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केंचुआ खाद - काला सोना : कृषि के लिये वरदान-

केंचुआ खाद - काला सोना : कृषि के लिये वरदान-
केंचुआ अपने आहार के रूप में प्रतिदिन लगभग अपने शरीर के वजन के बराबर मिट्टी व कच्चे जीवांष को निगलकर अपने पाचन नलीका से गुजारते हैं जिससे वह महीन कम्पोस्ट में परिवर्तित होते हैं और अपने शरीर से बाहर छोटे-छोटे कास्टिंग के रूप में निकालते हैं, यही केंचुआ खाद है. इस विधी द्वारा केंचुआ खाद मात्र 47 से 75 दिनों में तैयार हो जाते हैं. उसमें उसके कास्ट, अण्डे, कोकून व सूक्ष्म जीवाणु, पोषक तत्व तथा अपचित जैविक पदार्थ होते हैं. जो लम्बे समय तक मृदा को उपजाऊ रखते हैं.
एपिजिक केंचुएं: कम्पोस्ट बनाने में उपयोगी हैं. ये केंचुए सतह पर (1 मीटर गहराई तक) समूह में रहते हैं. इस जाति के केंचुएं कृषि अपशिष्ट की 90 प्रतिशत एवं मृदा का 10 प्रतिशत भाग खाते हैं. इनमें मुख्यतया आईसीनिया फीटिडा एवं युड्रिलिस यूजिनी प्रमुख प्रजातियां हैं.
इन्डोजिक केंचुएं : ये भूमि में गहरी सुरंग बनाकर मिट्टी भुरभुरी बनाते हैं. ये 90 प्रतिशत जलनिकास व जल संरक्षण में उपयोगी हैं. यह केंचुआ भूमि की खनीजयुक्त परतों में रहते हैं. ये 90 प्रतिशत भाग मिट्टी खाते हैं.
डायोजिक केंचुए: ये केंचुए 1 से 3 मीटर की गहराई पर रहते हैं एवं दोनों प्रजातियों के बीच की श्रेणी में आते हैं.