प्राणायाम दो शब्द प्राण एवं आयाम से मिलकर बना है

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प्राण शब्द जीवन का पर्यायवाची है जब तक शरीर में प्राण हैं तब तक जीवन है और जैसे ही प्राण शरीर को छोड़ देते हैं शरीर मृत्यु पर हो जाता है यहां प्राण का तात्पर्य प्राणवायू से है उपनिषद एक मान्यता के अनुसार जब प्यारी संसार में आता है तो वह निश्चित मात्रा में स्वास्थ्य लेकर आता है और उतनी ही स्वास्थ्य तक जीवित रहता है यह सत्य है कि प्राणी का जीवन 19 वर्षों तक ही सीमित है प्राणी अपने शरीर की रचना के अनुसार ही श्वास तेजी अधीर ग्रहण करता है कुछ प्राणी श्वास बहुत धीरे धीरे ग्रहण करते हैं और कुछ लंबी आयु के होते हैं तो कुछ प्यारी श्वास तेजी से ग्रहण करने के कारण अल्पायु ही प्राप्त करते हैं इस प्राण वायु के जिस प्राणी प्राणी श्वास द्वारा अंदर खींचता है एवं बाहर निकालता है नियंत्रण को प्राणायाम कहते हैं प्राणायाम दो शब्द प्राण एवं आयाम से मिलकर बना है रावण का अर्थ है प्राणवायू जीवनदायिनी शक्ति दिव्य ऊर्जा कारण स्वास्थ्य आदि से है चौथा आयाम का अर्थ निरंतर संकुचन विस्तार से है इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रणाम एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्राण वायु का विस्तार किया जा सकता है जिससे दूसरे शब्दों में प्राणायाम ऐसा विज्ञान है जिसके द्वारा मनुष्य अपनी आयु का विस्तार कर सकता है पर जो कि जीवन शक्ति के रूप में समस्त प्राणियों के भीतर विद्यमान रहता है उसी प्रकार की विजय विजय पाई प्राणायाम का उद्देश्य है समानता प्राणायाम अभ्यास की तीन अवस्थाएं होती हैं जिंहें पूरक रेचक कुंभक कहते हैं एवं ही रंग दो प्रकार की होती है श्वास को भीतर अथवा बाहर रोक नही प्राणायाम का वास्तविक अर्थ है इसे प्राणायाम विश्वास की लंबाई कहते हैं का विस्तार होता है ना शास्त्रों द्वारा फेफड़ों में वायु को खींचकर भरने की प्रक्रिया कहलाती है तथा वायु को नाथद्वारा बाहर फेंकने की प्रक्रिया कहलाती है धारण करने की प्रक्रिया कहलाती है जब वह आ जाए तो इसे कहते हैं तथा को निष्कासित कर के रखा जाए तो इसे कहते हैं महर्षि पतंजलि साधना पतंजलि में प्राणायाम चौथा सोपान है यम नियम आसन से पहले आते हैं तथा प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि इसके पीछे योग साधना का उद्देश्य शारीरिक मानसिक स्थापित करना है आत्मा शरीर से छूटकर स्थिति को प्राप्त हो जाए तथा प्रत्याहार ध्यान अभ्यास के साधन है जबकि प्राणायाम दोनों के बीच का शरीर और मन दोनों का महत्व होता है प्राणायाम साधना सिद्धि के दो मार्ग है मार्ग में हम ग्रह होता है साधना आती है अधिक समय तक का अभ्यास करते हुए साधना करते हैं जबकि दूसरे अभ्यास करते हैं भूत होने वाला है लेकिन गलत अभ्यास द्वारा इसके खतरे की अधिक हैं जबकि दूसरा माल है जिसमें धीरे धीरे लाभ प्राप्त होता है हम यहां दूसरे मार का ही अनुसरण करेंगे जिससे प्राणायाम के गलत अभ्यास से होने वाली हानियों से बचा जा सके

 

 

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