भरी महफ़िल में बोलने से डरते हैं, तो पढ़िए

भरी महफ़िल में बोलने से डरते हैं, तो पढ़िए

क्या आप किसी पार्टी में जाने के ख़याल से ही कांपने लगते हैं? 

भरी महफ़िल में अपनी बात खुलकर कहने से कतराते हैं?

मीटिंग में प्रेज़ेंटेशन देने से घबराते हैं?

अगर आपका तजुर्बा ऐसा है, तो दुनिया में आप ऐसे अकेले इंसान नहीं. बहुत से लोग हैं जो संकोची और शर्मीले होते हैं. जिन्हें अजनबी लोगों से बात करने में हिचक होती है. जो पार्टियों में जाने से कतराते हैं.

लंदन के किंग्स कॉलेज में प्रोफ़ेसर थैलिया इले कहती हैं कि, "बहुत से लोगों का स्वभाव शर्मीला होता है. वो बचपन से ही ऐसी प्रकृति दिखाते हैं, जो आगे चलकर उनका व्यक्तित्व बन जाता है. जबकि बहुत से बच्चे अनजान लोगों से बात करने में कोई झिझक नहीं महसूस करते. जल्द ही उनका ये स्वभाव उनकी पर्सनैलिटी बन जाता है."

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प्रोफ़ेसर इले कहती हैं कि हमारे शर्मीले होने में एक तिहाई योगदान हमारे वंश का का होता है, जबकि बाक़ी आस-पास के माहौल का नतीजा होता है.

हमें अपने मां-बाप से जीन में शर्मीलेपन के गुण मिलते हैं. कई बार जुड़वां बच्चों में से कोई एक बातूनी और मिलनासर होता है, तो दूसरा संकोची मिज़ाज का हो जाता है. वहीं दो भाई-बहनों में चूंकि आधे जीन ही एक जैसे होते हैं, तो उनके स्वभाव में ज़्यादा फ़र्क देखा जाता है.

शर्मीलापनइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

शर्मीला होना बुरी बात है क्या?

पिछले एक दशक में प्रोफ़ेसर थैलिया और दूसरे वैज्ञानिक इंसान के शर्मीले स्वभाव की जड़ उसके डीएनए में तलाश रहे हैं. वैसे तो मां-बाप से मिले जीन में थोड़े बहुत हेर-फेर से हमारे ऊपर कम ही असर होता है. लेकिन, बहुत सारे समीकरण देखे जाएं, तो ये प्रभाव बहुत व्यापक हो जाता है.

प्रोफ़ेसर इले कहती हैं कि कि, "शर्मीले स्वभाव के पीछे एक दो या सैकड़ों नहीं, बल्कि हज़ारों की तादाद में जीन होते हैं. तो, जब आप मां और पिता के हज़ारों जीन के जोड़ को देखते हैं तो हमारे स्वभाव पर इनका असर साफ़ हो जाता है."

लेकिन, हमारे मिज़ाज के पीछे जीन से ज़्यादा आस-पास के माहौल का असर होता है. हां जो स्वभाव हमें जीन के ज़रिए मां-बाप से मिला है, उसका जब हम अपने माहौल से मेल करते हैं, तो हमारा अपना किरदार बनता है.

​जैसे कि कोई शर्मीला बच्चा बहुत सारे बच्चों के बीच भी अलग-थलग रहता है. वो दूसरे बच्चों के साथ नहीं खेलता. आगे चलकर उसका ये बर्ताव उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है.

यानी हमारे मिज़ाज पर मां-बाप से मिले जीन के साथ-साथ माहौल का भी उतना ही असर होता है.

तो क्या शर्मीला होना बुरी बात है? लंदन के सेंटर फॉर एंग्ज़ाइटी डिसऑर्डर ऐंड ट्रॉमा की मनोवैज्ञानिक क्लोय फ़ोस्टर कहती हैं कि शर्मीला स्वभाव बहुत आम बात है. और इससे तब तक कोई दिक़्क़त नहीं होती, जब तक लोग मेल-जोल से कतराने नहीं लगते.

क्लोय फ़ोस्टर उन लोगों का इलाज करती हैं जो शर्मीले मिज़ाज के चलते बहुत सी चीज़ों से कतराने लगते हैं. जैसे कि वो दफ़्तर में लोगों से बात नहीं करते. किसी पार्टी या सार्वजनिक कार्यक्रम में जाने से बचते हैं. उन्हें डर लगता है कि लोग उन्हें देखकर उनके बारे में राय क़ायम कर लेंगे.

