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मैं--तू' ध्यान - (ओशो: ध्यान विज्ञान)

कभी एक छोटा प्रयोग करें...चौबीस घंटे के लिए 'मैं' को केंद्र से हटा दें, सिर्फ चौबीस घंटे के लिए; 'तू' को केंद्र पर रख लें। सिर्फ चौबीस घंटे के लिए सतत स्मरण रखें कि 'तू'। जब पैर में पत्थर लग जाए, तब भी; जब कोई गाली दे जाए, तब भी; जब कोई अंगारा फेंक दे ऊपर, तब भी; जब कोई फूल की माला डाले, तब भी; जब कोई चरणों में सिर रख दे, तब भी--चौबीस घंटे के लिए स्मरण रख लें कि मैं नहीं हूं केंद्र पर, 'तू' है। तो आपकी जिंदगी में एक नये अध्याय का प्रारंभ हो जाएगा। अगर चौबीस घंटे यह स्मरण संभव हो सका, अगर पूरा न भी हुआ, चौबीस घंटे में चौबीस मिनट भी पूरा हो गया, तो आप वही आदमी दुबारा नहीं हो सकेंगे; क्योंकि एक बार 'तू' के साथ जीने की निश्चिंतता मिल जाए तो फिर आप 'मैं' के साथ कभी जीना न चाहेंगे।
'मैं' से भार 'तू' पर चला जाए तो शुद्ध चेतना को खोजना आसान हो जाता है; या शुद्ध चेतना मिल जाए तो 'मैं' से तत्काल 'तू' की तरफ भाव चला जाता है। इसलिए उसे "त्वम्' कहा है।
ओशो: ध्यान विज्ञान #46