ध्यान की तैयारी

प्रेम की ऊर्जा

प्रेम की ऊर्जा

तुम पैदा हुए हो प्रेम की किसी ऊर्जा से। सारे जगत का खेल चलता है प्रेम की ऊर्जा से। अब तो वैज्ञानिकों को भी शक होने लगा है कि शायद जिसे वे गुरुत्वाकर्षण कहते हैं पृथ्वी का, वह पृथ्वी का प्रेम हो! और जिसे वे ऋण और धन विद्युत का आकर्षण कहते हैं, वह शायद विद्युतीय प्रेम हो! शायद जिसे वे तारों के बीच का संबंध और जोड़ कहते हैं, वह भी चुंबकीय प्रेम हो! शायद अणु-परमाणु जिससे गुंथे हैं–टूटकर छितर नहीं जाते, वह भी प्रेम की ही गांठ हो, वह भी प्रेम का ही गठबंधन हो! Read More : प्रेम की ऊर्जा about प्रेम की ऊर्जा

ओशो – सब उस गोविन्द का खेल है

सब उस गोविन्द का खेल है

​एक समुराई है। अपनी पत्नी को गौना कराकर ले जा रहा है अपने गांव। रास्ते में तूफान आता है। सब लोग चिल्ला रहे हैं, रो रहे हैं। उसकी पत्नी देखती है कि उसका दूल्हा समुराई तो शांत है, थिर है। कौलर पकड़कर हिलाती है। कहती है-‘तुम कैसे व्यक्ति हिो? Read More : ओशो – सब उस गोविन्द का खेल है about ओशो – सब उस गोविन्द का खेल है

क्या यंत्र समाधि प्राप्त करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं?

क्या यंत्र समाधि प्राप्त करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं?

 एक मित्र ने और पूछा है कि स्लेटर ने चूहे के मस्तिष्क में इलेक्ट्रोड्स डालकर उसके मस्तिष्क के विशेष तंतु कंपित करके संभोग का आनंद दिलाया। समाधि भी अस्तित्व से एक तरह का संभोग है। क्या यह संभव नहीं है कि मस्तिष्क के कोई तंतु समाधिस्थ अवस्था में कंपित होते हों? और इनकी वैज्ञानिक व्यवस्था की जा सके, तो फिर साधारण आदमी को भी उसके समाधि वाले तंतुओं को कंपित करके समाधि का अनुभव दिया जा सकता है। फिर साधना की, योग की कोई जरूरत न रहेगी। योग तो कहता है कि समाधि को उपलब्ध करने वाला सहस्रार चक्र तक मस्तिष्क में छिपा हुआ है!

 

यंत्र और समाधि

  Read More : क्या यंत्र समाधि प्राप्त करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं? about क्या यंत्र समाधि प्राप्त करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं?

व्यक्तियों को वस्तु मत बनाओ

व्यक्तियों को वस्तु मत बनाओ

 हम वस्तुओं के जगत में रहते हैं। न तो हम पदार्थ के जगत में रहते हैं और न हम स्वर्ग के, चेतना के जगत में रहते हैं। हम वस्तुओं के जगत में रहते हैं। इसे ठीक से, अपने आस-पास थोड़ी नजर फेंक कर देखेंगे, तो समझ में आ सकेगा। हम वस्तुओं के जगत में रहते हैं-वी लिव इन थिंग्स। ऐसा नहीं कि आपके घर में फर्नीचर है, इसलिए आप वस्तुओं में रहते हैं; मकान है, इसलिए वस्तुओं में रहते हैं; धन है, इसलिए वस्तुओं में रहते हैं। नहीं; फर्नीचर, मकान और धन और दरवाजे और दीवारें, ये तो वस्तुएं हैं ही। लेकिन इन दीवार-दरवाजों, इस फर्नीचर और वस्तुओं के बीच में जो लोग रहते हैं, वे भी करीब-करीब वस्तुएं हो जाते हैं।

  Read More : व्यक्तियों को वस्तु मत बनाओ about व्यक्तियों को वस्तु मत बनाओ

स्मृति का अर्थ है —बोध

स्मृति का अर्थ है —बोध

गौतम बुद्ध का सारा उपदेश, सारी देशना एक छोटे से शब्द में संगृहीत की जा सकती है। वह छोटा सा शब्द है—स्मृति। पाली में उसी का नाम है—सति। और बाद में मध्ययुगीन संतों ने उसी को पुकारा—सुरति। Read More : स्मृति का अर्थ है —बोध about स्मृति का अर्थ है —बोध

ओशो – प्रेमपूर्ण हो जाओ

ओशो – प्रेमपूर्ण हो जाओ

सीने में रह-रह के उबलती है , न पूछ

अपने दिल पे मुझे काबू ही नहीं रहता है ।।
कवि लिखते रहे इंकलाब की बातें भी , बगावत के गीत भी ।
मगर कवियों से कहीं बगावत हो सकती है !

