ओशो और प्रेम

ओशो – प्रेमपूर्ण हो जाओ

ओशो – प्रेमपूर्ण हो जाओ

सीने में रह-रह के उबलती है , न पूछ

अपने दिल पे मुझे काबू ही नहीं रहता है ।।
कवि लिखते रहे इंकलाब की बातें भी , बगावत के गीत भी ।
मगर कवियों से कहीं बगावत हो सकती है !

गीत ही रच सकते हैं , गीत ही गुनगुना सकते हैं ।

उनके गीत बांझ है ।

उनके गीत नपुंसक हैं ।
सिवाय ध्यान के न कभी कोई क्रांति हुई है न हो सकती है ।

ध्यान का अर्थ हैः – हटा दो सारी अड़चनें , जो दूसरो ने तुम पर थोप दी है ;
हटा दो सारे विचार और पक्षपात —- जाति के , समाज के , 

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