सकारात्मक सोच ओशो

शब्दों के बिना देखना

शब्दों के बिना देखना

छोटी-छोटी चीजों में प्रयोग करें कि मन बीच में न आए। आप एक फूल को देखते हैं--तब आप सिर्फ देखें। मत कहें "सुंदर', "असुंदर'। कुछ मत कहें। शब्दों को बीच में मत लाएं, कोई शब्द उपयोग न करें। सिर्फ देखें। मन बड़ा व्याकुल, बड़ा बेचैन हो जाएगा। मन चाहेगा कुछ कहना। आप मन को कह दें: "शांत रहो, मुझे देखने दो, मैं सिर्फ देखूंगा।'

शुरुआत में कठिनाई आएगी, लेकिन ऐसी चीजों से शुरू करें जिनसे आप ज्यादा जुड़े नहीं हैं। बिना शब्दों को बीच में लाए पत्नी को देखना कठिन होगा। आप पत्नी से बहुत जुड़े हुए हैं, बहुत ही भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं। क्रोध में या प्रेम में--लेकिन आप बहुत जुड़े हुए हैं। Read More : शब्दों के बिना देखना about शब्दों के बिना देखना

ध्यान : कल्पना द्वारा नकारात्मक को सकारात्मक में बदलना

ध्यान : कल्पना द्वारा नकारात्मक को सकारात्मक में बदलना

सुबह उठते ही पहली बात, कल्पना करें कि तुम बहुत प्रसन्न हो। बिस्तर से प्रसन्न-चित्त उठें-- आभा-मंडित, प्रफुल्लित, आशा-पूर्ण-- जैसे कुछ समग्र, अनंत बहुमूल्य होने जा रहा हो। अपने बिस्तर से बहुत विधायक व आशा-पूर्ण चित्त से, कुछ ऐसे भाव से कि आज का यह दिन सामान्य दिन नहीं होगा-- कि आज कुछ अनूठा, कुछ अद्वितीय तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है; वह तुम्हारे करीब है। इसे दिन-भर बार-बार स्मरण रखने की कोशिश करें। सात दिनों के भीतर तुम पाओगे कि तुम्हारा पूरा वर्तुल, पूरा ढंग, पूरी तरंगें बदल गई हैं।

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