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शंखपुष्पी मानसिक रोगों को नष्ट करने वाली होती है।

शंखपुष्पी पर शंख की आकृति वाले सफ़ेद रंग के पुष्प आते है, अतः इसे शंखपुष्पी नाम दिया गया है। इसे क्षीर पुष्पी (दूध के समान श्वेत रंग के पुष्प लगने के कारण), मांगल्य कुसुमा (जिसके दर्शन करने से सदैव मंगल हो) भी कहा जाता है। इसे हिंदी में शंख पुष्प, शंखाहुली, कौड़िल्ला, बांग्ला में शंखाहुली, मराठी में संखोनी, गुजरती में शंखावली, कन्नड़ में शंखपुष्पी कहा जाता है। यह भारत के समस्त पथरीली भूमि वाले जंगलों में पायी जाती है।
शंखपुष्पी के गुण :–
शंखपुष्पी दस्तावर, मेधा के लिए हितकारी, वीर्य वर्धक, मानसिक दौर्बल्य को नष्ट करने वाली, रसायन, कसैली, गर्म, तथा स्मरण शक्ति , कान्ति बल और अग्नि को बढाने वाली एवम दोष, अपस्मार, भूत, दरिद्रता, कुष्ट, कृमि तथा विष को नष्ट करने वाली होती है। यह स्वर को उत्तम करने वाली, मंगलकारी, अवस्था स्थापक तथा मानसिक रोगों को नष्ट करने वाली होती है।
1.दिमागी ताकत :
प्राय: छात्र -छात्राओं के पत्रों में दिमागी ताकत और स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए गुणकारी ओषधि बताने का अनुरोध पढने को मिलता रहता है एल छात्र- छात्रओं के अलावा ज्यदा दिमागी काम करने वाले सभी लोगों के लिए शंखपुष्पी का सेवन अत्यन्त गुणकारी सिद्ध हुआ है
इसका महीन पिसा हुआ चूर्ण, एक-एक चम्मच सुबह- शाम मीठे दूध के साथ या मिश्री की चाशनी के साथ सेवन करना चाहिए एल
2. शुक्रमेह :
शंखपुष्पी का महीन चूर्ण एक चम्मच और पीसी हुई काली मिर्च आधी चम्मच दोनों को मिला कर पानी के साथ फाकने से शुक्रमेह रोग ठीक होता है
3. ज्वर में प्रलाप :
तेज बुखार के कारण कुछ रोगी मानसिक नियंत्रण खो देते है और अनाप सनाप बकने लगते है एल एसी स्थिति में शंखपुष्पी और मिश्री को बराबर वजन में मिलाकर एक-एक चम्मच दिन में तीन या चार बार पानी के साथ देने से लाभ होता है और नींद भी अच्छी आती है
4. उच्च रक्तचाप :
उच्च रक्तचाप के रोगी को शंखपुष्पी का काढ़ा बना कर सुबह और शाम पीना चाहिए एल दो कप पानी में दो चम्मच चूर्ण डालकर उबालें एल जब आधा कप रह जाए उतारकर ठंडा करके छान लें एल यही काढ़ा है एल दो या तीन दिन तक पियें उसके बाद एक-एक चम्मच पानी के साथ लेना शुरू कर दें रक्तचाप सामान्य होने तक लेतें रहें
छाया में सुखाई हुई शंखपुष्पी 250 ग्राम, जटामांसी 150 ग्राम इन दोनों को अच्छी तरह से पीसकर चूर्ण बनाकर सुखा लें। अब 3 से 5 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार ताजे जल के साथ सेवन करे इससे आपको उच्च रक्तचाप में अत्यंत लाभ मिलेगा
5. पथरी
पहचान:
मध्य रात्रि में पीठ में अचानक दर्द शुरू होकर
नीचे की ओर बढ़ता है
कभी-कभी यह दर्द जांघों या अंडकोष या भग तक चली जाती है
कभी-कभी मूत्र के साथ रक्त का आना
उपचार:
कुल्थी क्व्स्पबिवे * के दाने के वजन का बारह गुणा पानी में उबाल लें।जब पानी एक चौथाई हो जाये तो उतार लें।खाने में वही उबाला हुआ कुल्थी रोटी और दाल पका कर खाने को दें।खुराक : 1-1 कप सुबह शाम 18-20 दिनों तक दें।
