खरबूजा की खेती करें और भी उन्नत तरीके से जानें इसको किस प्रकार करना चाहिए

खरबूजा की खेती करें और भी उन्नत तरीके से जानें इसको किस प्रकार करना चाहिए

नदियों के किनारे कछारी भूमि में खरबूजे की खेती की जाती है मैदानी क्षेत्रों में उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि सर्वोतम मानी गई है पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करें इसके बाद 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर चलाएँ |

जलवायु का प्रयोग 

इसके लिए उच्च तापमान और शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है इसकी सफल खेती के लिए 44-22सेल्सियस तापमान सर्वोत्तम माना गया है खरबूजे की फसल को पाले से अधिक हानी होती है फल पकने के समय यदि भूमि में अधिक नमी रहेगी तो फलों की मिठास कम हो जाती है |

उन्नत किस्मे निम्न प्रकार  है 

पूसा शरबती एक उन्नत प्रकार की किस्म है जानिए

इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान नई दिल्ली द्वारा किया गया है संकरीकरण द्वारा विकसित इस किस्म की  लताएं हलकी फैली हुई होती है इसकी पत्तियां हरी और ५ खण्डों में विभक्त होती है फल गोल , हरी धारियों के और जालीदार छिलके वाले होते है गुदा मोटा व हलके रंग का होता है और बीज गुहा छोटी होती है अच्छी गंध वाला फल बहुत मीठा होता है जिसमे कुल घुलनशील शर्करा की मात्रा 10-12% तक होती है फल का भार 09-10किलो ग्राम तक का होता है और इसे 4-5 दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है उ. भारत में नदियों के किनारे और अन्य खेतों में बोने के लिए उपयुक्त है यह  किस्म 80-85 दिनों में पक जाती है यह प्रति हे.100-150 क्विंटल तक उपज दे देती है |

पूसा मधु रस किस्म किस प्रकार है 

इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान नई दिल्ली द्वारा किया गया है राजस्थान के संकलनों से प्राप्त किया गया है एक चयन जिसकी लताएँ अधिक मजबूत और अधिक फैली हुई होती है पत्तियां पूर्ण रूप से हरी होती है फल गोल व दोनों सिरों से कुछ चपटा होता है इसका छिलका चिकना पीले रंग का और हरी धारियों वाला होता है गुदा हल्का नारंगी रंग का रस दार , अच्छी गंध वाला मीठा होता है जिसमे कुल घुलनशील शर्करा की मात्रा 12-14% तक होती है फल का भार लगभग १ किलो ग्राम होता है यह 90-95 दिनों में तैयार होने वाली किस्म है उ. भारत में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है यह प्रति हे.120 -125  क्विंटल तक उपज दे देती है |

हरा मधु एक प्रकार की किस्म है 

इस किस्म का विकास पंजाब कृषि वि.वि. लुधियाना से किया गया है यह मिठास और पैदावार की दृष्टि से एक अत्यंत उत्तम किस्म है इसका गुदा हल्का हरा होता है पहला फल आठवीं गांठ पर लगता है और बेल की औसत लम्बाई 2-3 मीटर होती है |

पंजाब सुनहरी को जानें 

इस किस्म का विकास पंजाब कृषि वि.वि. लुधियाना द्वारा किया गया है इस किस्म के फल हरा मधु नामक किस्म से 12 दिन पहले तैयार हो जाते है और बोने के 77 दिन बाद तैयार हो जाते है फल का भार 700 -800 ग्राम होता है प्रत्येक बेल में 2-3 फल लगते है फल हलके भूरे रंग के होते है गूदा नारंगी रसदार मोटा होता है फल खाने में अत्यंत मीठे स्वादिष्ट होते है |

दुर्गापुर मधु क्या है 

इस किस्म का विकास उदयपुर वि.वि. के सब्जी अनुसन्धान केंद्र दुर्गापुर राजस्थान द्वारा किया गया है इसके फल गोलाकार होते है छिलका हरे रंग का होता है जिस पर हरे रंग की धारियां होती है  फल का गूदा हलके हरे रंग का होता है जो खाने में अत्यंत मीठा एवं स्वादिष्ट होता है |

अर्का राजहंस को जानें इस प्रकार 

इस किस्म का विकास भारतीय बागवानी अनुसन्धान संस्थान बंगलौर कर्नाटक द्वारा किया गया है यह एक अगेती किस्म है फल मध्यम आकार से बड़े आकार तक होते है जिनका भार 1.25.2 किलो ग्राम तक का होता है फल गोल या थोड़े अंडाकार होते है फलों में 11-17%तक मिठास होती है फलों का गूदा घना ठोस व सफ़ेद होता है इसकी भण्डारण और यातायात क्षमता बहुत अच्छी है यह पहली किस्म है जिसमे चूर्णी फफूंदी नहीं लगती है यदि भूमि में उचित मात्रा में व समय पर खाद एवं उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाए तो प्रति हे. 286 क्विंटल तक उपज मिल जाती है निर्यात के लिए यह एक अति उत्तम किस्म है |

