भारतीय शास्त्रीय संगीत

निबद्ध- अनिबद्ध गान:

निबद्ध- अनिबद्ध गान

निबद्ध- अनिबद्ध गान: व्याख्या, स्वरूप, भेद

निबद्ध – अनिबद्ध की व्याख्या प्राचीन ग्रंथों से लेकर आधुनिक काल तक होती रही है। निबद्ध -अनिबद्ध विशेषण हैं और ‘गान’ संज्ञा है जिसमें ये दोनों विशेषण लगाए जाते हैं। निबद्ध – अनिबद्ध का सामान्य अर्थ ही है ‘बँधा हुआ’ और ‘न बँधा हुआ’, अर्थात् संगीत में जो गान ताल के सहारे चले वह निबद्ध और जो उस गान की पूर्वयोजना का आधार तैयार करे वह अनिबद्ध गान के अन्तर्गत माना जा सकता है। वैसे निबद्ध के साथ आलप्ति और अनिबद्ध के साथ लय का काम किया जाता रहा है। Read More : निबद्ध- अनिबद्ध गान: about निबद्ध- अनिबद्ध गान:

नाद-साधन भी मोक्ष प्राप्ति का ऐक मार्ग है।

नाद-साधन भी मोक्ष प्राप्ति का ऐक मार्ग है।

हिन्दू मतानुसार मोक्ष प्राप्ति मानव जीवन का लक्ष्य है। नाद-साधन (म्यूजिकल साउँड) भी मोक्ष प्राप्ति का ऐक मार्ग है। नाद-साधन के लिये ऐकाग्रता, मन की पवित्रता, तथा निरन्तर साधना की आवश्यक्ता है जो योग के ही अंग हैं। आनन्द की अनुभूति ही संगीत साधना की प्राकाष्ठा है। संगीत के लिये भक्ति भावना अति सहायक है इस लिये संगीत आरम्भ से ही मन्दिरों, कीर्तनों (डिस्को), तथा सामूहिक परम्पराओं के साथ जुडा रहा है। भारत का अनुसरण करते हुये पाश्चात्य देशों में भी संगीत का आरम्भ और विकास चर्च के आँगन से ही हुआ था फिर वह नाट्यशालाओं में विकसित हुआ, और फिर जनसाधारण के साथ लोकप्रिय संगीत (पापुलर अथवा पाप म्यूज़िक) Read More : नाद-साधन भी मोक्ष प्राप्ति का ऐक मार्ग है। about नाद-साधन भी मोक्ष प्राप्ति का ऐक मार्ग है।

राग भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मा हैं।

राग भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मा हैं। यह संगीत का मूलाधार है। 'राग' शब्द का उल्लेख भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' में भी मिलता है। 'राग' में कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वरों होते हैं। राग वह सुन्दर रचना है, जो कानों को अच्छी लगे।

भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है भारतीय शास्त्रीय संगीत। आज से लगभग ३००० वर्ष पूर्व रचे गए वेदों को संगीत का मूल स्रोत माना जाता है। ऐसा मानना है कि ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को संगीत वरदान में दिया था। चारों वेदों में, सामवेद के मंत्रों का उच्चारण उस समय के वैदिक सप्तक या समगान के अनुसार सातों स्वरों के प्रयोग के साथ किया जाता था। Read More : राग भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मा हैं। about राग भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मा हैं।

रागों का सृजन

रागों का सृजन

रागों का सृजन बाईस श्रुतियों के विभिन्न प्रकार से प्रयोग, विभिन्न रस या भावों को दर्शाने के लिए किया जाता है। प्राचीन समय में रागों को पुरुष व स्त्री रागों में अर्थात राग व रागिनियों में विभाजित किया गया था। सिर्फ़ यही नहीं, कई रागों को पुत्र राग का भी दर्जा प्राप्त था। उदाहरणत: राग भैरव को पुरुष राग और भैरवी, बिलावली सहित कई अन्य रागों को उसकी रागिनियाँ तथा राग ललित, बिलावल आदि रागों को इनके पुत्र रागों का स्थान दिया गया था। बाद में आगे चलकर पंडित विष्णुनारायण भातखंडे ने सभी रागों को दस थाटों में बॉंट दिया। अर्थात एक थाट से कई रागों की उत्पत्ति हो सकती थी। अगर थाट को एक पेड़ माना जाए व उसस Read More : रागों का सृजन about रागों का सृजन

भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है भारतीय शास्त्रीय संगीत।

भारतीय संगीत

भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है भारतीय शास्त्रीय संगीत। आज से लगभग ३००० वर्ष पूर्व रचे गए वेदों को संगीत का मूल स्रोत माना जाता है। ऐसा मानना है कि ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को संगीत वरदान में दिया था। चारों वेदों में, सामवेद के मंत्रों का उच्चारण उस समय के वैदिक सप्तक या समगान के अनुसार सातों स्वरों के प्रयोग के साथ किया जाता था।
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भारतीय शास्त्रीय संगीत की जानकारी

भारतीय शास्त्रीय संगीत की जानकारी

भारतीय शास्त्रीय संगीत की जानकारी
Saturday, May 27, 2006
सात स्वर, अलंकार और हारमोनियम

