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लता मंगेशकर का नाम : भारतीय संगीत की आत्मा

लता मंगेशकर का नाम लेते ही भारतीय संगीत की आत्मा सामने आ खड़ी होती है। कल वह 75 की हो रही हैं। करीब छह दशकों से भारतीयों के दिलों पर उनका राज चल रहा है। संसार भर में उनके बेशुमार दीवाने हैं। देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' सहित अब तक न जाने कितने पुरस्कारों और उपाधियों से नवाजा जा चुका है उन्हें।
जब उन्हें संगीत नाटक अकादमी की फेलोशिप मिली, तो शास्त्रीय संगीत के कुछ प्रेमियों को यह अच्छा नहीं लगा।दिल्ली की एक जानी-मानी गायिका ने मुझे फोन किया और मेरी प्रतिक्रिया जाननी चाही, इस उम्मीद में कि शायद इस पर मैं नाखुशी जाहिर करूंगा। बाद में मेरा कुछ अलग ही रुख देखकर उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि यहफेलोशिप शास्त्रीय संगीत के प्रोत्साहन के लिए शुरू की गई थी, फिल्मी गायकों के लिए नहीं। लता मंगेशकर हैं हीक्या? वह तो कहिए कि भगवान ने उन्हें आवाज अच्छी दे दी है बस।'
कुछ दिनों बाद फिर एक घटना घटी। सितार-नवाज उस्ताद मुश्ताक अली के निधन के बाद उन्हें श्रद्धांजलि देने केलिए दिल्ली में एक शोक सभा आयोजित हुई। दिल्ली के ही एक मशहूर रुद्रवीणा वादक ने अपने शोक उद्गार मेंलता मंगेशकर को भी घसीट लिया। बोले, 'जाने क्या हो गया है हमारी सरकार को? जो सम्मान वह अली अकबर खां जैसे उस्ताद को देती है, उसी से लता मंगेशकर को नवाज डालती है।'
सच तो यह है कि ऐसे लोगों की संख्या उंगलियों पर गिनने लायक है, जो लता के बारे में ऐसा सोचते हैं। भारत में उन लोगों की तादाद कहीं ज्यादा है, जो लता मंगेशकर की कला से अभिभूत हैं और उसकी तारीफ करते नहीं अघाते। खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और बुजुर्ग गायक डॉ.एम.आर.गौतम कहते हैं, 'हमें तो गुलाम बना लिया है साहब लता ने। क्या कंट्रोल है? कितना भी मुश्किल गाना हो, लेकिन क्या मजाल कि इधर से उधर हो जाए। हम सोचते कि अबकी तो जरूर फिसलेगी। मगर नहीं, वैसा का वैसा गा गई, हर बार उसी दर्जे का और कैसी फीलिंग ... उफ!'
ठुमरी के बादशाह उस्ताद बड़े गुलाम अली खां का एक वाकया पं. जसराज सुनाते हैं। एक बार खां साहब कुछ दोस्तों के साथ बैठे थे। इतने में कहीं से लता का गाना बज उठा। सुनते रहे। फिर तिलमिला कर बोले, 'कमबख्त कभी बेसुरी नहीं होती।' जयपुर घराने के उस्ताद अल्लादिया खां के नामी बेटे उस्ताद भूर्जी खां को तो घर पर लोगों ने कितनी ही बार लता का रिकॉर्ड लगाए आत्मविभोर दशा में बैठे देखा था। गजल और ठुमरी-दादरा की रानी बेगम अख्तर भी लता की आवाज की बड़ी कद्र करती थीं। एक रोज आधी रात को संगीत निर्देशक मदन मोहन को उन्होंने नींद से जगाया और एक रिकॉर्ड फोन पर ही सुनवाने का आग्रह करने लगीं। यह गाना था- -'कदर जाने ना ...' (भाई भाई)।
पं. कुमार गंधर्व ने तो लता मंगेशकर के ऊपर एक लंबा लेख ही लिख डाला था। लता की गायकी और उनकी समझ का इतना बारीक विश्लेषण पहली बार हुआ, वह भी गंधर्व जैसे शास्त्रीय संगीतज्ञ की कलम से। उन्होंने लिखा था, 'ऐसा कलाकार शताब्दियों में एक ही पैदा होता है। ऐसा कलाकार आज हम सबों के बीच है, हम उसे अपनी आंखों के सामने घूमते-फिरते देख पा रहे हैं। कितना बड़ा है हमारा भाग्य!'
