भगवान महावीर के विचार जो बदल देंगे जिंदगी जीने का तरीका

दुनिया भर में आज धूमधाम से महावीर जयंती (Mahavir Jayanti) मनाई जा रही है. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्‍वामी ने अपना पूरा जीवन त्‍याग, तपस्‍या और अहिंसा में लगा दिया. जैन समुदाय पूरे भक्ति-भाव और आदर के साथ महावीर के नाम का स्‍मरण करता है. उन्‍होंने संसार को न केवल मुक्ति का संदेश दिया बल्‍कि लोगों को जीवन जीने की कला भी सिखाई. भगवान महावीर ने आत्मिक और शाश्‍वत सुख के लिए अहिंसा के मार्ग को अपनाने का उपदेश दिया. उनका कहना था कि इस पूरे संसार में अहिंसा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है. महावीर जयंती के मौके पर जानिए भगवान महावीर के 15 अनमोल विचार जिन्‍हें अपनाकर आप अपने जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल सकते हैं:
1. "आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है,
 असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं, वो शत्रु हैं क्रोध- 
 घमंड, लालच, आसक्ति और नफरत."

2. "सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं, और वे खुद अपनी गलती सुधार कर सुखी हो सकते हैं."

3. "किसी के अस्तित्व को मत मिटाओ `शांतिपूर्वक जियो और दूसरों को भी जीने दो."

4. "सुखी जीवन जीने के लिए दो बातें हमेशा याद रखें- अपनी मृत्यु और भगवान."

5. "हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो, घृणा से विनाश होता है."

6. "स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना? वह जो स्‍वयं पर विजय कर लेगा उसे आनंद की प्राप्ति होगी."

7. "आत्मा अकेले आती है और अकेले चली जाती है...न ही कोई उसका साथ देता है और न ही कोई उसका मित्र बनता है!"

8. "किसी भी जीव को नुकसान न पहुचाएं, गाली ना दें, अत्याचार न करें, उसे दास न बनायें, उसका अपमान ना करें, उसे सताएं अथवा प्रताड़ित न करें तथा उसकी हत्या ना करें."

9. "सुख में और दुःख में, आनंद में और कष्ट में, हमें हर जीव के प्रति वैसी ही भावना रखनी चाहिए जैसी हम अपने प्रति रखते हैं."

10. "भगवान का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है. कोई भी सही दिशा में अपना श्रेष्ठ प्रयास करके देवत्व को प्राप्त कर सकता है."

11. क्रोध हमेशा अधिक क्रोध को जन्म देता है और क्षमा और प्रेम हमेशा अधिक क्षमा और प्रेम को जन्म देते हैं."

12. "किसी आत्मा की सबसे बड़ी भूल खुद के असली रूप को नहीं पहचानना है और यह ज्ञान से ही प्राप्त हो सकता है."

13. "अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है."
14. "शांति और खुद पर नियंत्रण ही अहिंसा है."

15. "हर एक आत्मा अपने आप में ही सर्वज्ञ (परिपूर्ण) और आनंदित है. आनंद कभी बाहर से नहीं आता."

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