चुंबक चिकित्सा क्या है इसके लाभ ,सावधानियां और दुष्प्रभाव

चुंबक चिकित्सा के सिद्धांत 

इस अखिल ब्रह्माण्ड की रचना में हम विचार करें तो चुम्बकीय शक्ति का ही समावेश-सा दीखता है। धरती, सूर्य, तारे और ग्रह सभी चुम्बक-जैसा कार्य करते हैं। आधुनिक विज्ञानने भी चुम्बकीय शक्ति से विभिन्न प्रका रके उपयोगी यन्त्रों की रचना की है।

चुम्बक-चिकित्सा का सैद्धान्तिक आधार यह है। कि हमारा शरीर मूल रूप से एक विद्युतीय संरचना है। और प्रत्येक मानव के शरीर में कुछ चुम्बकीय तत्त्व जीवन के आरम्भ से लेकर अन्ततक रहते हैं। चुम्बकीय शक्ति रक्तसंचार-प्रणाली के माध्यम से मानव-शरीर को प्रभावित करती है। नाडियों और नसों के द्वारा खून शरीर के हर भागों में पहुँचता है। इस प्रकार चुम्बक हमारे शरीर के प्रत्येक हिस्से को प्रभावित करने की शक्ति रखता है। इस सम्बन्ध में मूल बात यह है कि चुम्बक रक्तकणों के होमोग्लोबिन तथा साइटोकेम नामक अणुओं में निहित लौह-तत्त्वों पर प्रभाव डालता है। इस तरह चुम्बकीय क्षेत्र के सम्पर्क में आकर खून के गुण और कार्य में लाभकारी परिवर्तन आ जाता है और इससे शरीर के अनेकों रोग ठीक हो जाते हैं।

चुम्बक-चिकित्सा-पद्धति में न तो कोई कष्ट है। और न ही किसी प्रतिक्रियाकी आशंका। अत: बालवृद्ध, स्त्री-पुरुष आदि सभी रोगियों पर इसका प्रयोग सरलता एवं सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
प्राचीन काल में भी आकर्षण शक्ति एवं चुम्बकीय शक्ति का पूर्ण परिज्ञान एवं प्रयोग था। अथर्ववेद के प्रथम काण्ड सूक्त १७ मन्त्र ३-४ में स्त्री रोगों के उपचा रमें आकर्षण शक्ति के प्रयोग का उल्लेख है। मृत्यु के पूर्व मनुष्यका सिर उत्तर दिशा एवं पैर दक्षिण दिशाकी ओर करने की प्राचीन काल से चली आ रही प्रथा भी चुम्बकीय ज्ञानपर आधारित है। ऐसा करनेसे धरती और शरीर में चुम्बकीय क्षमता हो जाने के कारण मृत्यु के समय की पीडा-वेदना कम हो जाती है। इसी प्रकार रत्न-धारण के पीछे भी यही विज्ञान काम करता है। योग की विभिन्न क्रियाओं से शरीर में जो प्रतिक्रियाएँ पैदा की जाती हैं, वे चुम्बक के प्रयोगसे भी उत्पन्न की जा सकती हैं।

 

विदेशों में भी चुम्बकीय ज्ञान प्राचीन काल में था। मिस्र की राजकुमारी अपनी सुन्दरता बनाये रखनेके लिये | अपने माथे पर एक चुम्बक बाँधे रहती थी। स्विस विद्वान् डॉक्टर पैरासेल्सस, डॉ० मैलमैर, डॉ० गैलीलियो, डॉ० माहकैलफै रेडे तथा होम्योपैथीके जनक डॉ० हैनीमैनने भी चुम्बक-चिकित्साका सफल प्रयोग किया है। अमेरिका में न्यूयार्क के डॉ० मैक्लीन ने चुम्बक से कैंसर-जैसी असाध्य बीमारी का सफल इलाज किया है। रूसवाले चुम्बकीय जल से दर्द, सूजन यहाँ तक कि पथरी-जैसे कठिन रोगों का भी इलाज कर रहे हैं। वे चुम्बकीय जल को वंडर वाटर अर्थात् चमत्कारी जल कहते हैं। जापानियोंने अनेक चुम्बकीय उपकरण जैसे-बाजूबंद, हार, पेटियाँ, कुर्सियाँ, बिछौने आदि बनाये हैं और वे इनसे विभिन्न प्रकारके रोगों का इलाज करते हैं। इंग्लैंडमें खून के प्लाज्मा और अन्य कोशिकाओं से रक्त-कोशिकाओं को अलग करने में अब चुम्बक का प्रयोग किया जाता है। इससे पहले यह काम रासायनिक पद्धति से होता था। डेनमार्क, नार्वे, फ्रांस, स्विटजरलैंड आदि अनेक पश्चिमी देशों में चिकित्सा के क्षेत्रों में चुम्बक का प्रयोग सफलता से किया जा रहा है।

