भारतीय शास्त्रीय संगीत

कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत में मूलभूत अंतर क्या हैं?

कर्नाटक और हिंदुस्तानी

भारतीय शास्त्रीय संगीत के अंतर्गत दो प्रकार के संगीत आते हैं|

  • हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत
  • कर्नाटक शास्त्रीय स्नगीत

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत उत्तर भारत से जुड़ा हुआ है और कर्नाटक दक्षिण भारत से|

ये दोनो ही प्रकार के संगीत सामवेद से उत्पन्न हुए हैं| प्राचीन समय में भारत में सिर्फ़ एक ही प्रकार का संगीत प्रचलित था| Read More : कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत में मूलभूत अंतर क्या हैं? about कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत में मूलभूत अंतर क्या हैं?

कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत में मूलभूत अंतर

कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत में मूलभूत अंतर

१. हिंदुस्तानी पद्दति में विविधता बहुत है और विविधता पर आज भी बिना झिझक कार्य हो रहा है। कर्नाटिक में स्थिरता बहुत है और विविधता को कई संगीत शास्त्री अमान्य मानते हैं।

२. हिंदुस्तानी पद्दति में अधिक प्रभाव लोक संगीत का दिखता है और वहीं कर्नाटिक में बहुत बड़े पंडितों और भगवान समान माने जाने वाले संगीत शास्त्रियों के पदचिन्हों पर ही लोग चलना पसंद करते हैं। Read More : कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत में मूलभूत अंतर about कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत में मूलभूत अंतर

स्वरों का महत्त्व क्या है?

स्वरों का महत्त्व क्या है?

किसी भी राग में दो स्वरों को विशेष महत्त्व दिया जाता है। इन्हें 'वादी स्वर' व 'संवादी स्वर' कहते हैं। वादी स्वर को "राग का राजा" भी कहा जाता है, क्योंकि राग में इस स्वर का बहुतायत से प्रयोग होता है। दूसरा महत्त्वपूर्ण स्वर है संवादी स्वर, जिसका प्रयोग वादी स्वर से कम मगर अन्य स्वरों से अधिक किया जाता है। इस तरह किन्हीं दो रागों में जिनमें एक समान स्वरों का प्रयोग होता हो, वादी और संवादी स्वरों के अलग होने से राग का स्वरूप बदल जाता है। उदाहरणत: राग भूपाली व देशकार में सभी स्वर समान हैं, किंतु वादी व संवादी स्वर अलग होने के कारण इन रागों में आसानी से अंतर बताया जा सकता है। हर राग में एक विशेष Read More : स्वरों का महत्त्व क्या है? about स्वरों का महत्त्व क्या है?

हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली में प्रचलित गायन के प्रकार

हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली में प्रचलित गायन के प्रकार

हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली में निम्न गायन के प्रकार प्रचलित हैं - ध्रुवपद, लक्षण गीत, टप्पा, सरगम, कव्वाली, धमार, ठुमरी, तराना, भजन, गीत, खयाल, होरी, चतुरंग, गज़ल, लोक-गीत, नाट्य संगीत, सुगम संगीत, खटके और मुरकियाँ ।

ध्रुवपद-

गंभीर सार्थ शब्दावली, गांभीर्य से ओतप्रोत स्वर संयोजन द्वारा जो प्रबन्ध गाये जाते हैं वे ही हैं ध्रुवपद। गंभीर नाद से लय के चमत्कार सहित जो तान शून्य गीत हैं वह है ध्रुवपद। इसमें प्रयुक्त­ होने वाले ताल हैं - ब्रम्हताल, मत्तताल, गजझंपा, चौताल, शूलफाक आदि। इसे गाते समय दुगनी चौगनी आड़ी कुआड़ी बियाड़ी लय का काम करना होता है। Read More : हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली में प्रचलित गायन के प्रकार about हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली में प्रचलित गायन के प्रकार

