ब्रह्मांड

वर्महोल द्वारा यात्रा

एक अन्य उपाय है वर्महोल से यात्रा। वर्महोल ऐसे सैद्धांतिक शार्टकट है जो अंतरिक्ष के दो बिंदुओं को जोड़ते है। इनकी आस्तित्व प्रमाणित नही है लेकिन ये सैद्धांतिक रूप से संभव है। इसके द्वारा किसी भी दूरी की यात्रा पलक झपकते संभव है। आप किसी वर्महोल के एक छोर से प्रवेश करे और पलक झपकते ही आप किसी अन्य आकाशगंगा या किसी अन्य तारामंडल मे जा सकते है। हमारे पास ऐसे वर्महोल बनाने की तकनिक नही है। मानव सभ्यता को वर्महोल बनाने की तकनिक प्राप्त करने के लिये अभी हजारो या लाखों वर्ष का तकनीकी विकास करना होगा। Read More : वर्महोल द्वारा यात्रा about वर्महोल द्वारा यात्रा

चंद्रमा पर भी आते हैं भूकंप

earthquake on moon

हाल में नेपाल में आए भूकंप ने पूरे विश्व को दहला कर रख दिया है. इसमें लगभग 10,000 से ज्यादा लोगों की जान चली गई. क्या हमने कभी यह सोचा है कि हमारी धरती के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा पर भी भूकंप आते हैं? चंद्रमा पर आने वाले भूकंप से हमारी धरती को क्या लाभ हो सकता है ? इससे कितने लोगों की जान बचाई जा सकती है. इन सवालों का जवाब मिलता है भारत के चंद्रयान-1 से प्राप्त हुए डाटा से और इस डाटा की व्याख्या की है जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भूविज्ञान, सुदूर संवेदन एवं अंतरिक्ष विज्ञान विभाग के संयोजक (कन्वेनर) प्रोफेसर सौमित्र मुखर्जी ने. Read More : चंद्रमा पर भी आते हैं भूकंप about चंद्रमा पर भी आते हैं भूकंप

सबसे अधिक चंद्रमा के मामले में शनि ने बृहस्पति को पीछे छोड़ा

सबसे अधिक चंद्रमा के मामले में शनि ने बृहस्पति को पीछे छोड़ा

अमरीकी खगोलविदों के अनुसार, सबसे अधिक चंद्रमा के मामले ग्रह शनि ने बृहस्पति को पीछे छोड़ दिया है.

शोधकर्ताओं ने इस ग्रह के चारो ओर चक्कर लगा रहे 20 नए चंद्रमाओं की खोज की है और इस तरह इनकी संख्या 82 हो गई है. जबकि बृहस्पति के चारो ओर 79 चांद चक्कर लगाते हैं.

नए उपग्रहों की खोज हवाई में स्थित सुबारू टेलिस्कोप की मदद से की गई.

शनि के चारो ओर चक्कर लगाने वाले इन नए उपग्रहों का व्यास 5 किलोमीटर है. इनमें से 17 उपग्रह शनि की विपरीत दिशा में चक्कर लगाते हैं. Read More : सबसे अधिक चंद्रमा के मामले में शनि ने बृहस्पति को पीछे छोड़ा about सबसे अधिक चंद्रमा के मामले में शनि ने बृहस्पति को पीछे छोड़ा

प्लूटो से छिन गया ग्रह का दर्जा

प्लूटोप्लूटो से छिन गया ग्रह का दर्जा से छिन गया ग्रह का दर्जा

नासा ने जब मिशन 'न्यू होराइजन्स' रवाना किया था, उस समय प्लूटो को सोलर सिस्टम (सौरमंडल) के नौंवे ग्रह का दर्जा हासिल था। इस मिशन के लिए स्पेसक्राफ्ट के रवाना होने के कुछ महीने बाद ही नए पिंडों की खोज को मान्यता देने और उन्हें नाम देने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसी इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने पहली बार ग्रहों की परिभाषा तय करने पर बहस छेड़ दी। इसके बाद प्लूटो से ग्रह का दर्जा छीन गया और इसकी पहचान क्वीपर बेल्ट के मलबे के ढेर में मौजूद एक बौने ग्रह की रह गई। अब इसे आधिकारिक तौर पर 'एस्ट्रॉएड नंबर 134340' से जाना जाता है। Read More : प्लूटो से छिन गया ग्रह का दर्जा about प्लूटो से छिन गया ग्रह का दर्जा

प्रकाश से भी तेज़ गति से होगी बात?

प्रकाश से भी तेज़ गति से होगी बात?

प्रकाश की गति इतनी ज्यादा होती है कि यह लंदन से न्यूयार्क की दूरी को एक सेकेंड में 50 से ज़्यादा बार तय कर लेगी.

लेकिन मंगल और पृथ्वी के बीच (22.5 करोड़ किलोमीटर की दूरी) यदि दो लोग प्रकाश गति से भी बात करें, तो एक को दूसरे तक अपनी बात पहुंचाने में 12.5 मिनट लगेंगे.

वॉयेजर स्पेसक्राफ्ट हमारी सौर व्यवस्था के सबसे बाहरी हिस्से यानी पृथ्वी से करीब 19.5 अरब किलोमीटर दूर है. हमें पृथ्वी से वहाँ संदेश पहुँचाने में 18 घंटे का वक्त लगता है. Read More : प्रकाश से भी तेज़ गति से होगी बात? about प्रकाश से भी तेज़ गति से होगी बात?

