संपर्क : 7454046894
कुछ लोग लेफ़्ट हैंड से क्यों लिखते हैं?
दुनिया में कुछ लोग अपने बाएं हाथ से क्यों लिखते हैं?
दुनिया भर में लोगों के लिए अब ये एक अनसुलझी पहले बनी हुई थी.
लेकिन अब ब्रितानी वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि इसके लिए इंसानी जीन ज़िम्मेदार हैं.
इंसानों के डीएनए में जीन एक तरह के सुझाव देता है जो कि किसी व्यक्ति के लेफ़्ट हैंडी होने से जुड़ा होता है.
ये सुझाव इंसानी दिमाग़ की बनावट और उसके काम करने के तरीके एवं भाषाई क्षमता पर असर डालते हैं.
ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि इस वजह से लेफ़्ट हैंड से अपने काम करने वालों की बोलने-चालने की क्षमता भी बेहतर हो सकती है.
लेकिन अभी भी कई सवालों के जवाब मिलने बाकी हैं. इनमें से सबसे बड़ा सवाल ये है कि दिमागी विकास का लेफ़्ट हैंडी या राइट हैंडी होने से क्या ताल्लुक है.
ये रिसर्च क्या बताती है?
दुनिया में दस में से एक व्यक्ति अपने लेफ़्ट हैंड से काम करता है.
जुड़वा बच्चों पर हुए अध्ययनों में सामने आया है कि इसमें मां-बाप से मिले डीएनए कुछ भूमिका अदा करता है.
लेकिन इससे जुड़ी जानकारियां अब सामने आ रही हैं.
इमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES
Image captionअमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने लेफ़्ट हैंड से एक अधिनियम पर हस्ताक्षर करते हुए
इस विषय पर शोध करने वालों ने यूके बायोबैंक की मदद ली जहां पर चार लाख लोगों ने अपने जेनेटिक कोड का पूरा सिक्वेंस रिकॉर्ड करवाया है.
इनमें से सिर्फ 38 हज़ार लोग लेफ़्ट हैंडेड निकले.
इसके बाद वैज्ञानिकों ने डीएनए के उन हिस्सों की पहचान की जो कि किसी व्यक्ति के लेफ़्ट हैंडी होने में अपनी भूमिका अदा करते हैं.
जर्नल ब्रेन में छपे अध्ययन में चार हॉटस्पॉट नज़र आए.
इस टीम के एक शोधार्थी प्रोफेसर ग्वेनलि डोउड ने बीबीसी को बताया है, "हमारी शोध का नतीज़ा बताता है कि कोई व्यक्ति किस हाथ का इस्तेमाल करता है, ये बात जीन से जुड़ी हुई है."
लेकिन ये कैसे काम करती है?
इस तरह के बदलाव शरीर की कोशिकाओं के अंदर की संरचना को बनाने के लिए ज़िम्मेदार साइटोस्केलेटन से जुड़े निर्देशों में पाए गए.
सायटोस्केलेटन के निर्माण के लिए दिए गए निर्देशों में बदलाव की वजह से ही घोंघों को अपने लिए जोड़ीदार तलाश करने में दिक्कत होती है.
इमेज कॉपीरइटUNIVERSITY OF NOTTINGHAM
यूके बायोबैंक में मिले डीएनए के स्कैन में जानकारी मिली कि सायटोस्केलेटन दिमाग़ में व्हाइट मैटर की बनावट में बदलाव कर रहा है.
प्रोफेसर डोउड कहते हैं, "ये पहला मौका है जब हम ये तय करने में सक्षम हो सके हैं कि किसी व्यक्ति के लेफ़्ट हैंडी या राइट हैंडी होने से जुड़े साइटोस्केलेटन के बदलाव दिमाग़ में साफ़ नज़र आते हैं."
लेफ़्ट हैंड से काम करने वाले लोगों में दिमाग़ के बाएं और दाएं हिस्से हेमीस्फ़ियर बेहतर ढंग से एक-दूसरे से जुड़े हुए थे. इसके साथ ही भाषा से जुड़े हिस्से भी एक दूसरे से बेहतर ढंग से जुड़े थे.
शोधार्थियों की मानें तो लेफ़्ट हैंड का प्रयोग करने वाले लोगों की बोलचाल की क्षमता ज़्यादा बेहतर होती है. हालांकि, उनके पास इसे साबित करने के लिए कोई आंकड़े मौजूद नहीं हैं.
इस रिसर्च में ये भी सामने आया कि लेफ़्ट हैंड का प्रयोग करने वालों के स्किज़ोफ्रेनिया से ग्रसित होने की आशंका ज़्यादा रहती है. वहीं, इन लोगों को पार्किंसन नामक बीमारी से ग्रसित होने का ख़तरा कम रहता है.
ये रिसर्च क्या बदलेगी.
हाथों के सर्जन और इस रिपोर्ट के लेखक प्रोफेसर डॉमिनिक फर्निस बताते हैं, "कई संस्कृतियों में लेफ़्ट हैंड से काम करने वालों को दुर्भाग्यशाली माना जाता है और उनकी भाषा में भी ये चीज़ सामने आती है.
फ्रांस में गॉश शब्द का मतलब लेफ़्ट होता है. लेकिन इसका मतलब अनाड़ी भी होता है. वहीं, अंग्रेजी में राइट शब्द का अभिप्राय सही होने से भी लगाया जाता है.
फर्निस कहते हैं, "ये स्टडी बताती है कि लेफ़्ट हैंडी होना दिमाग़ी विकास से जुड़ी हुई चीज़ है. इसका किस्मत से कोई लेना-देना नहीं है."
लेकिन इस रिसर्च में भी ये सामने आया है कि राइट या लेफ़्ट हेंडी होने की बात 25 फीसदी जीन के आधार पर तय होती है. और 75 फीसदी दूसरे कारकों पर निर्भर होता है.