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चेतना की वह अकेली अवस्था ध्यान है।

वही आदमी प्रेम करता है, जो बस प्रेम करता है और किसका कोई सवाल नहीं है। क्योंकि जो आदमी ‘किसी से’ प्रेम करता है, वह शेष से क्या करेगा? वह शेष के प्रति घृणा से भरा होगा। जो आदमी ‘किसी का ध्यान’ करता है, वह शेष के प्रति क्या करेगा? शेष के प्रति मूर्च्छा से घिरा होगा। हम जिस ध्यान की बात कर रहे हैं, वह किसी का ध्यान नहीं है, ध्यान की एक अवस्था है। अवस्था का मतलब यह है। ध्यान का मतलब, किसी को स्मरण में लाना नहीं है। ध्यान का मतलब, सब जो हमारे स्मरण में हैं, उनको गिरा देना है; और एक स्थिति लानी है कि केवल चेतना मात्र रह जाए, केवल कांशसनेस मात्र रह जाए, केवल अवेयरनेस मात्र रह जाए। यहां हम एक दीया जलाएं और यहां से सारी चीजें हटा दें, तो भी दीया प्रकाश करता रहेगा। वैसे ही अगर हम चित्त से सारे आब्जेक्ट्स हटा दें, चित्त से सारे विचार हटा दें, चित्त से सारी कल्पनाएं हटा दें, तो क्या होगा? जब सारी कल्पनाएं और सारे विचार हट जाएंगे, तो क्या होगा? चेतना अकेली रह जाएगी। चेतना की वह अकेली अवस्था ध्यान है।
