जहाँ मन समाप्त होता है, वहाँ ध्यान शुरू होता है!

जहाँ मन समाप्त होता है,

जहाँ मन समाप्त होता है, वहाँ ध्यान शुरू होता है!
ध्यान स्पष्टता की दशा है, न कि मन की। मन भ्रम है। मन कभी भी स्पष्ट नहीं होता। यह हो नहीं सकता। और इसलिए सिवाय ध्यान के हर चीज मन के द्वारा की जा सकती है।
ध्यान तुम्हारा आत्यंतिक स्वभाव है, यह उपलब्धि नहीं है। यह पहले से ही मौजूद है। यह तुम हो। इसका तुम्हारे करने से कुछ लेना-देना नहीं है। इसे सिर्फ पहचानना है, इसे सिर्फ स्मरण करना है। यह तुम्हारा होना है। यह तुम्हारा इंतजार कर रहा है। बस भीतर मुड़ो और यह उपलब्ध है। तुम इसे अपने साथ लिए चल रहे हो।
प्यारे ओशो

“एनसिएंट म्यूजिक औफ़ दि पाइन्स” पुस्तक के एक प्रवचनांश का हिंदी अनुवाद

 
 
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New Dhyan Updates

प्यारे प्रभु! प्रश्नों के अंबार लगे हैं
आप अच्छे हैं या स्वाभाविक?
ओशो – पहले विचार फिर निर्विचार !
ध्यान : संतुलन ध्यान
अपनी श्वास का स्मरण रखें
ओशो – तुम कौन हो ?
यही शरीर, बुद्ध: हां, तुम।
व्यक्तियों को वस्तु मत बनाओ
तकिया पीटना ( ध्यान ) - नकारात्मकता को निकाल फेंकना
ओशो नटराज ध्‍यान की विधि
चेतना की वह अकेली अवस्था ध्यान है।
नासाग्र को देखना (ध्‍यान)—ओशो
अग्नि पर फ़ोकस करना
जब हनीमून समाप्त हो जाता है तो इसके बाद क्या?
साप्ताहिक ध्यान : संतुलन ध्यान
ध्यान : कल्पना द्वारा नकारात्मक को सकारात्मक में बदलना
साप्ताहिक ध्यान : संयम साधना
प्रत्येक ध्यान के शीघ्र बाद करुणावान रहो
गौतम बुद्ध ज्ञान को उपलब्ध होने के बाद घर वापस लौटे
दूसरे को तुम उतना ही देख पाओगे जितना तुम अपने को देखते हो
ध्यान आता है, एक फुसफुसाहट की तरह
त्राटक-एकटक देखने की विधि है |
ध्यान : अपने हृदय में शांति का अनुभव करें
करने की बीमारी
ध्वनि के केंद्र में स्नान करो