संपर्क : 7454046894
चमकेगा पृथ्वी पर दूसरा सूरज

कहानी के मुताबिक एक असाधारण ग्रहण की वजह से जब उस ग्रह पर उन छहों सूर्यों की रोशनी आनी बंद हो गई तो उसके निवासियों ने रोशनी को बचाए रखने की जिद में जमीन पर मौजूद हर चीज को जला डाला। पर क्या सचमुच किसी नक्षत्र मंडल में एक से ज्यादा सूर्य हो सकते हैं?
इसाक असिमोव ने 1941 में 'नाइटफॉल' नाम की एक विज्ञान कथा लिखी थी, जिसने उस जमाने में दुनिया भर के खगोलविदों को सोचने पर मजबूर कर दिया था। उस गल्प में एक ऐसी दुनिया की कल्पना की गई थी, जिसमें छह-छह सूर्य मौजूद हैं।
ज्यादातर खगोलविज्ञानियों का मत है कि यदि यूनिवर्स मंे कोई मल्टी-स्टार सिस्टम (एक से ज्यादा सूर्यों वाला सौरमंडल) होगा तो इसकी संभावना बहुत कम है कि उसमंे उनके अलावा ग्रह कहलाने लायक कोई दूसरा ऑब्जेक्ट भी हो। पर 2007 में स्पित्जर स्पेस टेलिस्कोप से भेजी गई एक तस्वीर में 150 प्रकाशवर्ष दूर क्रैटर (दूसरा नाम- द कप) नाम की गैलेक्सी में एचडी-98800 नामक एक ऐसी दुनिया मिली है, जिसके चार सूर्य हैं।
ये असल में दो दुनियाएं हैं- एचडी-98800 ए और एचडी-98800 बी, जिनके अपने दो-दो सूर्य हैं। इनमें दूसरे वाले की डिस्क में कोई ग्रह मौजूद होने की संभावना हो सकती है। लेकिन पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया की सदर्न क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के सीनियर लेक्चरर ब्रैड कॉर्टर ने सुपरनोवा विस्फोट से जुड़ा जो दावा किया है, उससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि शायद कुछ समय बाद पृथ्वी के निवासी भी दो-दो सूर्यों का नजारा कर सकें।
कॉर्टर के मुताबिक, अंतरिक्ष के ओरियन नक्षत्रमंडल (कॉन्स्टिलेशन) में मौजूद बीटलगेस नामक तारा अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। आजकल सूरज ढलने के बाद आप अपनी छत से आकाश के पूर्वी-दक्षिणी कोने पर नजर रखें तो वहां थोड़ी ही देर में आपको ललछौंह रंग के इस तारे के दर्शन हो सकते हैं।
बकौल कार्टर, जल्द ही यह तारा भीषण विस्फोट के साथ सुपरनोवा में तब्दील होकर खत्म हो जाएगा। इससे स्पेस में एकबारगी इतनी ज्यादा रोशनी होगी, जिससे पृृथ्वी पर दो-दो सूर्यों के एक साथ उदित होने का अहसास होगा और रातें इस नए सूरज (सुपरनोवा) की रोशनी पाकर सामान्य दिनों की तरह गुलजार बनी रहेंगी। सर्दियों में गिरते टेंपरेचर के बीच दो-दो सूर्यों की बात सुनकर बहुतेरे लोग ठंड से जल्द छुटकारा पाने की कल्पना करने लगे होंगे।
पर यह सुपरनोवा आखिर है क्या? क्या वह सचमुच हमें इतनी गर्मी और रोशनी दे सकता है? हम जानते हैं कि इस यूनिवर्स में ग्रह-नक्षत्रों के बनने और मिटने का सिलसिला अरबों वर्षों से चल रहा है। आगे भी अनंत काल तक यह क्रम जारी रह सकता है। खगोलविज्ञानी बताते हैं कि तारों के जन्म-मरण की इसी प्रक्रिया में एक स्टेज ऐसा आता है जहां वे सुपरनोवा में बदल जाते हैं। यह 'सुपर' और 'नोवा' - दो शब्दों को मिला कर बना है। नोवा का आशय ऐसे तारे से है जो नया और खूब चमकीला हो।
सुपरनोवा का मतलब है उन सबसे कहीं ज्यादा चमकीला। तारों की जिंदगी में यह स्थिति तब आती है जब वे अपनी उम्र पूरी कर बुझने की ओर बढ़ रहे होते हैं। जैसे कोई चिराग बुझने के पहले एक बार खूब तेजी से भड़कता है, वह तारा भी अपनी बची-खुची ऊर्जा के साथ खूब तेजी से जल उठता है, जिससे बेतहाशा रोशनी और चमक पैदा होती है।
