यूरिया का संतुलित उपयोग

यूरिया का संतुलित

देश में साल दर साल बढ़ते कृषि उत्पादन और सतत् खाद्य सुरक्षा में फसलों के पोषण की अहम भूमिका है। संतुलित पोषण से ऊर्जावान खेत किसान को अधिकाधिक उपज की भेंट देते हैं। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश मुख्य पोषक तत्व हैं, जो अधिकांश खेतों में लगभग अनिवार्य रूप से लगाए जाते हैं। इसके अलावा सल्फर, जिंक और बोरोन कुछ महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व हैं, जिन्हें भूमि की जरूरत के हिसाब से किसान खेतों में डालते हैं। इन सबके बीच यदि सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व की बात करें तो नाइट्रोजन का नाम सबसे ऊपर आता है। खेतों में नाइट्रोजन की आपूर्ति मुख्य रूप से यूरिया नामक उर्वरक द्वारा की जाती है। यूरिया में 46 प्रतिशत नाइट्रोजन मौजूद होती है, जिससे फसल की उत्पादकता बढ़ती है। भंडारण, परिवहन और उपयोग में आसान होने के कारण यूरिया न केवल अपने देश में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सबसे लोकप्रिय नाइट्रोजन उर्वरक है।

      वैज्ञानिकों ने फसलों को संतुलित उर्वरक देने की सिफारिश की है, जिसके अंतर्गत सभी पोषक तत्वों की निर्धारित खुराक तय की गयी है। इस खुराक में भूमि और फसल के अनुसार विभिन्न पोषक तत्वों की मात्रा तय की जाती है। परन्तु देखा गया है कि किसान यूरिया का उपयोग अक्सर जरूरत से अधिक मात्रा में करते हैं। उनकी धारणा है कि अधिक मात्रा में यूरिया देने से पैदावार अधिक होगी तथा मुनाफा बढ़ेगा। परन्तु यह धारणा निराधार और गलत है। यूरिया का उपयोग सदैव वैज्ञानिकों द्वारा सुझायी गयी खुराक के अनुसार ही करना चाहिए।

      अधिक मात्रा में डाले गये यूरिया में मौजूद नाइट्रोजन हवा में उड़ जाती है या रासायनिक क्रियाओं द्वारा उसका क्षय हो जाता है। कुछ यूरिया सिंचाई के पानी के साथ बहकर आस-पास के जलाशयों में पहुंच जाता है या रिसाव के द्वारा भू-जल को प्रभावित करता है। इस तरह भूमिगत जल नाइट्रोजन प्रदूषण का शिकार हो जाता है, जिसके कई नुकसान हैं। अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में भू-जल को पेय जल के रूप में इस्तेमाल करने के कारण इससे ग्रामीण आबादी का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार खेत में यूरिया की अधिक मात्रा जलवायु परिवर्तन जैसी विपदा को भी बढ़ावा देती है, जिसका पैदावार पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। यह भी देखा गया है कि खेत में यूरिया की अधिक मात्रा में मौजूदगी के कारण कुछ अन्य पोषक तत्व भूमि से बाहर निकल जाते हैं, जिसका खामियाजा भूमि की उर्वरता में लगातार गिरावट के रूप में झेलना पड़ता है। इसके अलावा यह भी देखा गया है कि यूरिया की अधिकता से फसल में नमी की मात्रा बढ़ जाती है, जो रोगों और कीटों को आमंत्रण देती है। इससे भी किसान को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है। वैसे भी यूरिया की अधिक मात्रा के रूप में किसान उर्वरक की अधिक कीमत चुकाता है, जिससे लागत बढ़ती है और मुनाफा घटता है।

      सरकार द्वारा किये गये प्रयासों ने किसानों के लिए मिट्टी की जांच की सुविधा सुलभ कर दी है। हाल में प्रधान मंत्री महोदय ने सॉयल हैल्थ कार्ड योजना भी लागू की है, जिससे किसानों को अपने खेत की मिट्टी की सेहत व पोषक तत्वों की जरूरत की जानकारी होगी। इसके साथ ही किसानों को उर्वरकों के उपयोग की वैज्ञानिक सिफारिश भी प्राप्त होगी। किसानों से अपेक्षा की जाती है कि वे सभी उर्वरकों का संतुलित उपयोग करके अधिक पैदावार तथा अधिक लाभ अर्जित करें। जहां तक यूरिया के उपयोग की बात है, वैज्ञानिकों ने पत्तियों के रंग के आधार पर फसल की नाइट्रोजन आवश्यकता को आंकने की तकनीक विकसित की है। इसे लीफ कलर चार्ट या एलसीसी कहते हैं। सभी मुख्य फसलों में खासतौर से चावल और गेहूं में एलसीसी तकनीक के आधार पर यूरिया का उपयोग करने को बढ़ावा देना चाहिए। इससे यूरिया का कम और कुशल उपयोग सुनिश्चित होता है।

