ओशो – प्रेमपूर्ण हो जाओ
Submitted by Anand on 3 January 2021 - 12:17amसीने में रह-रह के उबलती है , न पूछ
अपने दिल पे मुझे काबू ही नहीं रहता है ।।
कवि लिखते रहे इंकलाब की बातें भी , बगावत के गीत भी ।
मगर कवियों से कहीं बगावत हो सकती है !
गीत ही रच सकते हैं , गीत ही गुनगुना सकते हैं ।
उनके गीत बांझ है ।
उनके गीत नपुंसक हैं ।
सिवाय ध्यान के न कभी कोई क्रांति हुई है न हो सकती है ।
ध्यान का अर्थ हैः – हटा दो सारी अड़चनें , जो दूसरो ने तुम पर थोप दी है ;
हटा दो सारे विचार और पक्षपात —- जाति के , समाज के ,
देश के , धर्म के , मजहब के , फिरकापरस्ती के , मतवादों के , Read More : ओशो – प्रेमपूर्ण हो जाओ about ओशो – प्रेमपूर्ण हो जाओ