जहाँ मन समाप्त होता है, वहाँ ध्यान शुरू होता है!
Submitted by Anand on 25 September 2021 - 2:46amजहाँ मन समाप्त होता है, वहाँ ध्यान शुरू होता है!
ध्यान स्पष्टता की दशा है, न कि मन की। मन भ्रम है। मन कभी भी स्पष्ट नहीं होता। यह हो नहीं सकता। और इसलिए सिवाय ध्यान के हर चीज मन के द्वारा की जा सकती है।
ध्यान तुम्हारा आत्यंतिक स्वभाव है, यह उपलब्धि नहीं है। यह पहले से ही मौजूद है। यह तुम हो। इसका तुम्हारे करने से कुछ लेना-देना नहीं है। इसे सिर्फ पहचानना है, इसे सिर्फ स्मरण करना है। यह तुम्हारा होना है। यह तुम्हारा इंतजार कर रहा है। बस भीतर मुड़ो और यह उपलब्ध है। तुम इसे अपने साथ लिए चल रहे हो।
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