संपर्क : 7454046894
चंद्रयान के बारे में ये सब आपको कहीं भी नहीं पता चलेगा, पढ़ लो.
आज की रात देश की नींद के वक़्त चंद्रयान – 2 चांद पर उतरेगा. बहुत से लोग होंगे जो जागकर ये जानना चाह रहे होंगे कि क्या हो रहा है, भारत के वैज्ञानिकों की मेहनत कितनी रंग लाई और सबसे ज़रूरी बात? चांद पर हमें क्या मिलने वाला है?
लेकिन इन सब बातों का जवाब तो हमें सितम्बर 6 और 7 की दरम्यानी रात मिलेगा. अनुमानित समय है 1:30 बजे से 2:30 बजे के बीच. लेकिन हम ये भी जानना चाह रहे हैं कि भारत के श्रीहरिकोटा से 22 जुलाई को लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान ने कब क्या किया? किस-किस घड़ी चंद्रयान ने कौन-कौन से करतब दिखाए? कैसे पृथ्वी से उठकर चंद्रयान धीरे-धीरे चंद्रमा की ओर पहुंचा? हम बताएंगे आपको.
लॉन्चिंग से लेकर अब तक की कहानी क्या है?
15 जुलाई : चंद्रयान 2 की लॉन्चिंग की तय तारीख. मगर लॉन्च से कुछ घंटे पहले खबर आई कि लॉन्चिंग नहीं होगी. इसरो यानी इंडियन स्पेस रीसर्च आर्गेनाईजेशन ने बताया, चंद्रयान की सवारी गाड़ी यानी रॉकेट में जो ईंधन है, उसके प्रेशर में कुछ गड़बड़ है. रिस्क नहीं ले सकते. इस रॉकेट का नाम GSLV (जियो सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) मार्क – 3 था.
22 जुलाई : लॉन्च विंडो का आखिरी दिन. ये विंडो कैसी. एक तय समय के अंदर ही रॉकेट भेज सकते हैं. ताकि वो स्पेस के ट्रैफिक से गुजरता हुआ मुकाम तक पहुंचे. हमारे चंद्रयान के लिए ये विंडो 22 जुलाई को खत्म हो रही थी. मगर उससे पहले ही लॉन्च हो गया. कुछ ही घंटों में चंद्रयान के तीनों रॉकेट अलग हो गए. उससे पहले यान पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो चुका था. ये अभी सीधी रेखा में चंद्रमा की तरफ नहीं जाने वाला था. उससे पहले चंद्रयान को धरती के चारों ओर चार चक्कर काटने थे. दूरी हासिल करने के लिए.
चंद्रयान की लॉन्चिंग (पीटीआई)
24 जुलाई : चंद्रयान ने पृथ्वी की कक्षा के चक्कर लगाने शुरू किए. ये 6 अगस्त तक चला. चार चक्कर. हर चक्कर में चंद्रयान का दायरा बढ़ता गया. इस दौरान कई बार पृथ्वी से वैज्ञानिकों ने चंद्रयान की स्थिति में बदलाव किया. जैसे जैसे चंद्रयान पृथ्वी से दूर होता गया. चंद्रमा करीब आता गया.
7 अगस्त से 1 सितम्बर: पृथ्वी की कक्षा छोड़े वक्त हो गया था. अब बारी थी चंद्रमा की कक्षा में स्थापित होने की. 3 लाख 84 हजार किलोमीटर का सफर. 1 सितंबर को पूरा हुआ.
2 सितम्बर : दोपहर के 1:15 बजे. चंद्रयान अब दो हिस्सों में बंट गया. पहला, ऑर्बिटर, जिसका काम है, ऑर्बिट यानी कक्षा में चक्कर काटना. दूसरा लैंडर, जो चंद्रमा की जमीन पर उतर रहा है. इस लैंडर का हमने नाम रखा है विक्रम. मशहूर स्पेस साइंटिस्ट विक्रम साराभाई के नाम पर. ऑर्बिटर अपने रास्ते आगे बढ़ा. विक्रम लैंडर ने कलाबाजियां कीं. इस दौरान नजर टाली. चांद की सतह पर. जहां उतरना है, वहां का नक्शा रिवाइज करने के लिए. और फिर सफर शुरू किया.
