा सकता है। बीजोपचार में प्रयुक्त कारकों के आधार पर बीजोपचार के तरीकों को निम्न वर्गों में रखा जा सकता है।
भौतिक बीजोपचार:- इसके अंतर्गत गर्म पानी सूर्य ऊर्जा तथा विकिरणों द्वारा बीजोपचार किया जाता है। बीज के अंदर रहने वाले रोग जनकों जैसे गेहूं के कण्डवा के लिये सूर्य के ताप से बीजों को उपचारित करते हैं। इसके लिये बीज को 4 घंटे पानी में भिगोने के बाद दोपहर की गर्मी में पक्के फर्श या टीन पर पतली तह में डालकर सुखाते हैं। रोग पृथककरण विधि से बीज या पौध अवशेषों को बीज से अलग करके नष्ट करते हैं। इसके लिये बीज को 5 प्रतिशत नमक के घोल में डुबोते है जिससे रोगी बीज ऊपर तैर आते हंै इनको जाली की सहायता से निकाल कर नष्ट कर देते हैं और शेष बीज को साफ पानी से धोकर व सुखाकर बोने के काम में लेते हैं। यह विधि ज्वार, बाजरा के अर्गट एवं गेहूं के सेहू रोग को रोकने में सहायक होती है।
विकिरण विधि में विभिन्न तीव्रता की एक्स किरणों या अल्ट्रावायलेट किरणों को अलग-अलग समय तक बीजों पर से गुजारा जाता है जिससे बीज की सतह या उसके अंदर पाये जाने वाले रोगजनक नष्ट हो जाते है।
रासायनिक बीजोपचार:-यह बीज जन्य रोगों की रोकथाम की सबसे आसान, सस्ती और लाभकारी विधि है। फफूंदनाशी रसायन बीज जन्य रोगाणुओं को मार डालता है अथवा उन्हे फैलने से रोकता है। यह एक संरक्षण कवच के रूप में बीज के चारों ओर एक घेरा बना लेता है जिससे बीज को रोगजनक के आक्रमण एवं सडऩे से रोका जा सकता है। सन् 1968 में बेनोमिल की सर्वांगी फफूंदनाशक के रूप में खोज के पश्चात् इस क्षेत्र में एक नये युग की शुरूआत हुई। तत्पश्चात् कार्बोक्सिन, मेटालेक्सिन व दूसरे सर्वांगी फफूंदनाशक बाजार में आये। अदैहिक फफूंदनाशक जैसे- थायरम, कैप्टान, डायथेन एम-45, की 2.5 से 3.0 ग्राम मात्रा जबकि दैहिक फफूंदनाशकों जैसे- कार्बेन्डाजिम, वीटावैक्स की 1.5 से 2.0 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज के उपचार के लिए पर्याप्त होती है। ऐसी फसलों में किया जाता है जिनके कंद, तना आदि बीज के रूप मे प्रयोग किये जाते हैं जैसे गन्ना, आलू, अदरक, हल्दी, लहसुन, अरवी आदि। इनको लगाने के पूर्व दवा के निश्चित संाद्रता वाले घोल में फसल एवं रोग की प्रकृति के अनुसार 10 से 30 मिनट तक डुबोकर रखते है।
एक बड़े बर्तन में 1 लीटर पानी में 20 ग्राम नमक मिलाकर उसका घोल बना लें। जिन बीजों को आप खेत में बोने वाले हैं, उनको इस घोल में डाल दें। जो बिज रोगी होगें या अच्छी क्वालिटी के नहीं होंगे, वो नमक के घोल में ऊपर तैरने लगेंगे और अच्छे बीज बर्तन के तले में नीचे बैठ जायेंगे। ऊपर तैरते हुए बीज को बाहर निकाल कर अल्ग रख दें और अच्छे वाले नीचे के बीजों को साफ पानी से दोकर सुखा लें। इसके बाद इन अच्छे बीजों को कीटनाशकों और फफूंद की बिमारियों से बचाने वाली प्रक्रिया का पालन करें और अंत में खेत में बो दें।