संपर्क : 7454046894
बुद्धवाणी : बुद्धि से ही यह समस्त संसार प्रकाशवान है
■ पांचों इंद्रियों की मदद से जो ज्ञान मिलता है वही बुद्धि है। बुद्धि का होना ही सत्य है। बुद्धि से ही यह समस्त संसार प्रकाशवान है।
■ न यज्ञ से कुछ होता है और न ही धार्मिक किताबों को पढ़ने मात्र से।
■ पूजा-पाठ से पाप नहीं धुलते।
■ जैसा मैं हूं, वैसे ही दूसरा प्राणी है। जैसे दूसरा प्राणी है, वैसा ही मैं हूं इसलिए न किसी को मारो, न मारने की इजाजत दो।
■ किसी बात को इसलिए मत मानो कि दूसरों ने ऐसा कहा है या यह रीति-रिवाज है या बुजुर्ग ऐसा कहते हैं।
मानो उसी बात को, जो कसौटी पर खरी उतरे।
■ कोई परंपरा या रीति-रिवाज अगर मानव कल्याण के खिलाफ है तो उसे मत मानो।
■ इस ब्रह्मांड में सब कुछ क्षणिक और नश्वर है। कुछ भी स्थायी नहीं। सब कुछ लगातार बदलता रहता है।
■ एक धूर्त और खराब दोस्त जंगली जानवर से भी बदतर है, क्योंकि जानवर आपके शरीर को जख्मी करेगा, जबकि खराब दोस्त बुद्धि को नष्ट करेगा ।
■ आप चाहे कितने ही पवित्र और अच्छे शब्द पढ़ लें या बोल लें, लेकिन अगर उन पर अमल न करें, तो कोई फायदा नहीं।
■सेहत सबसे बड़ा तोहफा है, संतुष्टि सबसे बड़ी दौलत और वफादारी सबसे अच्छा रिश्ता है।
■ अमीर और गरीब, दोनों से एक जैसी सहानुभूति रखो क्योंकि हर किसी के पास अपने हिस्से का दुख और तकलीफ है बस किसी के हिस्से ज्यादा तकलीफ आती है, तो किसी के कम।
■ हजारों लड़ाइयांँ जीतने से बेहतर खुद पर जीत हासिल करना है।
■ इंसान को गलत रास्ते पर ले जानेवाला उसका अपना दिमाग होता है, न कि उसके दुश्मन।
■ शक से बुरी आदत कोई नहीं होती। यह लोगों के दिलों में दरार डाल देती है।
यह ऐसा जहर है,जो रिश्तों को कड़वा कर देता है
■ गुस्से के लिए आपको सजा नहीं दी जाएगी, बल्कि खुद गुस्सा आपको सजा देगा।