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जामुन की खेती

गहरे काले रंग का अंडाकार छोटा सा फल है जामुन, हल्के खट्टे, मीठे और कसौले स्वाद से भरपूर इस फल को खाने के बाद जीभ का रंग बैंगनी हो जाता है। बचपन में जामुन खाने के बाद अधिकतर बच्चे अपनी बैंगनी जीभ एक दूसरे को दिखाते रहते हैं.... लेकिन बचपन में जामुन के स्वाद और खेल में हमें यह नही पता होता कि जामुन न केवल स्वास्थ्य के लिए बेहद उपयोगी है, बल्कि इसकी खेती भी किसानों के लिए आर्थिक तौर पर लाभदायक है।
ऊंचा और सदाबहार जामुन का पेड़ पूरी तरह से भारत के जमीन की उपज है। यह पौधा हमारे देश के हर हिस्से में पाया जाता है। जामुन के पौधोरोपण के लिए जून- जुलाई का महीना सबसे बेहतर माना जाता है। इस पौधे को लवणीय, क्षारीय, आर्द्र जलभराव वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। नदियों और नहरों के किनारे मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिए जामुन का पेड़ काफी उपयोगी है। इसे बलुई मिट्टी में नहीं ऊगाया जा सकता है। अभी तक व्यवसायिक तौर पर योजनाबद्ध तरीके से जामुन की खेती बहुत कम देखने को मिलती है। देश के अधिकांश हिस्से में अनियोजित तरीके से ही किसान इसकी खेती करते हैं। अधिकतर किसान जामुन के लाभदायक फल और बाजार के बारे में बहुत कम जानकारी रखते हैं, शायद इसी कारणवश वो जामुन की व्यवसायिक खेती से दूर हैं। जबकि सच्चाई यह है कि जामुन के फलों को अधिकतर लोग पसंद करते हैं और इसके फल को अच्छी कीमत में बेचा जाता है।
जामुन की खेती में लाभ की असीमित संभावनाएं हैं। इसका प्रयोग दवाओं को तैयार करने में किया जाता है, साथ ही जामुन से जेली, मुरब्बा जैसी खाद्य सामग्री तैयार की जाती है। मधुमेह रोगियों के लिए जामुन का सेवन काफी अच्छा माना जाता है। इसके कच्चे फल के रस से सिरका तैयार किया जाता है। जामुन के पेड़ की छाल के उपयोग से रंगाई और चमड़े का शोधन किया जाता है।
जामुन किसानों के लिए बहुउपयोगी है। इसका पूरा लाभ किसान तभी उठा सकता है जब वह पूरी जानकारी के साथ जामुन की खेती शुरू करे। जामुन की खेती और इससे जुड़े अन्य पहलुओं को जानने के लिए देखें “बातें खेती की” …