भारत में भी अनेक होम्योपैथिक और एलोपैथिक डॉक्टर चिकित्सा में चुम्बकीय उपकरणों का प्रयोग सफलता से कर रहे हैं। चुम्बकीय जल का पौधों पर भी आश्चर्यजनक असर पड़ता है। ऐसे जल से सींचने पर पौधों में सामान्य की अपेक्षा २० से ४० प्रतिशत तक अधिक वृद्धि देखी गयी है।

चुंबक चिकित्सा के प्रकार :

इलाज-हेतु चुम्बकों को मोटे तौर पर दो वर्गों में बाँटा जा सकता है। पहले वर्ग में प्राकृतिक खनिज हैं। जिनमें लौह-चट्टानें प्रमुख हैं। ऐसे चुम्बकों की शक्तिमें आवश्यकतानुसार घटाना-बढ़ाना सम्भव नहीं होने के कारण इनका इलाज-हेतु प्रयोग बहुत ही कम किया जाता है।
दूसरे वर्ग में मनुष्य द्वारा बिजली से चार्ज करके तैयार किये गये चुम्बक आते हैं। जिनमें आवश्यकतानुसार कम-ज्यादा चुम्बकीय शक्ति समाविष्ट की जा सकती है और जिन्हें शरीर के विभिन्न अङ्गों पर प्रयोग-हेतु सुविधाजनक आकारों में तैयार किया जाता है-

(१) विद्युत्-चुम्बक एवं (२) स्थायी चुम्बक।

(१) विद्युत-चुम्बक-
वे चुम्बक हैं जो बिजलीकी तरंग मिलने पर ही काम कर सकते हैं। विद्युत के अभाव में वे चुम्बकीय कार्य नहीं कर सकते। ऐसे चुम्बक विद्युत्यन्त्रों एवं अनेक अन्य यन्त्रों में प्रयुक्त किये जाते हैं।

(२) स्थायी चुम्बक-
स्थायी चुम्बक बिजलीसे चार्ज किये जाते हैं, परंतु एक बार चार्ज हो जानेके बाद उन्हें विद्युत्-तरंगों की आवश्यकता नहीं रहती। ये लम्बे समय तक अर्थात् वर्षों तक अपनी चुम्बकीय शक्ति बनाये रखते हैं। कुछ वर्षों के बाद यदि शक्ति कम हो जाय तो उन्हें दुबारा चार्ज किया जा सकता है और ये फिर कई वर्षों तक काम करते रहते हैं। सामान्य रूप से चुम्बक-चिकित्सा में ये स्थायी चुम्बक ही काम में लाये जाते हैं। इनकी इसी प्रकृति के कारण अन्यान्य समस्त चिकित्सा पद्धतियों से चुम्बक-चिकित्सा पद्धति सबसे सस्ती सिद्ध होती है। चुम्बक-चिकित्सा में १०० गॉस से १५०० गॉस तक के शक्तिसम्पन्न चुम्बकों का प्रयोग प्रायः इस प्रकार किया जाता है

 

१-सिरेमिक के कम शक्ति सम्पन्न चुम्बक कोमल अङ्ग जैसे-आँख, कान, नाक, गला आदि के काम में लाये जाते हैं।
२-धातु से बने मध्यम शक्तिसम्पन्न चुम्बक बच्चों तथा दुर्बल व्यक्तियों के लिये प्रयोग में लाये जाते हैं।
३-धातुसे बने हाई पावर चुम्बक अन्य सभी रोगों तथा रोगियों के लिये प्रयोग में लाये जाते हैं।

