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आधे मस्तिष्क से भी इन्सान रह सकते हैं ज़िंदा !

सुनकर हैरत होगी लेकिन कुछ व्यक्तियों में पाया गया कि उनके दिमाग़ का एक बड़ा हिस्सा ग़ायब है और उन्हें कोई ख़ास बीमारी भी नहीं है. लेकिन ऐसा क्यों?
मस्तिष्क को मानव शरीर का सबसे अहम हिस्सा माना जाता है और इसका भी अगर महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं हो तो क्या होगा?
टॉम स्टेफ़ोर्ड की पड़ताल
पहली बात तो यह है कि हमें अपने मस्तिष्क के कितने हिस्से की असल में ज़रूरत होती है?
पिछले कुछ महीनों में आई उन ख़बरों पर नज़र दौड़ाई जाए, जिनमें व्यक्ति के दिमाग़ का बड़ा हिस्सा ग़ायब था, तो कुछ चौंकाने वाली बात सामने आती है.
मामला इतना भर नहीं है कि यह हमारी समझ से बाहर है, बल्कि अहम बात यह है कि हम इस बारे में पूरी तरह ग़लत तरीक़े से सोचते आए हैं.
इस साल की शुरुआत में, एक महिला में अनुमस्तिष्क ग़ायब होने का मामला सामने आया, अनुमस्तिष्क काफ़ी अहम हिस्सा है और यह मस्तिष्क के पिछले भाग में पाया जाता है.
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कुछ अनुमानों के मुताबिक़ दिमाग़ की कुल कोशिकाओं का आधा हिस्सा अनुमस्तिष्क में होता है.
अनुमस्तिष्क ग़ायब
यहाँ मामला इन कोशिकाओं का ख़राब होना नहीं था, बल्कि अनुमस्तिष्क ही ग़ायब था. हैरत की बात है कि फिर भी यह महिला सामान्य जीवन जी रही थी.
उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की, शादी की और बिना किसी ख़ास परेशानी के बच्चे को भी जन्म दिया.
ऐसा नहीं है कि दिमाग़ के एक अहम हिस्से के नहीं होने से इस महिला को कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ा था.
वे अनिश्चितता, अनाड़ीपन और कुछ अजीब हरकतें करने जैसी समस्याओं से जूझ रही थी.
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लेकिन हैरानी थी कि मस्तिष्क का बड़ा हिस्सा नहीं होने के बावजूद वो कुछ भी कैसे कर पा रहीं थीं.
इसका मतलब साफ़ है कि मस्तिष्क को लेकर हमारे सोचने के ही तरीक़े में समस्या है.
मसलन अगर मेरे पास एक टोस्टर है तो इसका हीटिंग एलिमेंट ऊष्मा देता है, टाइमर समय नियंत्रित करता है, स्प्रिंग ब्रेड को बाहर की तरफ़ उछालता है.
कार्यप्रणाली अलग
लेकिन अनुमस्तिष्क के ग़ायब होने से पता चलता है कि मस्तिष्क के मामले में ठीक ऐसी व्यवस्था नहीं है.
हालाँकि दिमाग़ के बारे में बात करते हुए अच्छा लगता है कि इसमें देखने, भूख लगने या प्यार के लिए अलग-अलग क्षेत्र हैं, लेकिन ऐसा नहीं है, क्योंकि दिमाग़ ऐसी तकनीक नहीं है जिसमें कोई गतिविधि सिर्फ़ एक हिस्से से नियंत्रित होती है.
एक अन्य ताज़ा मामला देखते हैं, एक व्यक्ति के मस्तिष्क में फीताकृमि पाया गया. चार साल में यह दिमाग़ के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में लगभग आर-पार पहुंच गया.
इससे उस व्यक्ति को याददाश्त में कमी और दुर्गन्ध आने जैसी समस्याएं आई. लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि किसी ज़िंदा चीज़ के दिमाग़ में चलने से उस व्यक्ति पर अत्यधिक असर नहीं हुआ.
सोचने का तरीक़ा ग़लत
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अगर मस्तिष्क किसी डिज़ाइन की गई तकनीक से काम करता तो ऐसा संभव नहीं था.
डिज़ाइन्ड तकनीक के मामले में देखें तो अगर कोई कीड़ा आपके मोबाइल में एक तरफ़ से छेदकर दूसरी तरफ़ से निकले तो मोबाइल ख़राब हो जाएगा.
दरअसल, हमारे मस्तिष्क की कार्यप्रणाली बेहद लचीली है. ऐसा नहीं है कि दिमाग़ का ख़ास हिस्सा ख़ास काम करता है, बल्कि यह कई क्षेत्रों के साथ मिलकर काम करता है, लगभग एक जैसे, लेकिन कुछ हटकर.
अगर एक ढाँचा ख़राब होता है तो दूसरा इसे दूर करने में मदद करता है.
इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि मस्तिष्क विज्ञानियों को यह दिमाग़ के हिस्सों के काम को समझने में दिक़्क़त क्यों आती है.