भारतीय संगीत आधारित है स्वरों और ताल के अनुशासित प्रयोग पर। सात स्वरों के समुह को सप्तक कहा जाता है। भारतीय संगीत सप्तक के सात स्वर हैं-

सा(षडज), रे(ऋषभ), ग(गंधार), म(मध्यम), प(पंचम), ध(धैवत), नि(निषाद)

अर्थात

सा, रे, ग, म, प ध, नि Read More : भारतीय शास्त्रीय संगीत की जानकारी about भारतीय शास्त्रीय संगीत की जानकारी

रागों की उत्पत्ति ‘थाट’ से होती है।

रागों की उत्पत्ति

हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति रागों पर आधारित है । रागों की उत्पत्ति ‘थाट’ से होती है। थाटों की संख्या गणित की दृष्टि से ‘72’ मानी गयी है किन्तु आज मुख्यतः ‘10’ थाटों का ही क्रियात्मिक प्रयोग किया जाता है जिन के नांम हैं बिलावल, कल्याण, खमाज, भैरव, भैरवी, काफी, आसावरी, पूर्वी, मारवा और तोडी हैं। प्रत्येक राग विशिष्ट समय पर किसी ना किसी विशिष्ट भाव (मूड – थीम) का घोतक है। राग शब्द सँस्कृत के बीज शब्द ‘रंज’ से लिया गया है। अतः प्रत्येक राग में स्वरों और उन के चलन के नियम हैं जिन का पालन करना अनिवार्य है अन्यथ्वा आपेक्षित भाव का सर्जन नहीं हो सकता। हिन्दूस्तानी संगीत में प्रत्येक राग अपने निर्धारि Read More : रागों की उत्पत्ति ‘थाट’ से होती है। about रागों की उत्पत्ति ‘थाट’ से होती है।

राग की तुलना में भाव सौंदर्य को अधिक महत्वपूर्ण ठुमरी होती है।

ठुमरी- ठुमरी गीत का वह प्रकार है जिसमें राग की शुद्धता की तुलना में भाव और सौंदर्य को अधिक महत्व दिया जाता है। इसकी प्रकृति चपल और द्रुत होती है। इसमें शब्द कम होते हैं और शब्दों का भाव विविध स्वर -समूहों द्वारा व्यक्त किया जाता है। ठुमरी श्रृंगार रस प्रधान होती है। इसमें मींड़ और कण का विशेष प्रयोग होता है।

ठुमरी का एक और प्रकार है जो शब्द और लय प्रधान है। इसके शब्द अनुप्रास युक्त होते हैं, जैसे छाई छटा, तरसे लरजे, जिया पिया बिना इत्यादि ।

इस ठुमरी में वियोग व्यथा की पराकाष्ठा का अनुमान कीजिये।

स्थाई:- पपीहा पी की बोली न बोल। Read More : राग की तुलना में भाव सौंदर्य को अधिक महत्वपूर्ण ठुमरी होती है। about राग की तुलना में भाव सौंदर्य को अधिक महत्वपूर्ण ठुमरी होती है।

निबद्ध- अनिबद्ध गान: व्याख्या, स्वरूप, भेद

निबद्ध- अनिबद्ध गान: व्याख्या, स्वरूप, भेद

निबद्ध – अनिबद्ध की व्याख्या प्राचीन ग्रंथों से लेकर आधुनिक काल तक होती रही है। निबद्ध -अनिबद्ध विशेषण हैं और ‘गान’ संज्ञा है जिसमें ये दोनों विशेषण लगाए जाते हैं। निबद्ध – अनिबद्ध का सामान्य अर्थ ही है ‘बँधा हुआ’ और ‘न बँधा हुआ’, अर्थात् संगीत में जो गान ताल के सहारे चले वह निबद्ध और जो उस गान की पूर्वयोजना का आधार तैयार करे वह अनिबद्ध गान के अन्तर्गत माना जा सकता है। वैसे निबद्ध के साथ आलप्ति और अनिबद्ध के साथ लय का काम किया जाता रहा है। Read More : निबद्ध- अनिबद्ध गान: व्याख्या, स्वरूप, भेद about निबद्ध- अनिबद्ध गान: व्याख्या, स्वरूप, भेद

षडजांतर | शास्त्रीय संगीत के जाति लक्षण क्यां है

षडजांतर | शास्त्रीय संगीत के जाति लक्षण क्यां है

भारत में शास्त्रीय संगीत की परंपरा बड़ी प्राचीन है। राग के प्रादुर्भाव के पूर्व जाति गान की परंपरा थी जो वैदिक परंपरा का ही भेद था। जाति गान के बारे में मतंग मुनि कहते हैं –

“श्रुतिग्रहस्वरादिसमूहाज्जायन्त इति जातय:”

अर्थात् – श्रुति और ग्रह- स्वरादि के समूह से जो जन्म पाती है उन्हें ‘जाति’ कहा है। Read More : षडजांतर | शास्त्रीय संगीत के जाति लक्षण क्यां है about षडजांतर | शास्त्रीय संगीत के जाति लक्षण क्यां है

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