गीत ही रच सकते हैं , गीत ही गुनगुना सकते हैं ।

उनके गीत बांझ है ।

उनके गीत नपुंसक हैं ।
सिवाय ध्यान के न कभी कोई क्रांति हुई है न हो सकती है ।

ध्यान का अर्थ हैः – हटा दो सारी अड़चनें , जो दूसरो ने तुम पर थोप दी है ;
हटा दो सारे विचार और पक्षपात —- जाति के , समाज के , 

देश के , धर्म के , मजहब के , फिरकापरस्ती के , मतवादों के , Read More : ओशो – प्रेमपूर्ण हो जाओ about ओशो – प्रेमपूर्ण हो जाओ

संकल्प कैसे काम करता है?

अचेतन है संकल्प का मार्ग, और ध्यान की सीढ़ी है संकल्प ।

हमारा संकल्प बहुत ही क्षीण हो गया है । नाम मात्र को ही रह गया है। सुबह जिस बात का संकल्प हम लेते हैं शाम होते - होते वह बात ही भूला देते हैं । जीवन की छोटी - छोटी बातों को ही हम नहीं समझ पाते हैं, तंबाखू और धूम्रपान जैसे व्यसनों ने हमें अपना गुलाम बना लिया है । रोज यह कह कर कि "आज आखरी बार है... कल से ऐसा नहीं होगा..." हम अपने मन की चालबाजियों में फंसते चले जाते हैं । Read More : संकल्प कैसे काम करता है? about संकल्प कैसे काम करता है?

इसके पहले परदा गिरे! अपना गीत गा लो...

इसके पहले परदा गिरे! अपना गीत गा लो...

एक बांस की पोंगरी.. कितना अमृत बरसा सकती है! जीवन भी बांसुरी की भांति है। अपने में खाली और शून्य, पर साथ ही संगीत की अपरिसीम सामर्थ्य भी उसमें है। पर सब कुछ बजाने वाले पर निर्भर है। जीवन वैसा ही हो जाता है, जैसा व्यक्ति उसे बनाता है। वह अपना ही निर्माण है। यह तो एक अवसर मात्र है--कैसा गीत कोई गाना चाहता है, यह पूरी तरह उसके हाथों में है।  Read More : इसके पहले परदा गिरे! अपना गीत गा लो... about इसके पहले परदा गिरे! अपना गीत गा लो...

ओशो – चक्र और नींद

चक्र और नींद

चक्र और नींद 
जो व्यक्ति मूलाधार चक्र पर केंद्रित है उसकी नींद गहरी न होगी। उसकी नींद उथली होगी क्योंकि यह दैहिक तल पर जीता है। भौतिक स्तर पर जीता है। मैं इन चक्रों कि व्याख्या इस प्रकार भी कर सकता हूं।

प्रथम, भौतिक—मूलाधार।

दूसरा, प्राणाधार—स्वाधिष्ठान।

तीसरा, काम या विद्युत केंद्र—मणिपूर।

चौथा, नैतिक अथवा सौंदयपरक—अनाहत।

पांचवां, धार्मिक—विशुद्ध।

छठा, आध्यात्मिक—आज्ञा।

सातवां, दिव्य—सहस्त्रार।

प्रश्न:-क्या हम अपने अतीत के जन्‍मों को जान सकते है ?

प्रश्न:-क्या हम अपने अतीत के जन्‍मों को जान सकते है ?

ओशो—निश्‍चित ही जान सकते है। लेकिन अभी तो आप इस जन्‍म को भी नहीं जानते है, अतीत के जन्‍मों को जानना तो फिर बहुत कठिन है। निश्‍चित ही मनुष्‍य जान सकता है। अपने पिछले जन्‍मों को। क्‍योंकि जो भी एक बार चित पर स्‍मृति बन गई है, वह नष्‍ट नहीं होती। वह हमारे चित के गहरे तलों में अनकांशस हिस्‍सों में सदा मौजूद रहती है। हम जो भी जान लेते है कभी नहीं भूलते।

     अगर मैं आपसे पुछूं कि उन्‍नीस सौ पचास में एक जनवरी को आपने क्‍या किया था? तो शायद आप कुछ भी न बता सके, आपको कुछ भी याद न हो। आप कहेंगे की मुझे तो कुछ भी याद नहीं है? एक जनवरी उन्‍नीस सौ पचास, कुछ भी ख्‍याल में नहीं आता। Read More : प्रश्न:-क्या हम अपने अतीत के जन्‍मों को जान सकते है ? about प्रश्न:-क्या हम अपने अतीत के जन्‍मों को जान सकते है ?

Pages