अर्का जीत क्या है जानें 

इस किस्म का विकास भारतीय बागवानी अनुसन्धान संस्थान बंगलौर द्वारा किया गया है यह एक अगेती किस्म है इस किस्म के फल छोटे नारंगी रंग के और देखने में अत्यंत आकर्षक लगते है फल का भार 300-500 ग्राम का होता है गूदा सफ़ेद और मध्यम ठोस होता है सुगंध मनमोहक होती है इस किस्म की प्रमुख विशेषता यह की इसमें टमाटर से अधिक विटामिन सी पाया जाता है यह एक बौनी किस्म है इसलिए प्रति हे. अधिक पौधे उगाए जा सकते है इसे खेतों और नदियों के किनारे सुगमता से उगाया जा सकता है यह प्रति हे. 160 क्विंटल तक उपज मिल जाती है |

खरबूजा नवीनतम किस्मों  के बारे में जानें 

एम्.एच. डब्ल्यू 6 

गुजरात खरबूजा - सेलेक्शन 262

गुजरत खरबूजा - २ सेलेक्शन 740

नरेंद्र खरबूजा 1

हिसार मधुर 

संकर किस्मे :-

नरेंद्र खरबूजा - 1

हिसार मधुर 

सोना , स्वर्ण, पंजाब एम् 3, एम्- 4 पंजाब हाईब्रिड , पूसा रसराज |

बीज बुवाई का उचित समय 

बोने का कौन सा समय ठीक है जानें  

इसकी बुवाई नवम्बर - मार्च तक की जाती है जिन क्षेत्रों में पाले का भय नहीं रहता है वहां पर इसकी बुवाई नवम्बर -दिसंबर में की जा सकती है उ. भारत में पाले का भय रहता है अत: इसकी बुवाई फ़रवरी मार्च में की जाती है अगेती खेती की बुवाई नवम्बर - दिसंबर में की जाती है पर्वतीय क्षेत्र में इसकी बुवाई अप्रैल के मध्य में की जाती है |

  बुवाई की विधि करें उचित तरीके से 

मैदानी क्षेत्रों में इसकी बुवाई डौलियों पर की जाती है बुवाई के पूर्व १५० से.मि. की दुरी पर डौलियां  बना ली जाती है बाद में ६०-९० से.मि. की दुरी पर अंकुरित बीजों को १.५-२ से. मि. गहरा बो दिया जाता है प्रत्येक स्थान पर ४-५ बीज बोने होते है उगने पर केवल दो स्वस्थ पौधे रहने दिए जाते है |

नदियों के किनारे कछारी मिटटी में दिसंबर में १ मी.गहरी और ६० से.मी. चौड़ी नालियां बनाई जाती है खुदाई करते समय उपरी आधी बालू का एक ओर ढेर लगा लिया जाता है आधी बालू को खोदकर उसमे नालियों को लगभग ३० से.मी. तक भर देते है  इन्ही नालियों में १.५ मी. की दुरी पर छोटे-छोटे थाले बनकर उनमे बीज बो देते है २ नालियों के मध्य तीन मी. का फासला रखना चाहिए पौधों को पाले से बचाने के लिए उ.पश्चिमी दिशा में टट्टियाँ लगा दी जाती है |

आर्गनिक खाद का करें प्रयोग 

खरबूजा की खेती में अधिक मात्रा में पैदावार लेने के लिए उसमे पर्याप्त मात्रा में आर्गनिक खाद , कम्पोस्ट खाद का होना अनिवार्य है इसके लिए एक हे. भूमि में ४०-५० क्विंटल अच्छे तरीके से सड़ी हुई गोबर की खाद  और आर्गनिक खाद चाहिए 

और जब फसल २०-२५ दिन की हो जाए तब उसमे 10 ग्राम  फोल्विक असिड 10 एमिनो एसिड 15 ग्राम पोटैशियम हुमोनातको ४००-५०० ली. पानी में मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर  इस मिश्रण पम्प द्वारा फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें और हर १५-२० दिन के अंतर से दूसरा व तीसरा छिड़काव करें |

सिचाई करें उचित प्रकार 

मैदानी क्षेत्रों में उगी फसल की प्रति सप्ताह हलकी सिचाई करते रहे फल निर्माण के बाद सिचाई की अवधि बढ़ा दें अन्यथा फलों की मिठास कम हो जाएगी नदियों के किनारे उगी फसल में शुरू में २-३ सिचाइयां घेड़े, बाल्टी या ढेंकुली द्वारा करें |

