आप अच्छे हैं या स्वाभाविक?

स्वाभाविक होना बेहतर है अपने क्रोध पर नियंत्रण करने से।

 

प्रश्नकर्ता: ऐसे तो मैं अपने मित्र खो दूंगा... और ईमानदार होने के इतना मूल्य चुकाना बहुत ज़्यादा होगा।

 

ऐसा नहीं है, क्योंकि यदि आप स्वाभाविक हैं तो संभव है तत्काल आपको लगे कि मूल्य अधिक है; लेकिन ऐसा कभी होता नहीं! अंतत: स्वाभाविक होना सदा हितकर होता है। दमन आपको यह धोखा दे सकता है सब कुछ नियंत्रण में है और सब ठीक चल रहा है;लेकिन अंत में आपको भारी मूल्य चुकाना पड़ेगा। तब बहुत देर हो चुकी होती है और आप कुछ नहीं कर पाते। सब के साथ यही हुआ है। हर मां ने हर बच्चे के साथ यही किया है।

 

आप सोचते हैं कि नियंत्रण करना आसान काम रहा है? सब मनोचिकित्सक उस सब की सफाई करने में लगे हैं जो मां ने कर दिया है। मनोचिकित्सा का पूरा व्यवसाय मां के किये को अनकिया करना है, और कुछ भी नहीं, उनका पूरा व्यवसाय ही यह है।

 

यदि माताएं मुझे सुन लें तो मनसविद समाप्त हो जाएंगे, वे भूखे मरेंगे। पागलखानों में बंद सब पागल उन मांओं के कारण हैं जो बहुत नियंत्रण करती रही हैं।

 

प्रश्नकर्ता: मुझे कभी पता नहीं लगता कि क्या होने वाला है!

 

होने दो! किसे पता है? यदि तुम्हें पहले से ही पता है तो यह झूठा होगा। स्वाभाविक होने का अर्थ है कि किसी को नहीं पता। स्वाभाविक रहो और जो होता है, होने दो। {तुम्हारी बेटी} कभी भी तुम्हारे खिलाफ नहीं होगी यदि तुम स्वाभाविक हो, क्योंकि वह समझ जायेगी; बच्चे बहुत समझदार होते हैं। यदि वे देखते हैं कि मां बाप स्वाभाविक हैं, सच्चे हैं- यदि वे आप पर भरोसा कर सकते हैं, यदि वे जानते हैं कि आप क्रोध में हैं और इसी कारण क्रोधित हैं; आप प्रेमपूर्ण हैं क्योंकि आप प्रेमपूर्ण हैं, यदि वे जानते हैं कि आप जैसे भी हैं सच्चे हैं...यदि

 

{तुम्हारी बेटी} तुम पर यह भरोसा कर सकती है कि जब तुम क्रोध में हो तो तुम इसे व्यक्त करते हो, वह समझेगी। बच्चे बहुत समझदार होते हैं, और वह तुमें क्षमा कर पाएगी। लेकिन यदि उसे पता चलता है कि तुम क्रोधित हो और मुस्करा रहे हो तो यह असंभव है कि वह तुम्हें माफ कर पाये। आप उसके साथ धोखा कर रहे हैं।

 

कभी आप गुस्से में हो सकते हैं-अभी आप महा-मानव नहीं हो गये हैं, सौभाग्य से! आप क्रोध में हो सकते हैं। और वह कहां से सीखेगी? वह आपसे ही सीखेगी और स्वभावत: ऐसा ही वह बाहर अभ्यास करेगी। यदि आप गुस्से में हैं तो वह बाहर {किसी और पर} इसका अभ्यास करेगी...उसे कहीं तो अभ्यास करना ही है। उसे तो सीखना ही है। नहीं तो वह कैसे सीखेगी? बच्चे ऐसे ही सीखते हैं। तो गुस्सा करो और उसे गुस्सा सीखने दो। प्रेमपूर्ण हो जाओ ताकि वह तुम्हारा प्रेम सीख सके। और हमेशा ईमानदार रहना ताकि वह ईमानदारी भी सीख सके। तुम बस यही कर सकते हो; अन्य कुछ की आवश्यकता नहीं। बस विश्रांत हो जाओ। यदि तुम पैसे नहीम देना चाहते, तो साफ कह दो कि तुम नहीं देना चाहते! हम बहाने बनाते रहते हैं। हम बहाना बनाते रहते हैं कि हम देना तो चाहते हैं पर यह बच्चे के लिये अच्छा नहीं है।

 

मात्र इतना कहो कि तुम कंजूस हो और कि उसे यह पांच रुपए नहीं देना चाहते! तुम क्यों दो? तुम नहीं देना चाहते! तुम इन पांच रुपयों से चिपके रहना चाहते हो! इस सत्य को स्वीकारो! तुम क्या करते हो? तुम इन पांच रुपयों से चिपके रहते हो और {अपनी बेटी} को यह दिखाते हो कि तुम उसे पांच नहीं पचास देना पसंद करोगे परंतु दे नहीं सकते क्योंकि यह उसके लिये हानिकारक होगा। वह आईस क्रीम या कुछ भी खा लेगी। यह सब बकवास है! साधारण हो रहो:साफ कहो कि तुम पांच रुपये देना सहन नहीं कर सकते, इससे तुम्हें बहुत तकलीफ होती है। जब तुम्हारे पर्स में से पांच रुपये निकलते हैं तो तुम पूरी रात सो नहीं पाते। स्पष्ट रहो...साधारण और सच्चे और वह समझ जायेगी।

 

न तो नियंत्रण करने की कोशिश करो और न ही अस्वाभाविक होने की। सब यही कर रहे हैं; और यही सब जगह होता है। मैं चाहूंगा कि मेरे सन्यासी भिन्न हों, यदि तुम {अपनी बेटी} को मनोरोगी होने से बचा सको तो बहुत होगा; तुमने अपना कर्तव्य कर दिया।

 

बस स्वाभाविक और सच्चे रहो। और मैं तुमसे कहूं कि यह कभी भी महंगा नहीं है। सत्य कभी महंगा नहीं होता, केवल असत्य महंगा होता है। हालांकि प्रारंभ में ऐसा लगता है कि असत्य फायदेमंद है और सत्य महंगा है; लेकिन अंतत: सत्य सदा विजयी होता है और असत्य की सदा हार होती है। यह तुम्हारे लिये मुश्किल होगा क्योंकि असत्य होना आसान है। तुम्हें उसका प्रशिक्षण दिया गया है, तुम्हारी मां ने तुम्हें प्रशिक्षण दिया है, तो वही तुम {अपनी बेटी} से करना चाहते हो। हट कर व्यवहार करो, कम से कम अपनी मां से हटकर व्यवहार करो

 

हम कौन होते हैं किसी को नियंत्रण करने वाले? हमें क्या मालूम कि क्या सही है क्या ग़लत? तो हम इतना तो कर ही सकते हैं कि स्वाभाविक हो जायें और आशा करें कि सब ठीक होगा, बस इतना ही। स्वाभाविक, प्रार्थनापूर्ण।

 

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