ध्यान की वैज्ञानिक विधि

ध्यान क्या है? ध्यान है पर्दा हटाने की कला। ओशो

ध्यान क्या है ध्यान है पर्दा हटाने की कला। ओशो

इस छोटी सी घटना को समझें। चांग चिंग के संबंध में कहा जाता है, वह बड़ा कवि था, बड़ा सौंदर्य-पारखी था। कहते हैं, चीन में उस जैसा सौंदर्य का दार्शनिक नहीं हुआ। उसने जैसे सौंदर्य-शास्त्र पर, एस्थेटिक्स पर बहुमूल्य ग्रंथ लिखे हैं, किसी और ने नहीं लिखे। वह जैसे उन पुराने दिनों का क्रोशे था। बीस साल तक वह ग्रंथों में डूबा रहा। सौंदर्य क्या है, इसकी तलाश करता रहा।
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मैं--तू' ध्यान - (ओशो: ध्यान विज्ञान)

मैं--तू' ध्यान - (ओशो: ध्यान विज्ञान)

कभी एक छोटा प्रयोग करें...चौबीस घंटे के लिए 'मैं' को केंद्र से हटा दें, सिर्फ चौबीस घंटे के लिए; 'तू' को केंद्र पर रख लें। सिर्फ चौबीस घंटे के लिए सतत स्मरण रखें कि 'तू'। जब पैर में पत्थर लग जाए, तब भी; जब कोई गाली दे जाए, तब भी; जब कोई अंगारा फेंक दे ऊपर, तब भी; जब कोई फूल की माला डाले, तब भी; जब कोई चरणों में सिर रख दे, तब भी--चौबीस घंटे के लिए स्मरण रख लें कि मैं नहीं हूं केंद्र पर, 'तू' है। तो आपकी जिंदगी में एक नये अध्याय का प्रारंभ हो जाएगा। अगर चौबीस घंटे यह स्मरण संभव हो सका, अगर पूरा न भी हुआ, चौबीस घंटे में चौबीस मिनट भी पूरा हो गया, तो आप वही आदमी दुबारा नहीं हो सकेंगे; क्योंकि ए Read More : मैं--तू' ध्यान - (ओशो: ध्यान विज्ञान) about मैं--तू' ध्यान - (ओशो: ध्यान विज्ञान)

ध्यान विधि : - ओशो

" ध्यान चेतना की विशुद्ध अवस्था है-जहां कोई विचार नहीं होते, कोई विषय नहीं होता। साधारणतया हमारी चेतना विचारों से, विषयों से, कामनाओं से आच्छादित रहती है। जैसे कि कोई दर्पण धूल से ढंका हो। हमारा मन एक सतत प्रवाह है- विचार चल रहे हैं, कामनाएं चल रही हैं, पुरानी स्मृतियां सरक रही हैं- रात-दिन एक अनवरत सिलसिला है। नींद में भी हमारा मन चलता रहता है, स्वप्न चलते रहते हैं। यह अ-ध्यान की अवस्था है। ठीक इससे उलटी अवस्था ध्यान की है।जब कोई विचार नहीं चलते और कोई कामनाएं सिर नहीं उठातीं, सारा ऊहापोह शांत हो जाता है और हम परिपूर्ण मौन में होते हैं-वह परिपूर्ण मौन ध्यान है। और उसी परिपूर्ण मौन में सत्य Read More : ध्यान विधि : - ओशो about ध्यान विधि : - ओशो

ओशो – ध्यानी का आहार

ओशो – ध्यानी का आहार

मनुष्य एक अकेली प्रजाति है जिसका आहार अनिश्चित है। अन्य सभी जानवरों का आहार निश्चित है। उनकी बुनियादी शारीरिक जरूरतें और उनका स्वभाव फैसला करता है के वे क्या खाते हैं और क्या नहीं; कब वे खाते हैं और कब उन्हें नहीं खाना होता है। किन्तु मनुष्य का व्यवहार बिलकुल अप्रत्याशित है, वह बिल्कुल अनिश्चितता में जीता है। न ही तो उसकी प्रकृति उसे बताती है कि उसे कब खाना चाहिए, न उसकी जागरूकता बताती है कि कितना खाना चाहिए, और न ही उसकी समझ फैसला कर पाती है कि उसे कब खाना बंद करना है|
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जिबरिश ध्यान विधि

जिबरिश ध्यान विधि

जिबरिश ध्यान विधि प्रयोग में आपको जब्बार बन जाना है। यह एक घंटे का ध्यान है; बीस-बीस मिनट के तीन चरण हैं। सायं तीन से छह बजे के बीच इसे करें।

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जिबरिश ध्यान विधि पहला चरण : खुले आकाश के नीचे विश्रामपूर्वक मुद्रा में लेट जाएं और खुली आंख से आकाश में झांकें। किसी बिन्दु-विशेष पर नहीं, बल्कि सम्पूर्ण आकाश में।

 

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ध्यान :"मैं यह नहीं हूं'

ध्यान :"मैं यह नहीं हूं'

मन कचरा है! ऐसा नहीं है कि आपके पास कचरा है और दूसरे के पास नहीं है। मन ही कचरा है। और अगर आप कचरा बाहर भी फेंकते रहें, तो जितना चाहे फेंकते रह सकते हैं, लेकिन यह कभी खतम होने वाला नहीं है। यह खुद ही बढ़ने वाला कचरा है। यह मुर्दा नहीं है, यह सकि"य है। यह बढ़ता रहता है और इसका अपना जीवन है, तो अगर हम इसे काटें तो इसमें नई पत्तियां अंकुरित होने लगती हैं।

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ध्यान : स्टॉप! (जैसे ही कुछ करने की वृत्ति हो, रुक जाओ।)

तुम कहीं भी इसका प्रयोग कर सकते हो। तुम स्नान कर रहे हो; अचानक अपने को कहो: स्टॉप! अगर एक क्षण के लिए भी यह एकाएक रुकना घटित हो जाए तो तुम अपने भीतर कुछ भिन्न बात घटित होते पाओगे। तब तुम अपने केंद्र पर फेंक दिए जाओगे। और तब सब कुछ ठहर जाएगा। तुम्हारा शरीर तो पूरी तरह रुकेगा ही, तुम्हारा मन भी गति करना बंद कर देगा।

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सिरविहीन होने के प्रयोग को--करके देखो