कौन है धरती की 'जुड़वां' बहन?

कौन है धरती की 'जुड़वां' बहन?

अमरीकी खगोलशास्त्रियों ने अंतरिक्ष की अतल गहराइयों में से आठ नए ऐसे ग्रह खोजे हैं, जो पृथ्वी से मिलते-जुलते हैं.

खगोलविदों के मुताबिक़ इन आठ में से एक 'पृथ्वी से सबसे ज़्यादा मिलता-जुलता' ग्रह है.

सभी ग्रहों का पता लगाया है नासा की केपलर अंतरिक्ष दूरबीन ने.

अमरीकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी की बैठक में ये दिलचस्प जानकारियां सामने आईं.

'जुड़वां' धरती

खगोल वैज्ञानिकों के मुताबिक़ आठ में से केवल तीन ग्रह अपने परिचारक तारे के आवासीय क्षेत्र के भीतर हैं और इनमें से केवल एक हमारी पृथ्वी की तरह चट्टानी और थोड़ा गर्म है. Read More : कौन है धरती की 'जुड़वां' बहन? about कौन है धरती की 'जुड़वां' बहन?

लैंडर की गति की वजह से नहीं हुई लैंडिंग

लैंडर की गति की वजह से नहीं हुई लैंडिंग

इसरो के पूर्व चेरमैन डॉ. माधवन नायर ने बीबीसी हिंदी से कहा, "फ़ाइनल लैंडिंग इसलिए सफल नहीं हो पाई क्योंकि लैंडर की ऊंचाई को सही तरीक़े से बरक़रार रखने में गलती हुई. यह बहुत गति से नीचे की ओर गिरा. तो यह मिशन का एक छोटा हिस्सा था जो सफल नहीं हो पाया."

डॉ. नायर इस बात पर ध्यान दिलाते हैं कि अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण के बाद, लैंडर और ऑर्बिटर का अलग होना, ऑर्बिटर का चंद्रमा की कक्षा में सही जगह पर स्थापित होने जैसी चीज़ों को भी महत्व दिया जाना चाहिए. Read More : लैंडर की गति की वजह से नहीं हुई लैंडिंग about लैंडर की गति की वजह से नहीं हुई लैंडिंग

नष्ट होते तारों से आया धरती पर सोना

सोना पुराने समय से ही मनुष्य को आकर्षित करता रहा है. इस सोने की खोज में कइयों ने अपनी जान गंवाई. इसी सोने के कारण कई युध्द लड़े गये. एक ओर जहां यह आभूषण बनाने के काम आता है तो दूसरी ओर इसकी कमी इसका मूल्य बढ़ा देती है.

सोना केवल धरती पर ही कम मात्रा में नहीं है, बल्कि ब्रह्मांड में भी इसकी कमी है. पिछले दिनों एक खगोलीय घटना के विश्लेषण से वैज्ञानिकों ने यह संकेत दिया कि सोने का जन्म नष्ट होते तारों के टकराने से हुआ है. कार्बन और लोहे के विपरीत सोना तारों के अंदर नहीं पैदा होता है बल्कि इसका जन्म और भी जटिल घटना से होता है. Read More : नष्ट होते तारों से आया धरती पर सोना about नष्ट होते तारों से आया धरती पर सोना

इस ग्रह पर मिला पानी, जीवन भी मिलेगा?

इस ग्रह पर मिला पानी, जीवन भी मिलेगा?

अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने पहली बार पृथ्वी के अलावा एक ऐसे ग्रह का पता लगाया है जहां जीवन की संभावनाए हो सकती हैं. इस ग्रह पर पानी भी है और इंसान के रहने के लिए अनुकूल तापमान भी.

लंदन के वैज्ञानिकों ने 'नेचर' नाम की पत्रिका में इस बारे में लिखा है और बताया है कि ये ग्रह पृथ्वी से दोगुने आकार का है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका तापमान शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच है. Read More : इस ग्रह पर मिला पानी, जीवन भी मिलेगा? about इस ग्रह पर मिला पानी, जीवन भी मिलेगा?

चंद्रयान-2: चाँद की अधूरी यात्रा में भी क्यों है भारत की एक बड़ी जीत

चंद्रयान-2: चाँद की अधूरी यात्रा में भी क्यों है भारत की एक बड़ी जीत

भारत शुक्रवार की रात इतिहास रचने से दो क़दम दूर रह गया. अगर सब कुछ ठीक रहता तो भारत दुनिया पहला देश बन जाता जिसका अंतरिक्षयान चन्द्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव के क़रीब उतरता.

इससे पहले अमरीका, रूस और चीन ने चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग करवाई थी लेकिन दक्षिणी ध्रुव पर नहीं. कहा जा रहा है कि दक्षिणी ध्रुव पर जाना बहुत जटिल था इसलिए भी भारत का मून मिशन चन्द्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर रह गया.

शुक्रवार की रात चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह पर बस उतरने ही वाला था कि लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया. संपर्क टूटने से पहले चंद्रमा की सतह से दूरी महज 2.1 किलोमीटर बची थी. Read More : चंद्रयान-2: चाँद की अधूरी यात्रा में भी क्यों है भारत की एक बड़ी जीत about चंद्रयान-2: चाँद की अधूरी यात्रा में भी क्यों है भारत की एक बड़ी जीत

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