खरपतवार नियंत्रण कैसे करें 

खरबूजे की लताएँ भली-भांति फैलने से पूर्व १-२ बार निराई-गुड़ाई कर खरपतवारों को नष्ट  कर दें |

कीट नियंत्रण से बचे 

लालड़ी क्या है

पौधों पर दो पत्तियां निकलने पर इस कीट का प्रकोप शुरू हो जाता है यह कीट पत्तियों और फूलों को खाता है इस कीट की सुंडी भूमि के अन्दर पौधों की जड़ों को काटती है |

रोकथाम करें 

इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गौ मूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मि.ली.मिश्रण को प्रति पम्प में डालकर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें |

 मक्खी फल में कैसे प्रवेश करती है 

यह मक्खी फलों में प्रवेश कर जाती है और वहीँ पर अंडे देती है अण्डों से बाद में सुंडी निकलती है वे फल को वेकार कर देती है यह मक्खी विशेष रूप से खरीफ वाली फसल को अधिक हानी पहुंचाती है |

रोकथाम करें 

इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गौ मूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मि.ली.मिश्रण को प्रति पम्प में डालकर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें |

सफ़ेद ग्रब क्या है 

यह कीट कद्दू वर्गीय पौधों को काफी हानी पहुंचाता है यह भूमि के अन्दर रहता है और पौधों की जड़ों को खा जाता है जिसके कारण पौधा सूख जाता है |

रोकथाम कैसे करें

 इसकी रोकथाम के लिए खेत में बीज बोने के पूर्व नीम की खाद का प्रयोग करें |

किन किन रोगो पर नियंत्रण पाया जा सकता है   

चूर्णी फफूंदी से नियंत्रण

यह रोग ऐरीसाइफी सिकोरेसिएरम नामक फफूंदी के कारण होता है पत्तियां एवं तनों पर सफ़ेद दरदरा और गोलाकार जाल सा दिखाई देता है जो बाद आकार में बढ़ जाता है और कत्थई रंग का हो जाता है पूरी पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है और पौधों की बढ़वार रुक जाती है |

रोकथाम करें 

इसकी रोकथाम के लिए रोगी पौधों को उखाड़ कर जला दें और नीम का काढ़ा या गौ मूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मि.ली.मिश्रण को प्रति पम्प में डालकर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें |

मृदुरोमिल फफूंदी एक रोग 

यह रोग स्यूडोपरोनोस्पोरा क्यूबेन्सिस नामक फफूंदी के कारण होता है रोगी पत्तियों की निचली सतह पर कोणाकार धब्बे बन जाते है जो ऊपर से पीले या लाल भूरे रंग के होते है |

रोकथाम 

इसकी रोकथाम  के लिए नीम का काढ़ा या गौ मूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मि.ली.मिश्रण को प्रति पम्प में डालकर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें |

 मोजैक का प्रयोग 

यह विषाणु के द्वारा होता है पत्तियों की बढ़वार रुक जाती है और वे मुड़ जाती है फल छोटे बनते है उपज कम मिलती है यह रोग चैंपा द्वारा  फैलता है |

रोकथाम करें 

बुवाई के लिए रोग रहित बीज उपयोग करें, रोग रोधी किस्मे उगाएँ, रोगी पौधों को उखाड़ कर जलाएं, चयन विधि द्वारा रोग रोधी किस्मों का विकास किया जाए और नीम का काढ़ा या गौ मूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अच्छी तरह से मिश्रण तैयार कर २५० मि.ली.मिश्रण को प्रति पम्प में डालकर फसल में तर-बतर कर छिड़काव करें |

एन्थ्रेक्नोज क्या है 

यह रोग कोलेटोट्राईकम स्पीसीज के कारण होता है इस रोग से पत्तियों और फलों पर लाल काले धब्बे बन जाते है बाद में ये आपस में मिल जाते है यह रोग बीज द्वारा फैलता है |

रोकथाम करें 

बीज को बोने से पूर्व नीम का तेल या गौमूत्र या कैरोसिन से उपचारित कर बोना चाहिए और उचित फसल चक्र अपनाए और खेत को खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए |

तुड़ाई कैसे करें 

खरबूजे की तुड़ाई कई बातों पर निर्भर करती है जिसमे उसकी किस्म , तापमान, बुवाई का समय , मंडी की दुरी ,  लदान विधि आदि बुवाई के ९०-१०० दिन बार फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है पके फल तोड़ने पर सुगमता से डंठल से अलग हो जाते है |

उपज का उन्नत तरीके से 

 यह प्रति हे. १२५-१५० क्विंटल तक उपज मिल जाती है खरबूजे की पूसा रसराज नामक किस्म से २५० क्विंटल तक उपज मिल जाती है |

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