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अमरीका में अब नहीं चलेगा 'चाइना मोबाइल'
चीनी सरकार के अधिग्रहण वाली कंपनी चाइना मोबाइल ने साल 2011 में अमरीका के यूएस फेडरल कम्युनिकेशन कमीशन (एफ़सीसी) के पास लाइसेंस प्राप्त करने के लिए अर्जी दी थी.
लेकिन अमरीका के वाणिज्य विभाग ने इस अर्जी को ख़ारिज करने की सलाह दी है.
हाल में अमरीका और चीन के बीच के शुरू हुए ट्रेड वॉर के बाद वाणिज्य विभाग की तरफ से यह सलाह दी गई है.
वाणिज्य विभाग में संचार एवं सूचना के सहायक सचिव डेविड जे रेडिल ने कहा है, ''चाइना मोबाइल के साथ तमाम तरह की बातचीत और वार्ता के बाद अमरीकी कानून और राष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में जो ख़तरे बताए गए थे, वे अभी भी सुलझाए नहीं जा सके हैं.''
''यही वजह है कि अमरीकी सरकार की कार्यकारी शाखा ने नेशनल टेलीकम्युनिकेशन एंड इनफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन (एनटीआईए) की सलाह पर एफ़सीसी को कहा है कि वह चाइना मोबाइल की लाइसेंस संबंधी अर्जी ख़ारिज कर दे.''
हालांकि चाइना मोबाइल और एफ़सीसी दोनों में से कोई भी इस संबंध में टिप्पणी करने लिए उपलब्ध नहीं था.
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Image captionज़ेडटीई चीन के शेनज़ेन में स्थित टेक्नोलॉजी फ़र्म है
दोनों देशों बीच बढ़ता तनाव
इससे पहले अप्रैल महीने में अमरीका के वाणिज्य विभाग ने पाया था कि चीनी सरकार के अधिकार वाली टेक्नोलॉजी फ़र्म ज़ेडटीई ने उत्तर कोरिया और ईरान के साथ लगे आर्थिक प्रतिबंधों का उल्लंघन किया था.
इस फ़र्म पर चीन की तरफ से अमरीकी सप्लायरों से सामान खरीदने पर रोक लगाई गई थी, इस वजह से शेनज़ेन स्थित ज़ेडटीई को अपने कई प्रमुख प्रोजेक्ट रोकने पड़ गए थे और उनका व्यापार भी काफी हद तक प्रभावित हुआ था.
इसी तरह बीजिंग पर दबाव बनाने के लिए अमरीका ने ज़ेडटीई के साथ एक समझौते को रोक दिया जिस वजह से इस फ़र्म को 1 बिलियन डॉलर का ज़ुर्माना भी भरना पड़ा.
ज़ेडटीई ने अमरीका की बहुत से मांगों को मान लिया, इसके बाद अमरीका ने इस फ़र्म पर लगे प्रतिबंध हटाने की बात कही.
द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इस संबंध में एक लेख प्रकाशित किया जिसका सार था कि ज़ेडटीई के मैनेजमेंट के साथ उतना अधिक बुरा नहीं हुआ जैसा पहले महसूस किया जा रहा था. इस लेख के बाद फ्लोरिडा के सीनेटर मार्को रुबियो ने सवाल उठाया कि ट्रंप प्रशासन एक चीनी फ़र्म के साथ इतनी बातचीत क्यों कर रहा है.
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Image captionअमरीका के बहुत से सीनेटर ज़ेडटीई पर प्रतिबंध बरकरार रखने के पक्ष में थे
फिलहाल अमरीका और चीन दुनिया के बाज़ार पर मजबूत पकड़ रखने वाले ये दोनों देश एक दूसरे पर और अधिक प्रतिबंध लगाने कि फिराक़ में दिख रहे हैं.