ये सफर 7 सितंबर को रात 1.30 बजे यानी आज रात अपने सबसे अहम पड़ाव पर पहुंचेगा. विक्रम लैंडर आखिरी 35 किलोमीटर का सफर तय करेगा. इसी को साइंटिस्ट बार बार सबसे खौफनाक 15 मिनट कह रहे हैं. वजह, चंद्रमा की जमीन पर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग. यानी हौले से सतह पर रुकना.इसके लिए हरेक सेकंड का हिसाब रखा जाएगा. कैसे. ऐसे
लैंडिंग का हिसाब क्या है?
इस बार चंद्रयान की लैंडिंग पर इतनी बहस क्यों?
इसरो के चेयरमैन के सिवन ने कहा है कि विक्रम लैंडर की लैंडिंग के 35 किलोमीटर की ऊंचाई से उतरने से लेकर बाद के पंद्रह मिनट बेहद डरावने होंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत का बनाया हुआ चंद्रयान चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने जा रहा है. भारत ने पहले जो चंद्रयान अन्तरिक्ष में भेजा था – यानी चंद्रयान – 1 – उसने चंद्रमा की सतह पर क्रैश लैंडिंग की थी.
यहां ये तथ्य भी बेहद ज़रूरी है कि बीते समय में चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग – मतलब धीमे-धीमे लैंडिंग – करने के बहुत सारी कोशिशें नाकाम भी हुई हैं. अपनी लैंडिंग के ठीक पहले विक्रम लैंडर की स्पीड 6 किलोमीटर प्रति सेकंड होगी. मतलब वो एक घंटे में लगभग 22 हज़ार किलोमीटर तय करने की रफ़्तार से चल रहा होगा. बड़े-बड़े हवाई जहाज़ों से भी 20-22 गुना तेज़.
चंद्रयान-2 के बारे में जानकारी देते इसरो के चेयरमैन के. सिवन (पीटीआई)
लेकिन इन महज़ पंद्रह मिनटों के अन्दर विक्रम लैंडर को अपनी स्पीड घटाकर 2 मीटर प्रति सेकंड लानी होगी. यानी एक घंटे में 7 किलोमीटर तय करने की रफ़्तार तक. अगर विक्रम लैंडर ठीक तरीके से और बिना नुकसान पहुंचाए ऐसा कर जाता है, तो ही वह चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कर सकेगा, वरना मुश्किल खड़ी हो सकती है.
इसी साल अप्रैल में इजराइल ने चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने की कोशिश की थी, लेकिन इजराइल का स्पेसक्राफ्ट अपनी स्पीड कम कर पाने में असफल हुआ और चंद्रमा की सतह से जाकर जोर से टकरा गया. अखबारों में प्रकाशित आंकड़े बताते हैं कि अब तक कुल मिलाकर चांद पर मानव, रोवर या उपग्रह भेजने की 109 कोशिशें हो चुकी हैं, जिनमें से 41 प्रयास सफल नहीं हो पाए. ऐसे में के सिवन की चिंता जायज़ है. जानकार ये भी मानते हैं कि कई मौकों पर अंतरिक्ष में स्पीड का और लैंडिंग के समय चांद के गुरुत्त्वाकर्षण का सही अंदाज़ नहीं लग पाता है. ऐसा इस वजह से कि ये सभी यंत्र भेजे तो चांद पर जाते हैं, लेकिन इनको बनाना इनकी टेस्टिंग पृथ्वी पर होती है.
क्या है चंद्रयान-2 का काम?
ये सवाल सभी पूछ रहे हैं. और जवाब हम देंगे. चंद्रयान के कुल तीन प्रमुख हिस्से हैं – ऑर्बिटर, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर. पहले जान लीजिए कि ये हिस्से क्या क्या हैं?
