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जानिए मांसाहार अच्छा है या शाकाहार??

माँसाहार करने के लिए आप स्वतंत्र हैं लेकिन उस जीव की हत्या जिसका आप माँस खाते हैं उसका कर्म भोगने के लिए आप परतंत्र हैं
हमारे ऋषि-मुनियों ने प्रमाण सहित बताया है कि इंसान को कभी भी माँस नहीं खाना चाहिए
क्योंकि माँसाहारी और शाकाहारी जीव की संरचना,खान-पान और बहुत सारी चीजों में अन्तर होता है
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(1)मांसाहारी:-प्राणियों के मुख के अग्र भाग में तीक्ष्ण नुकीले दो दांत होते हैं ताकि वो अन्य प्राणियों को फाड़-फाड़कर खा सके, यह मांस रुपी भोजन को सीधा सटकते हैं,पीसकर नहीं खाते ।।
(2) शाकाहारी–प्राणी होंठ से पानी पीते हैं। जैसे- गाय,भैंस, इंसान इत्यादि........
(2) मांसाहारी–जीभ से चाट-चाट कर(चप चप करके) पानी पीते हैं। जैसे- कुत्ता,शेर,बिल्ली,भालू,सियार.....
(3) शाकाहारी–इनकी संतान की आंखें पैदा होते ही खुलती हैं,बंद नहीं रहती। जैसे- हिरन,गाय,घोडा़,इंसान...
(3) मांसाहारी–इनके बच्चों की आंखें पैदा होने पर बंद रहती हैं,जो 2-3-4 दिनों बाद खुलती हैं। जैसे-शेर,बिल्ली,कुत्ता,भालू,बाघ......
(4) शाकाहारी–तीक्ष्ण नाखून नहीं होते,एक शफ या दो शफ रहते हैं,पंजे नहीं होते।
(4) मांसाहारी–पंजों पर नाखून तीक्ष्ण व नुकीले होते हैं ताकि शिकार को आसानी से फाड़कर उसे खा सकें।
(5) शाकाहारी–पांव की रचना से चलते समय आवाज हो सकती है।
(5) मांसाहारी–पांव के तलवे ऐसे(गद्दीदार) होते हैं जिससे चलने में आवाज न हो,ताकि अपने शिकार को सुगमता से प्राप्त कर सकें।
(6) शाकाहारी–बचपन के दांत गिरकर पुनः नये दांत आते हैं।
(6) मांसाहारी–बचपन के दांत गिरकर पुनः दूसरे नये दांत नहीं आते।
(7) शाकाहारी- ये रात के अंधेरे नहीं देख सकते
(8) माँसाहारी - ये रात्रि में देख सकते हैं
जानवर किसी भी सजीव की हत्या कर दे तो उसे पाप नहीं लगता
ठीक उसी तरह हमें भी सब्जी जैसी सजीव चीज खाने पर उसका पाप नहीं लगता क्योंकि इसमें खून या माँस नहीं रहता है।।
हालांकि कुछ जीव परिस्थिति बस शाकाहार के साथ माँसाहार भी करने लगे लेकिन वो सिर्फ नाम मात्र हैं जैसे बबून (एक बंदर जाति)