इले कहती हैं कि ये गुण इंसान के विकास की प्रक्रिया के दौरान उसके किरदार का हिस्सा बन गए हैं.

वो कहती हैं कि "किसी भी समुदाय में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो सबसे मेल-जोल बढ़ाते हैं. वहीं, कुछ ऐसे भी होते हैं, जो किसी अजनबी से मिलने में हिचक महसूस करते हैं. उन्हें इसमें ख़तरा लगता है."

भरी महफ़िल में बोलने से डरते हैं, यह है आपके शर्मीलेपन का इलाजइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

शर्मीलेपन का इलाज

शर्मीले स्वभाव का इलाज सीबीटी नाम की थेरेपी से किया जा सकता है. इस थेरेपी में लोगों के उस डर को दूर किया जाता है, जिसमें वो दूसरों से घुलने-मिलने में घबराते हैं. वो लोगों से नज़रें मिलाने से कतराते हैं.

कुछ ऐसे इंसान भी होते हैं जो बहुत लोगों की भीड़ में बोल नहीं पाते. असल में वो अपने लिए ऐसे पैमाने तय करते हैं, जो पहुंच से दूर होते हैं. किसी भी कांफ्रेंस में मौजूद सभी व्यक्ति एक जैसी गंभीरता से किसी को नहीं सुनते. मगर, शर्मीले लोग ऐसी उम्मीद पाल लेते हैं. फिर अपनी ही उम्मीद पर खरा नहीं उतरते तो घबराने लगते हैं. ऐसे लोग अपने ऊपर ध्यान देने के बजाय अगर सुनने वालों पर फ़ोकस करें, तो उन्हें इस मुश्किल से पार पाने में आसानी होगी.

फिर, अगर मेल-जोल में घबराहट के डर से बाहर निकलना है, तो इसका सबसे अच्छा इलाज मिलना-जुलना ही है. जिन बातों से डर लगता है उनका सामना कर के ही उस डर को दूर किया जा सकता है.

कैलिफ़ोर्निया डेविस यूनिवर्सिटी की रिसर्चर जेसी सन कहती है कि शर्मीलापन और अंतर्मुखी होना, दोनों अलग बाते हैं. बहुत से लोग ये सोचते हैं कि अंतर्मुखी लोग मन में सोच-विचार करते रहते हैं. पर, ऐसा नहीं है. ये खुलेपन के मिज़ाज से बिल्कुल अलग बात है. जो लोग बातूनी होते हैं, वो भी कई बार घुलने-मिलने में परेशानी महसूस करते हैं. वो बस अपने जैसे लोगों के साथ रहना चाहते हैं.

भरी महफ़िल में बोलने से डरते हैं, यह है आपके शर्मीलेपन का इलाजइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

वैसे, बहिर्मुखी लोग ज़्यादा उत्साही और ख़ुशमिज़ाज होते हैं. अंतर्मुखी लोग अक्सर इन बातों को महसूस कम कर पाते हैं. जिन लोगों को जबरन बाहर भेजकर घुलने मिलने को कहा जाता है, वो इस बात का दबाव महसूस करते हैं और नेगेटिव सोच उनके दिल में घर कर जाती है. वो और भी थकान महसूस करते हैं.

इसलिए जेसी सन का मानना है कि शर्मीले लोगों पर घुलने-मिलने का दबाव बनाना ठीक नहीं होगा.

वैसे, हमारे समाज की संस्कृति का असर भी मिज़ाज पर पड़ता है. अब जैसे अमरीका में खुले मिज़ाज और आत्मविश्वास से भरपूर लोग ज़्यादा तरज़ीह पाते हैं. वहीं कई एशियाई देशों में शांत रहने और कम बोलने वाले लोगों को अच्छा माना जाता है.

कई देशों में आंख से आंख मिलाकर बात करना आत्मविश्वास की निशानी माना जाता है. वहीं, एशिया और अफ्रीका के बहुत से देशों में ये बुरी बात मानी जाती है.

पर, कुल मिलाकर लोगों से मिलने-जुलने में माहिर लोग ज़्यादा ख़ुश रहते हैं. लेकिन, जो अंतर्मुखी होते हैं, वो हमेशा नेगेटिव सोच रखते हों, ये ज़रूरी नहीं है. ये कोई बीमारी नहीं है, जिसका इलाज हो सके. इसलिए शर्मीले होने पर ख़ुद को कमतर आंकना ठीक नहीं.

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