गुरु की परिभाषा

गुरु की परिभाषा

गुरु की परिभाषा
'गुरु' शब्द में 'गु' का अर्थ है 'अंधका' और 'रु' का अर्थ है 'प्रकाश' अर्थात गुरु का शाब्दिक अर्थ हुआ 'अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला मार्गदर्शक'। सही अर्थों में गुरु वही है जो अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करे और जो उचित हो उस ओर शिष्य को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे। गुरु उसको कहते हैं जो वेद-शास्त्रों का गृणन (उपदेश) करता है अथवा स्तुत होता है। [1] मनुस्मृति [2] में गुरु की परिभाषा निम्नांकित है-

निषेकादीनि कार्माणि य: करोति यथाविधि।
सम्भावयति चान्नेन स विप्रो गुरुरुच्यते।

मान लीजिए अगर आप उल्लू होते, तो हम कहते कि गुरु प्रकाश को दूर भगाता है, क्योंकि उल्लू की ज्ञानेंद्रियां अलग तरह की होती हैं। प्रकाश उसे अंधा बना देता है और अंधकार उसे देखने में सक्षम बनाता है। तो बात अगर उल्लू के संदर्भ में की जाए तो यही कहा जाएगा कि गुरु प्रकाश को दूर भगाता है। लेकिन आपकी दृष्टि ऐसी है कि जब प्रकाश होता है, तभी आपको चीजें साफ नजर आती हैं और अंधकार में आप कुछ भी देख नहीं पाते। तो मूल रूप से अंधकार से हमारा मतलब अज्ञानता से है, जो आपको आपकी सीमाओं में बांधकर रखती है

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