ध्यान की व्याख्या

प्रत्येक ध्यान के शीघ्र बाद करुणावान रहो

करुणावान व्यक्ति सर्वाधिक धनी होता है, वह सृष्टि के शिखर पर विराजमान है। उसकी कोई परिधि नहीं, कोई सीमा नहीं। वह बस देता है और अपनी रास्ते चला जाता है। वह तुम्हारे धन्यवाद की भी प्रतीक्षा नहीं करता। वह अत्यंत प्रेम से अपनी उर्जा को बांटता है। इसी को मैं स्वास्थ्य्प्रद कहता हूं। Read More : प्रत्येक ध्यान के शीघ्र बाद करुणावान रहो about प्रत्येक ध्यान के शीघ्र बाद करुणावान रहो

ओशो – ध्यानी का आहार

ओशो – ध्यानी का आहार

मनुष्य एक अकेली प्रजाति है जिसका आहार अनिश्चित है। अन्य सभी जानवरों का आहार निश्चित है। उनकी बुनियादी शारीरिक जरूरतें और उनका स्वभाव फैसला करता है के वे क्या खाते हैं और क्या नहीं; कब वे खाते हैं और कब उन्हें नहीं खाना होता है। किन्तु मनुष्य का व्यवहार बिलकुल अप्रत्याशित है, वह बिल्कुल अनिश्चितता में जीता है। न ही तो उसकी प्रकृति उसे बताती है कि उसे कब खाना चाहिए, न उसकी जागरूकता बताती है कि कितना खाना चाहिए, और न ही उसकी समझ फैसला कर पाती है कि उसे कब खाना बंद करना है|
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जिबरिश ध्यान विधि

जिबरिश ध्यान विधि

जिबरिश ध्यान विधि प्रयोग में आपको जब्बार बन जाना है। यह एक घंटे का ध्यान है; बीस-बीस मिनट के तीन चरण हैं। सायं तीन से छह बजे के बीच इसे करें।

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जिबरिश ध्यान विधि पहला चरण : खुले आकाश के नीचे विश्रामपूर्वक मुद्रा में लेट जाएं और खुली आंख से आकाश में झांकें। किसी बिन्दु-विशेष पर नहीं, बल्कि सम्पूर्ण आकाश में।

 

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अग्नि पर फ़ोकस करना

अग्नि पर फ़ोकस करना

जीवन में मृत्यु के अतिरिक्त कुछ भी निश्चित नहीं है।

और दूसरी बात कि मृत्यु अंत में नहीं घटेगी, वह घट ही रही है। मृत्यु एक प्रक्रिया है। जैसे जीवन प्रक्रिया है, वैसे ही मृत्यु भी प्रक्रिया है। द्वैत हम निर्मित करते हैं; लेकिन जीवन और मृत्यु ठीक तुम्हारे दो पांवों की तरह हैं। जीवन और मृत्यु दोनों एक प्रक्रिया हैं। तुम प्रतिक्षण मर रहे हो।

मुझे यह बात इस तरह से कहने दो: जब तुम श्वास भीतर ले जाते हो तो वह जीवन है; और जब तुम श्वास बाहर निकालते हो तो वह मृत्यु है। Read More : अग्नि पर फ़ोकस करना about अग्नि पर फ़ोकस करना

किसी का ध्यान नहीं करना है, अपने भीतर ध्यान में पहुंचना है।

किसी का ध्यान नहीं करना है

रामकृष्ण को ऐसा हुआ था। वे काली के ऊपर ध्यान करते थे, धारणा करते थे। फिर धीरे-धीरे उनको ऐसा हुआ कि काली के उनको साक्षात होने लगे अंतस में। आंख बंद करके वह मूर्ति सजीव हो जाती। वे बड़े रसमुग्ध हो गए, बड़े आनंद में रहने लगे। फिर वहां एक संन्यासी का आना हुआ। और उस संन्यासी ने कहा कि ‘तुम यह जो कर रहे हो, यह केवल कल्पना है, यह सब इमेजिनेशन है। यह परमात्मा का साक्षात नहीं है।’ रामकृष्ण ने कहा, ‘परमात्मा का साक्षात नहीं है? मुझे साक्षात होता है काली का।’ उस संन्यासी ने कहा, ‘काली का साक्षात परमात्मा का नहीं है।’ 
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यौगिक ध्यान से लाभ

महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में ध्यान भी एक सोपान है।
चित्त को एकाग्र करके किसी एक वस्तु पर केन्द्रित कर देना ध्यान कहलाता है। प्राचीन काल में ऋषि मुनि भगवान का ध्यान करते थे। ध्यान की अवस्था में ध्यान करने वाला अपने आसपास के वातावरण को तथा स्वयं को भी भूल जाता है। ध्यान करने से आत्मिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास होता है। जिस वस्तु को चित मे बांधा जाता है उस मे इस प्रकार से लगा दें कि बाह्य प्रभाव होने पर भी वह वहाँ से अन्यत्र न हट सके, उसे ध्यान कहते है।
ध्यान से लाभ
ऐसा पाया गया है कि ध्यान से बहुत से मेडिकल एवं मनोवैज्ञानिक लाभ होते हैं।
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साप्ताहिक ध्यान : अपने विचारों से तादात्मय तोड़ें

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अपनी आंखें बंद करें, फिर दोनों आंखों को दोनों भवों के बीच में एकाग्र करें, ऐसे जैसे तुम दोनों आंखों से देख रहे हों। अपनी संपूर्ण एकाग्रता वहां ले जाएं। 

 

एक सही बिंदु पर तुम्हारी आंखें स्थिर हो जाएंगी। और अगर तुम्हारी एकाग्रता वहां है तो तुम्हें अजीब सा अनुभव होगा: पहली बार तुम्हारा साक्षात्कार तुम्हारे विचारों से होगा; तुम साक्षी हो जाओगे। यह चित्रपट की तरह है: विचार दौड़ रहे हैं और तुम साक्षी हो।  Read More : साप्ताहिक ध्यान : अपने विचारों से तादात्मय तोड़ें about साप्ताहिक ध्यान : अपने विचारों से तादात्मय तोड़ें