आमतौर पर प्रतिदिन रोगी को दस मिनट ही चुम्बक लगाना पर्याप्त है, पर कुछ पुरानी तथा लम्बी अवधिकी बीमारियों में जैसे—गठिया, लकवा, पोलियो, साइटिका दर्द आदि में चुम्बक लगाने की अवधि बढ़ायी जा सकती है। चुम्बक-चिकित्सा के बारे में अन्य लाभकारी तथा कुछ विशेष बातें इस प्रकार हैं-

चुंबकीय चिकित्सा के फायदे 

(१) चुम्बकीय तरंगें शरीरके भीतर जमा हो जानेवाले हानिकर तत्त्वों (कैलशियम, कोलस्ट्रोल आदि) को साफ करके खून को पतला और साफ बनाती हैं। इससे हृदयगति सहज बनती है, रक्तचाप नियमित रहता है और घबराहट दूर हो जाती है।

(२) चुम्बक कोशिकाओं को विकसित करके उन्हें बढ़ा देता है, स्नायुओं को नया जीवन देता है।

(३) चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं-उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव । उत्तरी ध्रुव कीटाणुओं को मारता है और फोड़ा, दाद, गठिया तथा चर्मरोगों के लिये यह काम में लाया जाता है। दक्षिणी ध्रुव शरीर को गर्मी और शक्ति प्रदान करता है।

(४) चुम्बक का प्रयोग रोग के इलाज और उसकी रोकथाम-दोनों के लिये किया जाता है।

(५) एक पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति भी नीरोग बने रहनेके लिये चुम्बक तथा चुम्बकीय जलका नियमित प्रयोग कर सकता है।

(६) चुम्बक के उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों पर जल, तेल, दूध आदि पदार्थ रखे जानेपर उनमें उसी प्रकार की चुम्बकीय शक्तिका समावेश हो जाता है, जिसका प्रयोग विविध रोगोंके उपचारमें किया जाता है।

(७) चुम्बकीय शक्ति प्लास्टिक, कपड़े, गत्ते, शीशे, रबड़, स्टेनलेस स्टील तथा लकड़ी में से भी पायी जा सकती है।

(८) प्रायः चुम्बक के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव चुम्बक के टूटने पर भी अलग नहीं होते, किंतु चिकित्सा के प्रयोग-हेतु अलग-अलग ध्रुवों के चुम्बकों का निर्माण किया गया है।

चुम्बक-चिकित्सा लेते समय कुछ सावधानियाँ भी बरतनी आवश्यक हैं, जो इस प्रकार हैं

चुंबकीय चिकित्सा में सावधानियां और नुकसान :

(१) चुम्बक लगाने के बाद एक घंटे तक कोई ठंडी चीज खानी या पीनी नहीं चाहिये।
(२) लगभग दो घंटे तक नहाना भी वर्जित है।
(३) भोजन करने के दो घंटे बाद ही चुम्बक लगाना चाहिये तथा चुम्बक लगाने के दो घंटे बाद ही भोजन करना चाहिये।
(४) गर्भवती स्त्रियों तथा शरीरके कोमल अङ्गों पर शक्तिशाली चुम्बकों का प्रयोग करना वर्जित है।
(५) किसी-किसी को चुम्बक की शक्ति ग्रहण करने की क्षमता नहीं होती है। ऐसे रोगी को मिचली, वमन, शरीर में झुनझुनाहट, सिर चकराने की प्रतिक्रिया होने लगती है। ऐसी दशा में एक जस्ते की प्लेट पर पाँच मिनट हाथ रखने से चुम्बक का प्रतिकूल प्रभाव समाप्त हो जाता है।

चुम्बक-चिकित्सा क्षेत्र में हुए अबतक के विकासों, प्रयोगों और अनुभवों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि चुम्बक मनुष्यों और पशुओं के विभिन्न रोगों के उपचार का एक अच्छा माध्यम है। चुम्बकीय चिकित्सा पद्धति में कोई ओषधि नहीं दी जाती। अतः इससे केवल लाभ ही हो सकता है हानि नहीं। अन्य चिकित्सा-पद्धतियों की औषधियाँ महँगी और कभी
कभी हानिकारक भी हो सकती हैं। भारत-जैसे देशके लिये तो यह पद्धति बहुत उपयोगी है।

 
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