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स्वरों का महत्त्व क्या है?
किसी भी राग में दो स्वरों को विशेष महत्त्व दिया जाता है। इन्हें 'वादी स्वर' व 'संवादी स्वर' कहते हैं। वादी स्वर को "राग का राजा" भी कहा जाता है, क्योंकि राग में इस स्वर का बहुतायत से प्रयोग होता है। दूसरा महत्त्वपूर्ण स्वर है संवादी स्वर, जिसका प्रयोग वादी स्वर से कम मगर अन्य स्वरों से अधिक किया जाता है। इस तरह किन्हीं दो रागों में जिनमें एक समान स्वरों का प्रयोग होता हो, वादी और संवादी स्वरों के अलग होने से राग का स्वरूप बदल जाता है। उदाहरणत: राग भूपाली व देशकार में सभी स्वर समान हैं, किंतु वादी व संवादी स्वर अलग होने के कारण इन रागों में आसानी से अंतर बताया जा सकता है। हर राग में एक विशेष स्वर समुह के बार-बार प्रयोग से उस राग की पहचान दर्शायी जाती है। जैसे राग हमीर में 'ग म ध' का बार-बार प्रयोग किया जाता है और ये स्वर समूह राग हमीर की पहचान हैं।
स्वरूप
राग के स्वरूप को आरोह व अवरोह गाकर प्रदर्शित किया जाता है जिसमें राग विशेष में प्रयुक्त होने वाले स्वरों को क्रम में गाया जाता है। उदाहरण के लिए राग भूपाली का आरोह कुछ इस तरह है: सा रे ग प ध सां।
पहचान
हर राग में एक विशेष स्वर समूह के बार बार प्रयोग से उस राग की पहचान दर्शायी जाती है। जैसे राग हमीर में 'ग म ध' का बार बार प्रयोग किया जाता है और ये स्वर समूह राग हमीर की पहचान है।
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