पत्थरचूर(ब्रयोफ्यल्लूम पिन्नतूम) पत्तो का रस निचोड़े कर 1/2 कप या 1 कप लें।उसमें 3 गोलमिर्च पीसकर मिला दें ।
खुराक : 1 या 1 / 2 कप दिन में दो बार 15- 20 दिनों तक दें
मीठा घांस () का जूस दूध के साथ सूर्योदय के पहले दें।पानी अत्यधिक पीयें।
सहिजन (मॉरिंगा ओलेफेरा) का 60 ग्राम जड़ व छाल का काढ़ा तैयार करें उसमें चुटकी भर नमक और हिंग (असफ्ॉएटिदा) मीलायें।
खुराक : 1 कप दिन में एक बार ।
सिंगा किस्म के मछली के सिर में छोटी–छोटी पत्थर पायी जाती है।उस पत्थर को पीसकर नींबू से स्वरस में लेने से गुर्दे की पथरी टूट कर निकल जाती है
खुराक: सुबह –शाम 5 दिनों तक लें ।
नोट: ओकजालेट पथरी होने पर रोगी को टमाटर, अदरक, इमली, मूली, प्याज, यूरिक, सलाद, गेहूँ, पेचकी, कंदमूल, आलू से परहेज करना होगा।यूरिक एसिड पथरी में रोगी को चाय कॉफ़ी, दाल, कलेजी, मांस, गुर्दा, अदि नहीं खानी चाहिए।अगर मिश्रित पथरी हो अथवा निश्चित नहीं हो की कौन से पथरी है तो उपर दिए गए दोनों प्रकार के खाद्य पदार्थो से परहेज़ करें।छोटानागपुर के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पथरी से बचने के लिए कुल्थी दाल और बत्तख का मांस खाने का प्रचालन है ।
6. कैंसर
पहचान:
त्वचा कैंसर में छोटे- छोटे घाव, मस्सा के आकार में परिवर्तन ।
गले के कैंसर में निगलने, श्वास लेने में कठिनाई।
जबड़े तथा तालू के कैंसर में लार में रक्त, गांठ, व्रण, या सफ़ेद दाग, मुहं से बदबू बातचीत करने में कठिनाई ।
फेफड़े का कैंसर में सीने में दर्द, कभी-कभी खांसी में अचानक वृधि, बलगम के साथ या बलगम रहित खांसी।
गर्भाशय कैंसर में मसिक स्त्राव चक्र के बीच रक्तस्त्राव , अत्यधिक स्त्राव और अनियमित स्त्राव , शारीर का सुस्त होना , कमर और घुटनों का दर्द ,चेहरे और गर्दन का सुजन योनी में गांठ ।
आंत के कैंसर में कब्ज , पतला दस्त , मल , त्याग , के बाद रक्त स्त्राव पेट में दर्द अदि।
उपचार:
2-3 चम्मच घृतकुमारी (आलो वेरा) के पत्ते लें, आधा किलो मधु का रस, चार चम्मच ब्रांडी या विस्की या महुआ से बना शराब लें।
घृतकुमारी के कांटे को अच्छी तरह साफ़ कर लें और छोटे छोटे टुकडे कर लें अब इसमें दी हुई मात्रा में मधु और शराब मिलाएं।आप चाहे तो इसे मिक्सी में पिसें और ठन्डे स्थान में रख दें।दवाई तैयार है।
खुराक: 1 चम्मच दिन में तीन बार खाली पेट में लें।(दवा भोजन लेने के 15 मिनट पहले लें) दवा 10 दिनों तक लगातार लें फिर 10 दिन छोड़ कर इसी अन्तराल में दवा लें ।
नोट : दवा लेने के बाद उलटी, पतला दस्त, चेहरे में दाना आना इत्यादी लक्षण दिखलाई पड़ सकते हैं लेकिन इससे घबराना नहीं है।रोटी, चावल, हरी-सब्जी, गन्ना, दाल, आलू, थोड़ी मात्रा में शराब (2 चम्मच पानी के साथ) लें सकते हैं।हरी सब्जी आधा पका और उबाला हुआ दें।पानी अधिक मात्रा में पिएँ।दुसरे अन्य पदार्थोँ के साथ फल न लें।कैंसर में त्वचा, गला, गर्भाशय, लीवर, आंत के कैंसर के अलावे उपयुक्त दवा अल्सर, गठिया जोड़ों का दर्द के लिए उपयोगी है ।