ओशो प्रेम और ध्यान

ओशो – प्रेमपूर्ण हो जाओ

ओशो – प्रेमपूर्ण हो जाओ

सीने में रह-रह के उबलती है , न पूछ

अपने दिल पे मुझे काबू ही नहीं रहता है ।।
कवि लिखते रहे इंकलाब की बातें भी , बगावत के गीत भी ।
मगर कवियों से कहीं बगावत हो सकती है !

गीत ही रच सकते हैं , गीत ही गुनगुना सकते हैं ।

उनके गीत बांझ है ।

उनके गीत नपुंसक हैं ।
सिवाय ध्यान के न कभी कोई क्रांति हुई है न हो सकती है ।

ध्यान का अर्थ हैः – हटा दो सारी अड़चनें , जो दूसरो ने तुम पर थोप दी है ;
हटा दो सारे विचार और पक्षपात —- जाति के , समाज के , 

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ध्यान : अपने विचारों से तादात्मय तोड़ें

 तादात्मय तोड़ें

अपनी आंखें बंद करें, फिर दोनों आंखों को दोनों भवों के बीच में एकाग्र करें, ऐसे जैसे तुम दोनों आंखों से देख रहे हों। अपनी संपूर्ण एकाग्रता वहां ले जाएं। 

एक सही बिंदु पर तुम्हारी आंखें स्थिर हो जाएंगी। और अगर तुम्हारी एकाग्रता वहां है तो तुम्हें अजीब सा अनुभव होगा: पहली बार तुम्हारा साक्षात्कार तुम्हारे विचारों से होगा; तुम साक्षी हो जाओगे। यह चित्रपट की तरह है: विचार दौड़ रहे हैं और तुम साक्षी हो।  Read More : ध्यान : अपने विचारों से तादात्मय तोड़ें about ध्यान : अपने विचारों से तादात्मय तोड़ें