मैं एक युवती के प्रेम में था। वह मुझे धोखा दे गई ! मैं क्या करूं

भगवान, मैं एक युवती के प्रेम में था। वह मुझे धोखा दे गई ! मैं क्या करूं

*प्रेम में थे या स्त्री पर कब्जा करने की आकांक्षा में थे? क्योंकि तुम्हारी भाषा कहती है कि वह मुझे धोखा दे गई और किसी और की हो गई! प्रेम को इससे क्या फर्क पड़ता है!*

*अगर वह युवती किसी और के साथ ज्यादा सुखी है, तो तुम्हें प्रसन्न होना चाहिए। क्योंकि प्रेम तो यही चाहता है कि जिसे हम प्रेम करते हैं, वह ज्यादा सुखी हो, वह आनंदित हो। अगर वह युवती तुम्हारे बजाय किसी और के पास ज्यादा आनंदित है, तो इसमें रस खो देने का कहां कारण है!*

*मगर हम प्रेम वगैरह नहीं करते। प्रेम के नाम पर हम कुछ और करते हैं--कब्जा--मालकियत। तुम पति होना चाहते थे। पति यानी स्वामी। और वह किसी और की हो गई!*

*और मजा यह है कि तुम्हें उससे प्रेम था। तुमने अपने प्रश्न में यह तो बताया ही नहीं कि उसे भी तुमसे प्रेम था या नहीं। तुम से होता, तो तुम्हारे साथ होती। तुम्हें प्रेम था, इससे जरूरी तो नहीं कि उसे भी प्रेम हो। प्रेम कोई जबर्दस्ती तो नहीं। तुम्हें था, यह तुम्हारी मर्जी। और उसे नहीं था, तो उसकी भी तो आत्मा है, उसकी भी तो स्वतंत्रता है। अब किसी को किसी से प्रेम हो जाए और दूसरे को प्रत्युत्तर देना न हो, तो कोई जबर्दस्ती तो नहीं है।*

*तुम प्रेम करने को स्वतंत्र हो, लेकिन किसी के मालिक होने को स्वतंत्र नहीं हो। तुम किसी के जीवन पर छा जाना चाहो, हावी होना चाहो, यह तो अहंकार है--प्रेम नहीं है। प्रेम जानता है--स्वतंत्रता देना।*

*खुश होओ कि अगर वह कहीं भी है और प्रसन्न है।...यही तो तुम चाहते थे कि वह प्रसन्न हो जाए। लेकिन नहीं। शायद तुम यह नहीं चाहते थे। तुम चाहते थे कि वह तुम्हारी छाया बन कर चले। तुम्हारे अहंकार की तृप्ति हो। वह तुम्हारा आभूषण बने। तुम दुनिया को कह सको कि देखो, मैंने इस युवती को जीत लिया! वह तुम्हारी विजय का प्रतीक बने, पताका बने। यह तुम्हारे अहंकार का ही आयोजन था। और अहंकार जहां है, वहां प्रेम नहीं है*

ओशो

 

 

 

Vote: 
No votes yet

New Dhyan Updates

ओशो – तुम कौन हो ?
व्यस्त लोगों के लिये ध्यान - व्यस्त लोगों के लिये ध्यान
आप अच्छे हैं या स्वाभाविक?
स्वर्णिम प्रकाश ध्यान : ओशो
आज के युग मे ओशो सक्रिय ध्यान
ओशो: जब कामवासना पकड़े तब क्या करें ?
संकल्प कैसे काम करता है?
ओशो – सब उस गोविन्द का खेल है
ध्यान : काम ऊर्जा से मुक्ति
साप्ताहिक ध्यान : "हां' का अनुसरण
जहाँ मन समाप्त होता है, वहाँ ध्यान शुरू होता है!
ओशो – तीसरी आँख सूक्ष्‍म शरीर का अंग है
साधक के लिए पहली सीढ़ी शरीर है
व्यस्त लोगों के लिये ध्यान : संतुलन ध्यान
चेतना की वह अकेली अवस्था ध्यान है।
जगत ऊर्जा का विस्तार है
व्यस्त लोगों के लिये ध्यान : श्वास : सबसे गहरा मंत्र
जब हनीमून समाप्त हो जाता है तो इसके बाद क्या?
स्त्रियां पुरुष के लिए आकर्षक क्यों बनना चाहती हैं जबकि वे पुरुषों की कामुकता जरा भी पसंद नहीं करतीं ?
साप्ताहिक ध्यान : ज्ञान और अज्ञान, दोनों के पार
ध्यान : अपना मुंह बंद करो!
करने की बीमारी
ध्वनि के केंद्र में स्नान करो
कृत्रिम न होओ , स्वाभाविक रहो अपने ऊपर आदर्श मत ओढो़
ध्यान: श्वास को विश्रांत करें