सच पूछिए, तो लता मंगेशकर की उपेक्षा का सबसे बढ़ि़या तरीका यह है कि उनकी आवाज की तारीफ कर दी जाए, 'वह तो कहिए, भगवान ने आवाज अच्छी दे दी, वरना ...।' मतलब यह कि ऐसी आवाज किसी और को मिल जाती, तो वह भी लता मंगेशकर बन जाता। एक गायिका के रूप में लता का तिरस्कार करने वाला व्यक्ति सच्चा संगीतज्ञ कैसे हो सकता है, मेरी समझ से बाहर है।
दरअसल, लता मंगेशकर नाम है एक दिमाग का। ऐसा दिमाग, जो पलक झपकते संगीतकार की कल्पना को समझ लेता है। न सिर्फ समझता है, बल्कि उसे कैसे सजाया-संवारा जाए, इस पर तेजी से चिंतन भी करता है।
दंभी शास्त्रीय संगीतज्ञ कह देते हैं कि इसमें लता की अपनी कला क्या हुई? उसकी क्या खूबी हुई? सारी बात तो म्यूजिक डायरेक्टर की धुन और ऑकेर्स्ट्रेशन की है।'
कितनी बेतुकी बात है यह। ठीक है, वह जो कुछ गाती हैं, दूसरों की रचनाएं ही होती हैं, लेकिन दूसरों की रचनाएं,तो अन्य गायिकाएं भी गाती हैं। फिर लता से उनमें आकाश-पाताल का फर्क क्यों नजर आता है? जरा ध्यान दें, तो बात समझ में आ जाएगी। एक-एक शब्द, बल्कि शब्द का एक-एक अक्षर किस तरह उच्चारित होना चाहिए, इस पर लता गंभीरता से विचार करती हैं। स्वर को कहां खड़े रखना है, कहां ठोकर मारनी है, कहां दुलारना है, कहां मोतियों की लड़ी की तरह बिखेर देना है, कहां समंदरी लहरों की मानिंद एक पर दूसरे सुर को चढ़ाते चले जाना है, कहां सुर को फिसलाना है, कहां खोदना है, कहां रबर की डोरी से बंधी पानी भरी गेंद की तरह फेंककर उसे फिर अपनी ओर खींच लेना है, एक ही हरकत में कहां किस सुर को गौण और किसे उभार देना है, कहां सुर पर निश्चल खड़े रहना है, कहां कंपित कर देना है, किस सुर को पीटना है, किसे सहलाना है, कहां और कितने अनुपात में मुरकी लेनी है, कहां मुरकी उभारनी है, कहां उसे नामालूम हरकत बना देना है, सुर के उच्चार की शुरुआत कैसे करनी है और समाप्ति कैसे, इन सब पर लता का दिमाग कंप्यूटर की तरह काम करता है। उनका यह चिंतन गीत में कुछ और ही बात पैदा कर देता है, संगीतकार की कल्पना से भी सुंदर। दूसरे की रचना को मांज देना, उसके कोने-कोने को आलोकित कर देना और उसकी रग-रग में धड़कन बसा देना कोई साधारण बात नहीं। कुछ गीतों या कुछ संगीतकारों की रचनाओं में ही नहीं, नौसिखिए से लेकर आला दर्जे के दिमाग वाले हर कंपोजर की हर रचना में लता की ऐसी कारीगरी देखी जा सकती है। यह कोई मामूली सर्जनात्मक बात नहीं है, इसे तो अद्वितीय ही कहनापड़ता है।
संगीत के शास्त्र ग्रंथों को उठाकर देखिए, गायक-गायिकाओं के जितने गुण बताए गए हैं, सब लता में मिलेंगे। मधुर कंठ, रागों का ज्ञाता, मंद-मध्य-तार तीनों स्थानों में गमक लेने की क्षमता, इच्छित स्वर पर तुरंत पहुंचने का सार्मथ्य, ताल-लय की मर्मज्ञता, स्वर व श्रुतियों के स्थान की जानकारी, गाते हुए नहीं थकना, सभी प्रकार के काकु-प्रयोग में निपुणता, रंजकता, स्वर-वर्ण ताल को संयुक्त करके गाने की क्षमता, सांस का लंबा होना, एक स्वर से दूसरे स्वर का सहज जुड़ते चले जाना, पहले न गाई हुई चीज को भी बिना ज्यादा सोचे-विचारेगा देने की क्षमता जैसे जितने गुणों की चर्चा भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में मिलती है, लगभग सभी लता मंगेशकर में मौजूद हैं।