नाट्य-शास्त्र संगीत कला का प्राचीन विस्तरित ग्रंथ है

नाट्य-शास्त्र संगीत कला का प्राचीन विस्तरित ग्रंथ है

सामवेद के अतिरिक्त भरत मुनि का ‘नाट्य-शास्त्र’ संगीत कला का प्राचीन विस्तरित ग्रंथ है। वास्तव में नाट्य-शास्त्र विश्व में नृत्य-नाटिका (ओपेरा) कला का सर्व प्रथम ग्रन्थ है। इस में रंग मंच के सभी अंगों के बारे में पूर्ण जानकारी उपलब्द्ध है तथा संगीत की थि्योरी भी वर्णित है। भारतीय संगीत पद्धति में ‘स्वरों’ तथा उन के परस्परिक सम्बन्ध, ‘दूरी’ (इन्टरवल) को प्राचीन काल से ही गणित के माध्यम से बाँटा और परखा गया है। नाट्य-शास्त्र में सभी प्रकार के वाद्यों की बनावट, वादन क्रिया तथा ‘सक्ष्मता’ (रेंज) के बारे में भी जानकारी दी गयी है। Read More : नाट्य-शास्त्र संगीत कला का प्राचीन विस्तरित ग्रंथ है about नाट्य-शास्त्र संगीत कला का प्राचीन विस्तरित ग्रंथ है

हारमोनियम के गुण और दोष

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संस्कृत में थाट का अर्थ है मेल

कल्याण,  बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, भैरवी, तोड़ी

संस्कृत में थाट का अर्थ है मेल। थाट, यह रागों के वर्गीकरण हेतु तैयार की हुई पद्धति है। पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने १० थाट प्रचिलित किये जिनको कोमल, शुद्ध और तीव्र स्वरों के आधार पर बनाया गया जो निम्न हैं - 
(१) कल्याण 
(२) बिलावल 
(३) खमाज 
(४) भैरव 
(५) पूर्वी 
(६) मारवा 
(७) काफी 
(८) आसावरी 
(९) भैरवी 
(१०) तोड़ी Read More : संस्कृत में थाट का अर्थ है मेल about संस्कृत में थाट का अर्थ है मेल

ध्वनि विशेष को नाद कहते हैं

ध्वनि विशेष को नाद

ध्वनि, झरनों की झरझर, पक्षियों का कूजन किसने नहीं सुना है। प्रकृति प्रदत्त जो नाद लहरी उत्पन्न होती है, वह अनहद नाद का स्वरूप है जो कि प्रकृति की स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन जो नाद स्वर लहरी, दो वस्तुओं के परस्पर घर्षण से अथवा टकराने से पैदा होती है उसे लौकिक नाद कहते हैं।
वातावरण पर अपने नाद को बिखेरने के लिये, बाह्य हवा पर कंठ के अँदर से उत्पन्न होने वाली वजनदार हवा जब परस्पर टकराती है, उसी समय कंठ स्थित 'स्वर तंतु' (Vocal Cords) नाद पैदा करते हैं। अत: मानव प्राणी द्वारा निर्मित आवाज लौकिक है।

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भारतीय संगीत

भारतीय संगीत

भारतीय संगीत से, सम्पूर्ण भारतवर्ष की गायन वादन कला का बोध होता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की 2 प्रणालियाँ हैं। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति अथवा कर्नाटक संगीत प्रणाली और दूसरी हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली, जो कि समुचे उत्तर भारतवर्ष मे प्रचलित है। दक्षिण भारतीय संगीत कलात्मक खूबियों से परिपूर्ण है। और उसमें जनता जनार्दन को आकर्षित करने की और समाज मे संगीत कला की मौलिक विधियों द्वारा कलात्मक संस्कार करने की क्षमता है।
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गायकी के 8 अंग (अष्टांग गायकी)

गायकी के 8

वातावरण पर प्रभाव डालने के लिये राग मे गायन, वादन के अविभाज्य 8 अंगों का प्रयोग होना चाहिये। ये 8 अंग या अष्टांग इस प्रकार हैं - स्वर, गीत, ताल और लय, आलाप, तान, मींड, गमक एवं बोलआलाप और बोलतान। उपर्युक्त 8 अंगों के समुचित प्रयोग के द्वारा ही राग को सजाया जाता है।

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