1. ऑर्बिटर : चंद्रयान का इकलौता जो चांद की सतह पर नहीं उतरेगा. उससे लगभग 100 किलोमीटर दूर रहकर चांद की कक्षा में चक्कर काटता रहेगा. एक साल तक 2379 किलो का ये ऑर्बिटर घूमते हुए पढ़ाई करेगा. क्या पढ़ाई?
लैंडर और रोवर एक साथ चन्द्रमा पर टहलते हुए.
2. विक्रम लैंडर :कुल वजन 1471 किलो. और सबसे ज़रूरी काम क्या? प्रज्ञान रोवर को चांद की सतह पर पहुंचाना और दूसरा ज़रूरी काम ये कि चांद की सतह पर मौजूद रहकर प्रज्ञान रोवर, कक्षा में घूम रहे ऑर्बिटर और भारत के इसरो के सेंटर में बैठे वैज्ञानिकों के बीच तालमेल बिठाना. सतह पर चहलकदमी कर रहे रोवर से और ऊपर कक्षा में टहल-टहलकर पढ़ाई कर रहे ऑर्बिटर से जानकारियां आएंगी लैंडर के पास. और लैंडर ये जानकारियां भेजेगा पृथ्वी पर. लेकिन विक्रम लैंडर के भी हिस्से कमाल. क्या हिस्से?
विक्रम लैंडर
एक है Radio Anatomy of Moon Bound Hypertensive Atmosphere छोटे में कहें तो रम्भा. काम करेगा चांद की सतह पर एकदम छोटे-छोटे बदलावों का पता लगाने का. बड़े परिवर्तनों का पता तो ऊपर टहल रहा अपना ऑर्बिटर कर ही रहा है. लेकिन महीन काम करने के लिए है ये रेडियोमीटर.
अगला है Chandra’s Surface Thermo-Physical Experiment यानी CHEST. यानी चंद्रयान का थर्मामीटर. विक्रम लैंडर का वो हिस्सा है, जो चांद की सतह के अन्दर का बुखार नापेगा. इसमें हीट सेंसर लगे हैं. ये चंद्रमा की सतह से 10 सेंटीमीटर अन्दर जाकर चंद्रमा का तापमान नापेगा.
3. प्रज्ञान रोवर : यानी चंद्रयान की गाड़ी. वजन 27 किलो. चंद्रमा की धरती पर उतरे विक्रम लैंडर के पेट से निकलेगा. छः पहियों की मदद से लैंडर के आसपास के 500 मीटर में घूमेगा. और घूम-घूमकर पढ़ाई करेगा. ज्यादा गहरी वाली पढ़ाई. प्रज्ञान रोवर ऑर्बिटर और लैंडर से मिली जानकारी की एकदम नज़दीक से तस्दीक करेगा. पानी खोजना है तो पानी के पास जाएगा. और इसके पास औजार क्या होंगे? दो हैं.
विक्रम लैंडर से बाहर निकलता प्रज्ञान रोवर
पहला तो है Alpha Particle X-ray Spectrometer यानी APXS. हमारी-आपकी हड्डियों का एक्सरे होता है, लेकिन ये स्पेक्ट्रोमीटर ज़मीन का Xray करेगा. चांद की ज़मीन का. और बताएगा कि सोडियम, मैगनीशियम, एल्यूमिनियम, सिलिका, कैल्शियम, टाईटैनियम और आयरन जैसे मिनरल चांद पर मौजूद हैं या नहीं? और हैं तो कितनी मात्रा में हैं?
और दूसरा है Laser Induced Breakdown Spectroscope यानी LIBS. इसमें लगा हुआ है लेज़र. हल्का फुल्का नहीं. मजबूत वाला. ये चांद की ज़मीन पर तरह-तरह के रेडिएशन का पता करेगा. और कोई तत्व बहुत ज्यादा मात्रा में मौजूद है तो उसका भी पता लगा लेगा.
Comments
Anand
7 September 2019 - 12:57am
Permalink
Narendra Modi