ध्यान की परिभाषा ओशो

साप्ताहिक ध्यान : संयम साधना

संयम साधना

कृष्ण ने दो निष्ठाओं की बात कही है। एक वे, जो इंद्रियों का संयम कर लेते हैं। जो इंद्रियों को विषय की तरफ--विषयों की तरफ इंद्रियों की जो यात्रा है, उसे विदा कर देते हैं; यात्रा ही समाप्त कर देते हैं। जिनकी इंद्रियां विषयों की तरफ दौड़ती ही नहीं हैं। संयम का अर्थ समझेंगे, तो खयाल में आए। दूसरे वे, जो विषयों को भोगते रहते हैं, फिर भी लिप्त नहीं होते। ये दोनों भी यज्ञ में ही रत हैं।

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साप्ताहिक ध्यान "मैं यह नहीं हूं'

मैं यह नहीं हूं'

मन कचरा है! ऐसा नहीं है कि आपके पास कचरा है और दूसरे के पास नहीं है। मन ही कचरा है। और अगर आप कचरा बाहर भी फेंकते रहें, तो जितना चाहे फेंकते रह सकते हैं, लेकिन यह कभी खतम होने वाला नहीं है। यह खुद ही बढ़ने वाला कचरा है। यह मुर्दा नहीं है, यह सकि"य है। यह बढ़ता रहता है और इसका अपना जीवन है, तो अगर हम इसे काटें तो इसमें नई पत्तियां अंकुरित होने लगती हैं।

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साप्ताहिक ध्यान:: त्राटक ध्यान

व्यस्त लोगों के लिये ध्यान :: गर्भ की शांति पायें

गर्भ की शांति पायें

जब भी तुम्हारे पास समय हो, बस मौन में निढाल हो जाओ, और मेरा अभिप्राय ठीक यही है-निढाल, मानो कि तुम एक छोटे बच्चे हो अपनी मा के गर्भ में

फर्श पर अपने घुटनों के बल बैठ जाओ और धीरे-धीरे अपना सिर भी फर्श पर लगाना चाहोगे, तब सिर फर्श पर लगा देना। गर्भासन में बैठ जाना जैसे बच्चा अपनी मां के गर्भ में अपने अंगों को सिमटाकर लेटा होता है। और शीघ्र ही तुम पाओगे कि मौन उतर रहा है, वही मौन जो मां के गर्भ में था। Read More : व्यस्त लोगों के लिये ध्यान :: गर्भ की शांति पायें about व्यस्त लोगों के लिये ध्यान :: गर्भ की शांति पायें

व्यस्त लोगों के लिये ध्यान : क्या आप स्वयं के प्रति सच्चे हैं?

स्वयं के प्रति सच्चे

जानने के लिए अपने श्वास के प्रति सजग हों। 

 

" जब तुम कह रहे हो कि तुम खुश हो और तुम खुश नहीं हो, तो तुम्हारी श्वास अनियमित होगी।श्वास सहज नहीं होगी।यह असंभव है।"

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शरीर की शक्ति का ध्यान में उपयोग

ध्यान में उपयोग

शरीर को इतना शिथिल छोड़ देना है कि ऐसा लगने लगे कि वह दूर ही पड़ा रह गया है, हमारा उससे कुछ लेना-देना नहीं है। शरीर से सारी ताकत को भीतर खींच लेना है। हमने शरीर में ताकत डाली हुई है। जितनी ताकत हम शरीर में डालते हैं, उतनी पड़ती है; जितनी हम खींच लेते हैं, उतनी खिंच जाती है।

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साप्ताहिक ध्यान : कल्पना द्वारा नकारात्मक को सकारात्मक में बदलना

कल्पना द्वारा नकारात्मक

सुबह उठते ही पहली बात, कल्पना करें कि तुम बहुत प्रसन्न हो। बिस्तर से प्रसन्न-चित्त उठें-- आभा-मंडित, प्रफुल्लित, आशा-पूर्ण-- जैसे कुछ समग्र, अनंत बहुमूल्य होने जा रहा हो। अपने बिस्तर से बहुत विधायक व आशा-पूर्ण चित्त से, कुछ ऐसे भाव से कि आज का यह दिन सामान्य दिन नहीं होगा-- कि आज कुछ अनूठा, कुछ अद्वितीय तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है; वह तुम्हारे करीब है। इसे दिन-भर बार-बार स्मरण रखने की कोशिश करें। सात दिनों के भीतर तुम पाओगे कि तुम्हारा पूरा वर्तुल, पूरा ढंग, पूरी तरंगें बदल गई हैं। Read More : साप्ताहिक ध्यान : कल्पना द्वारा नकारात्मक को सकारात्मक में बदलना about साप्ताहिक ध्यान : कल्पना द्वारा नकारात्मक को सकारात्मक में बदलना

क्या आप सिगरेट छोड़ना चाहते हैं।

सिगरेट छोड़ना

शरीर एक यंत्र है। और उस यंत्र में आपने जो आदतें डाली है, उन आदतों को आपको नई आदतों से बदलना पडे़गा, नई बातें सुनकर नहीं। इसका मतलब यह हुआ कि अगर आपको सिगरेट पीना छोडना है तो आपको ताजगी पैदा करने की दूसरी आदतें डालना पडे़गी। नहीं तो आप कभी नहीं छोड़ पाएंगे।

इसलिए मैं आपको कहता हूँ कि जब भी आपको सिगरेट पीने का ख्याल हो तब दस गहरी श्वास लें, जिससे ज्यादा आक्सीजन भीतर चली जाएगी। तो ताजगी ज्यादा देर रुकेगी, जितनी देर निकोटिन से रुकती है, और ज्यादा स्वाभाविक होगी। यह एक नई आदत है। Read More : क्या आप सिगरेट छोड़ना चाहते हैं। about क्या आप सिगरेट छोड़ना चाहते हैं।

ध्यान : अपनी श्वास का स्मरण रखें

अपनी श्वास का स्मरण

"अगर तुम अपनी सांस पर काबू पा सको तो अपनी भावनाओं पर काबू पा सकोगे। अवचेतन सांस की लय को बदलता रहता है, अत: अगर तुम इस लय के प्रति और उसमें होने वाले सतत बदलाव के बारे में होश से भर जाओगे तो तुम अपनी अवचेतन जड़ों के बारे में, अवचेतन की गतिविधि के बारे में सजग हो जाओगे।"

दि न्यू एल्केमी

 

 1) जब भी स्मरण हो, दिन भर गहरी सांस लो, जोर से नहीं वरन धीमी और गहरी; और शिथिलता अनुभव करो, तनाव नहीं।

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