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नंद
राग नन्द को राग आनंदी, आनंदी कल्याण या नन्द कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। इस राग में बिहाग, गौड सारंग, हमीर व कामोद का आभास होता है। जिनसे बचने के लिये - सा ग म ध प रे सा ये राग वाचक स्वर लिये जाते हैं।
सा ग म प नि सा' ; सा' नि ध प - ये राग बिहाग का अंग है, इसे लेने के बाद ग म प ध नि प ; ध म् प ; ग म ध प रे सा ; यह स्वर समुदाय जोडने से राग नंद स्प्ष्ट हो जाता है। अवरोह में गौड सारंगमें स्वर सा' ध नि प ; ध म प ग ; लेने के पश्चात ग म ध प रे सा ग म लेने से राग नंद स्पष्ट हो जाता है। राग हमीर के ग म ध प तथा राग कामोद के म् प ध म् प ग ; ग म् प ग म् यह स्वर लेने के पश्चात रे सा ग म ध प रे सा, यह स्वर समुदाय जोडने से राग नंद स्प्ष्ट हो जाता है।
इस राग का विस्तार मध्य और तार सप्तक में अधिक किया जाता है। इस राग की प्रकृति शांत और करुण रस से परिपूर्ण है। यह स्वर संगतियाँ राग नंद का रूप दर्शाती हैं -
सा ; सा ग म ध प रे सा ; ग म प ध नि ; (ध)प ; प ध (प) म म प ; ग म ध प रे सा ; ग म प नि सा ; प नि रे' नि ध प ; प ध म् प ; ग म (ध)प रे सा ; ग म प ध नि प ; प ध प म् ध प ग म ध प रे सा;
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