उज्जायी प्राणायाम

उद्गीथ प्राणायाम

उद्गीथ प्राणायाम

लम्बा, गहरा श्वांस फफड़ों में भरें और प्रणव का दीर्घ उच्चारण अर्थात नाभि की गहराई से करें। श्वांस भरने में 5 सैकण्ड व छोड़ते समय दो गुना अर्थात 10 सैकण्ड का समय लगावें। स्वर को मधुर व लयबद्ध बनाते हुये आधा समय ‘ओ’ का व आधा ‘म’ का मुहं बन्द रखते उच्चारण करें।

यह प्राणायाम 3 से 5 बार करें। इससे एकाग्रता आती है, मेरूदण्ड, फेफड़े मजबूत होते हैं, श्वांस की गति पर नियन्त्रण होता है। मानसिक शान्ति मिलती है।

 

  Read More : उद्गीथ प्राणायाम about उद्गीथ प्राणायाम

भ्रस्त्रिका प्राणायाम

भ्रस्त्रिका प्राणायाम
  • श्वांस को लम्बा गहरा धीरे-धीरे नाक के द्वारा फेफड़ों में डायफ्राॅम तक भरेंगे पेट नहीं फुलायेंगे और श्वासं बिना अन्दर रोके, लिये गये श्वांस को नासिका द्वारा धीरे धीरे पूरा ही बाहर छोड़ देंगे तथा बाहर भी श्वांस को बिना रोके पूर्व की भांति श्वासं को भरेंगे। इस अभ्यास को जारी रखें।
  • नये साधक थकने पर बीच में कुछ देर के लिये विश्राम कर सकते हैं। तथा अपने उथले श्वासं की गहराई को बढ़ाने का प्रयास करें।
  • गर्मी में 3 मिनट व सर्दी में 7 मिनट तक किया जा सकता है।