कैसा है बिना बैटरी वाला कैमरा जाने यहां

कैसा है बिना बैटरी वाला कैमरा जाने यहां

डिजनी रिसर्च एवं यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के वैज्ञानिकों ने बताया है कि ऊर्जा-संरक्षित कैमरों से युक्त संवेदी नोडों का एक नेटवर्क, अपने विषय से प्राप्त संकेतों को सूंघकर स्वतः ही हर कैमरे के पोज अर्थात् उसका रुख निश्चित कर सकता है। ऐसे नेटवर्क ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स' (आईओटी) का ही भाग हो सकते हैं, जिससे जानकारियों का आदान-प्रदान हो सकता है। 
इस सेंसिंग तकनीक द्वारा भविष्य में कम खर्च व बिना अतिरिक्त देख-रेख की जरूरत के इंटरनेट ऑफ थिंग्स यानी बिना किसी बाहरी वायरिंग या बैटरी के, वस्तुओं को नेटवर्क से जोड़ने और दूर से ही उन्हें नियंत्रित करने की सुविधा का लाभ लिया जा सकता है। आपको जानकारी दे दे कि ‘‘यूबीकॉम्प 2015'' सम्मेलन में यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग के सह प्राध्यापक सैंपल एंड जोशुआ स्मिथ और अन्य शोधकर्ताओं ने जापान के ओसाका में अपने अध्ययन के परिणामों को पेश किया। 
आपको बता दे कि इस इस टेक्‍नालॉजी से सैंकड़ों, हजारों सेंसरों का जाल बन जाता है जोकि बिना बैटरी अथवा बाहरी ऊर्जा की मदद से काम कर सकता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसकी देखभाल की भी बहुत कम आवश्यकता होती है। अपने रुख को निश्चित करने की हर नोड की शक्ति स्वायत्त सेंसर लगाने की प्रक्रिया को सरल बनाती है। 
विशेष बात यह है कि इन सेंसरों से जो आंकड़े मिलते हैं, वे काफी अधिक सटीक भी होते हैं। डिजनी शोध के शोध वैज्ञानिक ऐलेनसन पी. सैंपल की माने तो ‘इन सैकड़ों, हजारों सेंसरों का जाल पुलों, उद्यम उपकरणों व घर की सुरक्षा की निगरानी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।' 

अमरीकी वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कैमरा तैयार किया है जो फ़ोटो खींचने के लिए रोशनी से ऊर्जा लेता है.

कैमरा अपने सेंसरों पर पड़ने वाली रोशनी के कुछ हिस्से को बिजली में बदल देता है और उसका इस्तेमाल फ़ोटो खींचने में करता है.

सिद्धांत रूप में खुद ही ऊर्जा पैदा करने वाला यह उपकरण हमेशा के लिए हर सेकेंड एक फ़ोटो खींच सकता है.

कैमरा बनाने वाले वैज्ञानिक अब इस उपकरण को बेहतर बनाने में लगे हैं और इस तकनीक के कारोबारी फायदे के तरीके ढूंढ रहे हैं.

फ़ोटोडियोड

सूर्यग्रहणImage copyrightAP

न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय के कंप्यूटर विज़न लैबोरेट्री के निदेशक प्रोफ़ेसर श्री नायर करते हैं, "हम डिजिटल इमेजिंग क्रांति के बीच में खड़े हैं."

"एक ऐसा कैमरा जो बिना किसी बाहरी ऊर्जा के हमेशा के लिए निर्बाध रूप से काम कर सकता हो- यह बहुत काम का हो सकता है."

प्रोफ़ेसर नायर का कहना है कि इस उपकरण को बनाने का विचार तब आया जब उन्होंने महसूस किया कि सौर पैनल और डिजिटल कैमरा लाइट के इस्तेमाल के लिए करीब-करीब एक जैसे घटक, जिन्हें फ़ोटोडियोड कहते हैं, इस्तेमाल करते हैं.

इंजीनियरों के सहयोग से प्रोफ़ेसर नायर एक ऐसा फ़ोटोडियोड तैयार करने में सफल हो गए जिसमें रोशनी के इस्तेमाल की कैमरे की क्षमता और सौर पैनल की बिजली में बदलने की क्षमता दोनों थीं.

अगला कदम बहुत से फ़ोटोडियोड के इस्तेमाल से ऐसा ग्रिड तैयार करना था जो इस पर पड़ रही रोशनी की तीव्रता को महसूस करे और इसके कुछ अंश को ऊर्जा में बदल दे जो तस्वीर लेती है.

'ऊर्जा उत्पादक'

सीसीटीवी कैमराImage copyrightTHINKSTOCK

अभी तैयार प्रोटोटाइप सेंसर ग्रिड का आकार सिर्फ़ 30 से 40 पिक्सल है और यह धुंधली काली-सफ़ेद तस्वीरें ले रहा है.

इसकी क्षमताओं को दिखाने के लिए प्रोफ़ेसर नायर और उनके सहयोगियों ने एक स्व-ऊर्जा से चलने वाले कैमरे से एक शॉर्ट फिल्म शूट की.

प्रोफ़ेसर नायर ने बीबीसी को बताया कि उनका अगला लक्ष्य एक स्व-ऊर्जा से चलने वाला ठोस इमेज सेंसर बनाना है जिसमें पिक्सल काफ़ी ज़्यादा हों और जिसका इस्तेमाल एक ऐसा स्वतंत्र कैमरा बनाने में किया जा सके जिसे कहीं भी उपयोग किया जा सके.

वह कहते हैं कि इस स्व-ऊर्जा वाले सेंसर का इस्तेमाल स्मार्टफ़ोन और दूसरे उपकरणों की ऊर्जा खपत कम करने के लिए भी किया जा सकता है.

इसके अलावा जब यह फ़ोटो न ले रहा हो तो यह एक उपकरण में शामिल ऊर्जा उत्पादक के रूप में भी काम कर सकता है.

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