नारायणी

थाट: 

राग नारायणी को दक्षिण पद्धति के संगीत से हिन्दुस्तानी पद्धति में विद्वानों द्वारा लाया गया है। इस राग में कोमल निषाद की उपस्थिति इसे राग दुर्गा से अलग करती है। पंचम न्यास स्वर है और अवरोह में धैवत को दीर्घ किया जाता है, जैसे - सा रे प ; म प नि१ ध ध प। धैवत को दीर्घ करने से यह राग, सूरदासी मल्हार से अलग हो जाता है, जहाँ धैवत दीर्घ नहीं किया जाता। यह एक शांत प्रकृति का राग है, जिसका विस्तार मध्य और तार सप्तकों में किया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग नारायणी का रूप दर्शाती हैं - 
सा रे प ; म प ; म प ध नि१ ध सा' ; म प ध सा' ; सा' रे नि१ ध सा' ; सा' रे' म' रे' सा' ; सा' नि१ ध ध प ; म प ध प म रे ; म रे ,नि१ ,ध सा ;

 

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