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एक भंवरे की मित्रता ... एक गोबरी कीड़े के साथ हो गई

एक भंवरे की मित्रता ...
एक गोबरी कीड़े के साथ हो गई.
कीड़े ने भंवरे से कहा ~
भाई ! तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो,
इसलिये मेरे यहाँ भोजन पर आओ.
अगले दिन सुबह भंवरा तैयार होकर
अपने बच्चों के साथ गोबरी कीड़े के यहाँ
भोजन के लिये पहुँचा.
कीड़ा उन को देखकर बहुत खुश हुआ,
और सब का आदर करके भोजन परोसा.
भोजन में गोबर की गोलियाँ परोसी, और
कीड़े ने कहा ~ खाओ भाई !
भंवरा सोच में पड़ गया कि ~
मैंने बुरे का संग किया, इसलिये ...
मुझे गोबर तो खाना ही पड़ेगा.
ये सब मुझे इसका संग करने से मिला,
और फल भी पाया. अब इसे भी
मेरे संग का फल मिलना चाहिये.
भंवरा बोला ~ भाई !
आज मैं आपके यहाँ
भोजन के लिये आया,
अब तुम भी कल
मेरे यहाँ आओगे.
अगले दिन कीड़ा तैयार होकर ...
भंवरे के यहाँ पहुँचा.
भंवरे ने कीड़े को उठा कर,
गुलाब के फूल में बिठा दिया.
कीड़े ने फूलों का रस पिया.
फिर अपने मित्र का धन्यवाद किया, और
कहा ~ मित्र ! तुम तो बहुत अच्छी जगह
रहते हो, और अच्छा खाते हो.
इस के बाद कीड़े ने सोचा ~
क्यों न अब मैं यहीं रह जाऊँ, और
ये सोच कर कीड़ा फूल में ही बैठा रहा,
तभी वहाँ पास के मंदिर का पुजारी आया
फूल तोड़ कर ले गया, और चढ़ा दिया ...
बिहारी जी और राधा जी के चरणों में.
कीड़े को भगवान के दर्शन भी हुये, और
उनके चरणों में बैठने का सौभाग्य भी.
इस के बाद संध्या में पुजारी ने
सारे फूल इक्कठा किये, और
गंगा जी में छोड़ दिए.
कीड़ा गंगा की लहरों पर लहर रहा था,
और अपनी किस्मत पर हैरान था कि ...
कितना पुण्य हो गया.
इतने में ही भंवरा उड़ता हुआ
कीड़े के पास आया और बोला ~
मित्र ! अब बताओ ... क्या हाल है ?
कीड़े ने कहा ~
भाई ! अब जन्म-जन्म के
पापों से मुक्ति हो चुकी है.
जहाँ गंगा जी में मरने के बाद
अस्थियों को छोड़ा जाता है,
वहाँ मैं जिन्दा ही आ गया हूँ.
ये सब मुझे तेरी मित्रता और
अच्छी संगत का ही फल मिला है.
जिसको मैं अपनी जन्नत समझता था,
वो तो गन्दगी थी, और ...
जो तेरी वजह से मिला ~ यही स्वर्ग है.
संगत से गुण ऊपजे,
संगत से गुण जाए.