      मुख्य खाद्यान्न फसल में यूरिया के उपयोग को कम करने के लिए फसल से पहले दलहनी फसलों को हरी खाद,चारे की फसल या अन्य फसल के रूप में उपयोग करने से नाइट्रोजन की आवश्यकता 25 से 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है। फसल प्रणाली और सिंचाई की सुविधा को देखते हुए उपयुक्त दलहनी फसल का चुनाव किया जा सकता है। यूरिया की खपत को कम करने के लिए नीम लेपित यूरिया के उपयोग को बढ़ावा देने की सिफारिश की गयी है। इससे जहां एक ओर फसल की पैदावार बढ़ती है वहीं दूसरी ओर पानी, मिट्टी और हवा के प्रदूषण की भी रोकथाम होती है। यूरिया के उपयोग को संतुलित करने से देश के लिए कुल यूरिया की मांग में कमी आयेगी, जिससे यूरिया का आयात की जाने वाली मात्रा को कम करना संभव होगा। इस तरह देश की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत करना भी संभव होगा।

      कृषि उत्पादन में यूरिया की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए भारत सरकार द्वारा यूरिया के उत्पादन और किसानों तक इसकी पहुंच को आसान बनाए रखने के लिए लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। यूरिया का उत्पादन बढ़ाने के लिए सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के उपक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे इस समय यूरिया का उत्पादन करने वाले 30 कारखाने देश के विभिन्न भागों में कार्यरत हैं। वर्श 2013-14 के दौरान देश में यूरिया का कुल उत्पादन लगभग 227 लाख टन हुआ, जबकि इसकी खपत लगभग 306 लाख टन दर्ज की गयी। किसानों की मांग के अनुसार यूरिया की आपूर्ति के लिए इस दौरान लगभग 70 लाख टन यूरिया आयात किया गया। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में यूरिया की कीमत में भारी बढ़ोतरी और रुपये के कमजोर पड़ने के कारण यूरिया के सब्सिडी बिल में लगातार इजाफा होता जा रहा है। नई सरकार ने किसानों और भारतीय कृषि के हित को ध्यान में रखते हुए इस वर्श के बजट में उर्वरकों की सब्सिडी को 2,000 करोड़ रुपये बढ़ाकर लगभग 72,968 करोड़ रुपये कर दिया है। इसमें से यूरिया के घरेलू उत्पादन को 38,200 करोड़ रुपये की सब्सिडी तथा यूरिया के आयात पर 12,300 करोड़ रुपये की सब्सिडी देने का प्रावधान किया गया है।

      इस भारी-भरकम सब्सिडी का लक्ष्य यह है कि किसानों को यूरिया अपेक्षाकृत कम कीमत पर उपलब्ध होता रहे, जिससे वे इसका यथोचित उपयोग करके कृषि उत्पादन को बढ़ा सकें। गौरतलब है कि यूरिया की कीमत में सरकार द्वारा पिछले कई वर्शों से बढ़ोतरी नहीं की जा रही है। सन् 2002 से 2010 तक के आठ वर्शों में यूरिया की कीमत लगातार लगभग 4,830 रुपये प्रति टन रखी गयी। सन् 2010 में 10 प्रतिशत की मामूली बढ़ोतरी के साथ इसकी कीमत 5,310 रुपये प्रति टन की गयी। दो साल बाद 2012 में 50 रुपये प्रति टन की बेहद मामूली बढ़ोतरी के बाद इसकी कीमत 5,360 रुपये प्रति टन रखी गयी, जो अभी तक बरकरार है।     

      केन्द्र में नई सरकार के गठन के साथ ही रसायन व उर्वरक मंत्रालय द्वारा यूरिया का उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों को तेज किया गया। मंत्रालय द्वारा देश के यूरिया उत्पादकों के साथ संपर्कों को गहन बनाया गया  और उनकी समस्याओं को दूर करने के प्रयास किये गये है। इसी का परिणाम है कि जून से नवम्बर, 2014 के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र, सहकारी क्षेत्र और निजी क्षेत्र के उत्पादकों की उत्पादन क्षमता का 100 प्रतिशत से भी अधिक उपयोग संभव हुआ, जिससे इन क्षेत्रों में यूरिया का उत्पादन बढ़कर क्रमषः 35.37, 32.39 और 47.05 लाख टन दर्ज किया गया। मंत्रालय का दूरगामी लक्ष्य है कि यूरिया उत्पादन के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाया जाये। यूरिया उत्पादन के प्रयासों को गहन बनाने की कड़ी में देश के बाहर यूरिया कारखाने लगाने की भी योजना है। हाल में ईरान में 5,000 करोड़ रुपये के निवेश से यूरिया उत्पादन प्लांट की स्थापना को मंजूरी दी गयी है और ईरान सरकार के सहयोग से इसे शीघ्र ही सक्रिय करने की योजना है।

      केन्द्र सरकार ने उर्वरक उत्पादन के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई कदम उठाएं हैं। इसके अंतर्गत एक इंटरनेट आधारित ऑनलाइन उर्वरक निगरानी प्रणाली विकसित की गयी है, जिससे उर्वरकों की उपलब्धता पर लगातार निगाह रखी जा सकती है। इस प्रणाली में उर्वरकें के उत्पादन, वितरण, खरीद और बिक्री जैसे सभी प्रमुख पहलुओं पर लगातार अपडेट दर्ज किये जाते हैं। कुल मिलाकर सरकार का प्रयास है कि कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसानों को उचित कीमत पर यूरिया तथा अन्य उर्वरक उपलब्ध होते रहें। इसी में देश की खाद्य सुरक्षा निहित है।

(पीआईबी फीचर)

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विजयलक्ष्‍मी कासोटिया/एएम/पीवी-212  

पूरी सूची - 1-04-2015

 

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