हैदराबाद का विलय: एक अनकही कहानी

हैदराबाद का विलय: एक अनकही कहानी

हैदराबाद के विलय की कहानी हममें से कइयों को स्कूलों में नहीं सुनाई गई होगी. हममें से कइयों को यह भी नहीं पढ़ाया गया होगा कि आजादी के समय भारत में 500 से भी ज्यादा रियासतें ऐसी थीं, जो देश का हिस्सा नहीं थीं, और इन रियासतों को भारतीय गणराज्य में शामिल होने के लिए मनाया गया था या मजबूर किया गया था.

 

हैदराबाद रियासत विलय में सरदार पटेल की भूमिका 
दूसरी ओर ऐसी खबरे भी आने लगी कि निजाम ब्रिटिश एजेंडों के माध्यम से पाकिस्तान से हथियार प्राप्त कर रहा है. हैदराबाद से बड़ी संख्या में जनता पलायन से पडौसी राज्य मद्रास (तमिलनाडु) पर भार बढ़ गया.

  • इन सब बातों के कारण सरदार पटेल ने इन्तजार करने की बजाय निर्णायक कार्यवाही करने का फैसला किया.
  • सरदार पटेल ने निजाम के खिलाफ सैनिक कार्यवाही करना तय किया. और इसकी अनुमति हेतु मंत्रीमंडल की बैठक बुलाने का पंडित नेहरु से आग्रह किया.
  • बैठक में सरदार पटेल ने हैदराबाद पर आक्रमण की योजना प्रस्तुत की. प्रधानमन्त्री ने इस पर शंका व्यक्त की.
  • पटेल ने इस कार्यवाही को आवश्यक बताते हुए कहा कि यदि अपने पेट का यह फोड़ा निकालकर हम फैक नही देगे तो स्वयं अपनी कब्र खोदने का काम करेगे.
  • 13 सितम्बर 1948 को भारतीय सेना ने हैदरा बाद पर तीन ओर से हमला किया. इस हमले को ऑपरेशन पोलो नाम दिया. निजाम के सैनिक एक दो दिन में ही मौर्चा छोड़कर भागने लगे.
  • रजाकारों ने भी चार दिन में ही समर्पण कर दिया. इस लड़ाई में भारतीय सेना के बयालीस जबकि दो हजार रजाकार मारे गये.
  • 17 सितम्बर 1948 को निजाम ने हैदराबाद रियासत के भारत में विलय को स्वीकार किया. सरदार पटेल ने हैदराबाद जाकर निजाम से विलय पत्र पर हस्ताक्षर करवाएं.
  • पटेल ने कहा ”निजाम समाप्त हो गया है, भारत के सीने का केन्सर (फोड़ा) हमने मिटा दिया है” इस प्रकार सरदार पटेल की द्रढ़ता, दूरदर्शिता और साहस के परिणामस्वरूप हैदराबाद का भारत में एकीकरण संभव हुआ.

 

 

 

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