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कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत में मूलभूत अंतर क्या हैं?
भारतीय शास्त्रीय संगीत के अंतर्गत दो प्रकार के संगीत आते हैं|
- हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत
- कर्नाटक शास्त्रीय स्नगीत
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत उत्तर भारत से जुड़ा हुआ है और कर्नाटक दक्षिण भारत से|
ये दोनो ही प्रकार के संगीत सामवेद से उत्पन्न हुए हैं| प्राचीन समय में भारत में सिर्फ़ एक ही प्रकार का संगीत प्रचलित था|
लेकिन ग्यारहवीं और बारहवी शताब्दी के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप का अधिकतर उत्तरी हिस्सा मुस्लिम शशकों के अंतर्गत आजाने के कारण यहा का संगीत काफ़ी हद तक फ़ारसी और अरबी संगीत पद्धतियों से प्रभावित हुआ| चूँकि मुस्लिम लोग इस हिस्से को हिन्दुस्तान बुलाते थे तो ये संगीत आगे चलकर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के नाम से जाना गया| और बचे हुए दक्षिण भाग में भारत का मूल संगीत अधिकतर कर्नाटक और इसके आसपास के क्षेत्र में फला फूला तो इस हिस्से के संगीत को कर्नाटक शास्त्रीय संगीत कहा गया| इसलिए आज भी कर्नाटक संगीत को प्राचीन भारत के संगीत के सबसे समीप माना जाता है|
अब हम लोग आते हैं इन दोनो प्रकार के संगीत के बीच में अंतर पर|
दोनो ही प्रकार के संगीत में राग और सात स्वर की अवधारणा है| लेकिन दोनो मे अलग अलग प्रकार के वाद्या यंत्रो को प्रधानता दी जाती है|और इसके अलावा मुख्य अंतर ये है की किस प्रकार से संगीत की प्रस्तुति की जाती है| समान सुरो की रचना की हिन्दुस्तानी संगीत में अलग तरीके से प्रस्तुति की जाएगी और कार्नेटिक मे अलग प्रकार से| उदाहरण के तौर पर राग भोपाली(हिन्दुस्तानी राग) और राग मोहनम(कर्नाटिक राग) दोनो ही के आरोह और अवरोह समान हैं लेकिन इनकी प्रस्तुतिकरण अलग अलग प्रकार से होती है| और इसीलिए इनका नाम भी अलग अलग है| और अधिक विस्तार से जान ने के लिए आप इस वीडियो को देख सकते हैं|
अडाना | अभोगी कान्ह्डा | अल्हैया बिलावल | अल्हैयाबिलावल | अहीर भैरव | अहीरभैरव | आनंदभैरव | आसावरो | ककुभ | कलावती | काफ़ी | काफी | कामोद | कालिंगड़ा जोगिया | कीरवाणी | केदार | कोमल-रिषभ आसावरी | कौशिक कान्हड़ा | कौशिक ध्वनी (भिन्न-षड्ज) | कौसी | कान्ह्डा | खंबावती | खमाज | खम्बावती | गारा | गुणकली | गुर्जरी तोडी | गोपिका बसन्त | गोरख कल्याण | गौड मल्हार | गौड सारंग | गौड़मल्लार | गौड़सारंग | गौरी | गौरी (भैरव अंग) |चन्द्रकान्त | चन्द्रकौन्स | चारुकेशी | छाया-नट | छायानट | जयजयवन्ती | जयतकल्याण | जलधर | केदार | जेजैवंती | जेतश्री | जैत | जैनपुरी | जोग | जोगकौंस | जोगिया | जोगेश्वरी | जौनपुरी | झिंझोटी | टंकी | तिलंग | तिलंग बहार | तिलककामोद | तोडी | त्रिवेणी | दरबारी कान्हड़ा | दरबारी कान्हडा | दीपक | दुर्गा | दुर्गा द्वितीय | देव गन्धार | देवगंधार | देवगिरि बिलावल | देवगिरी | देवर्गाधार | देवश्री | देवसाख | देश | देशकार | देस | देसी | धनाश्री | धानी | नंद | नट भैरव | नट राग | नटबिलावल | नायकी कान्ह्डा | नायकी द्वितीय | नायकीकान्हड़ा | नारायणी | पंचम | पंचम जोगेश्वरी | पटदीप | पटदीपकी | पटमंजरी | परज | परमेश्वरी | पहाड़ी | पीलू | पूरिया | पूरिया कल्याण | पूरिया धनाश्री | पूर्याधनाश्री | पूर्वी | प्रभात | बंगालभैरव | बड़हंससारंग | बसन्त | बसन्त मुखारी | बहार | बागेश्री | बागेश्वरी | बिलावल शुद्ध | बिलासखानी तोडी | बिहाग | बैरागी | बैरागी तोडी | भंखार | भटियार | भीम | भीमपलासी | भूपाल तोडी | भूपाली | भैरव | भैरवी | मधमाद सारंग | मधुकौंस | मधुवन्ती | मध्यमादि सारंग | मलुहा | मल्हार | मांड | मारवा | मारू बिहाग | मालकौंस | मालकौन्स | मालगुंजी | मालश्री | मालीगौरा | मियाँ की मल्लार | मियाँ की सारंग | मुलतानी | मेघ | मेघ मल्हार | मेघरंजनी | मोहनकौन्स | यमन | यमनी | रागेश्री | रागेश्वरी | रामकली | रामदासी मल्हार | लंका-दहन सारंग | लच्छासाख |ललिट | ललित | वराटी | वसंत | वाचस्पती | विभाग | विभास | विलासखानी तोड़ी | विहाग | वृन्दावनी सारंग | शंकरा | शहाना | शहाना कान्ह्डा | शिवभैरव | शिवरंजनी | शुक्लबिलावल | शुद्ध कल्याण | शुद्ध मल्लार | शुद्ध सारंग | शोभावरी | श्याम | श्याम कल्याण | श्री | श्रीराग | षट्राग | सरपर्दा | सरस्वती | सरस्वती केदार | साजगिरी | सामंतसारंग | सारंग (बृंदावनी सारंग) | सिंदूरा | सिंधुभैरवी | सिन्धुरा | सुघराई | सुन्दरकली | सुन्दरकौन्स | सूरदासी मल्हार | सूरमल्लार | सूहा | सैंधवी | सोरठ | सोहनी | सौराष्ट्रटंक | हंसकंकणी | हंसकिंकिणी | हंसध्वनी | हमीर | हरिकौन्स | हामीर | हिंदोल | हिन्डोल | हेमंत |हेमकल्याण | हेमश्री |