लेकिन सुपरनोवा बनने की संभावना उन्हीं तारों के साथ पैदा होती है, जिनका वजन हमारे सूर्य से कम से कमआठ गुना ज्यादा हो। इससे कम वजनी तारे भी बुझने की स्थिति में तेजी से चमकते हैं, पर साइंटिस्टों ने उनकेलिए एक अलग कैटिगरी 'वाइट ड्वॉर्फ' बनाई हुई है। कुछ वैज्ञानिक उन्हें टाइप-1ए सुपरनोवा भी कहते हैं।
हाइड्रोजन और हीलियम जैसे तत्वों के नाभिकीय संलयन से अपने लिए ऊर्जा पैदा करने वाले विशाल तारे जबअपने जीवन के आखिरी चरण में पहुंचते हैं तो उन्हें एक पिंड के रूप में बांधे रखने वाला गुरुत्व बल कम हो जाताहै और गैसीय दबाव से फूली हुई उनकी सतह और भी चमकदार हो जाती है। फिर एक समय ऐसा आता है जब वेप्रचंड विस्फोट के साथ फट जाते हैं।
इस विस्फोट से हमारे सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा के मुकाबले अरबों-खरबों गुना ज्यादा एनर्जी एक साथनिकलती है। थोड़े समय में ही सुपरनोवा बना तारा इतनी ऊर्जा उगल देता है जितनी हमारा सूर्य अपने पूरेजीवनकाल में दे पाएगा। इससे संबंधित तारे की गैलेक्सी में महीनों तक रोशनी का अंबार लग जाता है। सुपरनोवाविस्फोट से रोशनी के अलावा नजदीकी यूनिवर्स में शॉक वेव्स भी पहुंचती हैं। ये तरंगें सुपरनोवा तारे से निकलीगैस और धूलकणों पर सवार होकर वहां पहुंचती हैं। तारे से निकली गैस और धूल की भारी मात्रा करीब दोशताब्दियों तक स्पेस में फैलती रहती है। फिर करीब 10 हजार वर्षों में ठंडी पड़कर वह अपने चारों तरफ कीतारकीय संरचनाओं में घुल-मिल जाती है।
अगर बीटलगेस सच में 2012 के आसपास नष्ट होने वाला है, तो क्या हमें इन शॉक वेव्स के लिए तैयार रहनाचाहिए? यूनिवर्स के सबसे बड़े चमकदार तारों में से एक, नारंगी-लाल रंग का दिखाई देने वाला यह तारा हमसे640 प्रकाश वर्ष दूर है। पृथ्वी के नजदीक (नजदीकी से अभिप्राय 100 से 3000 प्रकाशवर्ष की दूरी से है) सुपरनोवाविस्फोट का अर्थ है- उसका असर हमारे पूरे वायुमंडल (बायोस्फीयर) पर पड़ना।
सुपरनोवा विस्फोट से गामा किरणें फूटती हैं जो पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में मौजूद नाइट्रोजन से केमिकलरिएक्शन करके नाइट्रोजन ऑक्साइड बना सकती हैं। इसके असर से जीवनरक्षक ओजोन परत बुरी तरह टूट-फूटसकती है और सूरज की पराबैंगनी किरणें और दूसरे कॉस्मिक रेडिएशन सीधे धरती तक आ सकते हैं। समुद्री जल-जीवन का 60 फीसदी हिस्सा नष्ट करने वाली ऑर्डोविसियन-सिलुरियन परिघटना के बारे में अनुमान है कि उसकेलिए एक सुपरनोवा विस्फोट ही जिम्मेदार है।
बहरहाल, जिस दिन बीटलगेस तारे के जल्द ही सुपरनोवा बनने की खबर आई, उसके अगले ही दिन दुनिया केकई खगोलविदों ने स्पष्ट कर दिया कि अंतरिक्षीय पैमाने पर अंग्रेजी के 'सून' यानी जल्द का मतलब चार-छहमहीने नहीं होता। बल्कि इस घटना को घटित होने में कई लाख वर्ष भी लग सकते हैं। और तो और, यूनिवर्सिटीऑफ इलिनॉय के एस्ट्रॉनामर जिन केलर तो यह भी कहते हैं कि अभी ना तो कोई यह पक्के तौर पर कह सकता हैकि बीटलगेस सुपरनोवा की तरह फटेगा और ना ही यह कि हमारे आकाश में यह दूसरे सूर्य की तरह चमकेगा।
बीटलगेस चाहे पृथ्वी के दूसरे सूर्य के रूप में तब्दील ना हो पर इसके सुपरनोवा बनने की अफवाह ने हमें उसकाले-नीले आकाश के बारे में पहले से ज्यादा जिज्ञासु बनाया है, जिसमें लाखों-करोड़ों तारे, सौरमंडल, औरआकाशगंगाएं हैं, जहां रोज नए तारों का जन्म हो रहा है और अंतरिक्ष का विस्तार हो रहा है।