स्वतंत्रता से पहले के. एल. सहगल, जोहरा बाई और अमीर बाई का जमाना था। सच पूछिए, तो लता ने आकर गायकी के क्षितिज का विस्तार कर दिया। पैनी और पारदर्शी आवाज, बड़ी रेंज और मुश्किल से मुश्किल चीज को गा देने की क्षमता ने रचनाकारों का नजरिया ही बदल दिया। संगीतकार नए सिरे से सोचने को मजबूर हुए। नायिका के गीतों की धुनें अब लता को ध्यान में रखकर तैयार होने लगीं। ज्यों-ज्यों उनकी क्षमता का राज खुलता गया, धुनें जटिल से जटिलतर होती गईं। नौशाद, सचिन देव बर्मन, सी. रामचंद्र, वसंत देसाई, मदन मोहन, रोशन,सलिल जयदेव, खय्याम जैसे संगीतकारों ने ही लता को लता नहीं बनाया है। इन संगीतकारों को बेमिसाल संगीतकार बनाने में लता मंगेशकर की अहम भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।
इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले पचपन वर्ष से सुगम संगीत गाने वाली हर गायिका लता मंगेशकर बनने कीकोशिश कर रही है। इससे ऊंचे लक्ष्य को हासिल कर लेना तो दूर, किसी से अभी तक लता को ठीक से छूना भीमुमकिन नहीं हो पाया है। लता के जमाने में रिकॉर्डिंग की वैसी तकनीक और वैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं,जैसी आज हैं। पहले जरा-सी गलती होने पर पूरा गाना दोबारा गाना पड़ता था। एक-दो बार नहीं, दसियों-बीसियों बार। दूसरी ओर, आज किसी भी सिंगर के लिए गाने में से अपनी कमजोरियों को हटाना आसान हो गया है। इतनी बड़ी तकनीकी सुविधा के बावजूद आज की गायिकाएं लता मंगेशकर को छू भी नहीं पातीं, तो इसकी कोई तो वजह होगी ही। जी हां, इसकी अपनी वजहें हैं। गायिकाएं आज अच्छी तो कई हैं, मगर उनकी अच्छाई किसी एक दिशा में है। किसी गले में कोई एक चीज सुघड़ लगती है, तो किसी में कोई दूसरी। हर चीज लाजवाब हो, यह लता ने ही करके दिखाया है। अपनी अतुलनीय प्रतिभा से पैसे-टके की मुहताज और नफा-नुकसान से जुड़ी कला को भी उन्होंने क्लासिकल ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।
लता मंगेशकर ने इतना गाया है और इतनी तरह का गाया है कि लगता है ऐसा कुछ नहीं, जिसे वह न गा सकें। बेशक वह मराठी हैं, लेकिन बांग्ला, राजस्थानी, पंजाबी, ब्रज, भोजपुरी, गुजराती, कन्नड़ ही नहीं, जापान जैसे देश की धुनों के मुहावरे तक को जरूरत के मुताबिक गले में उतारने की उन्होंने कामयाब कोशिश की है। जिस प्रदेश कागीत वह गाती हैं, लगता है उसी धरती का हवा-पानी उनकी रगों में दौड़ रहा है।
हालांकि कुछ वर्षों से लता के गले पर उम्र का असर साफ नजर आने लगा है, लेकिन हाल ही में उन्होंने यश चोपड़ा की एक नई फिल्म में स्वर्गीय मदन मोहन की अनरिकॉर्डेड और जटिल धुनों पर गाया है। सच पूछिए, तो आज भी गाने के लिए उनके जबर्दस्त समर्पण और उत्साह को देखकर कोई नहीं कह सकता कि वह 75 की हो गई हैं।
शास्त्रीय रागों पर आधारित लता के कुछ प्रमुख गीत
1. अब आगे तेरी मर्जी (देवदास) : राग मारूबिहाग
2. कुहू कुहू बोले कोयलिया (स्वर्ण सुंदरी) : राग सोहनी तथा अन्य
3. अल्ला तेरो नाम (हम दोनों) : राग गौड़सारंग
4. तू जहां जहां चलेगा (मेरा साया) : राग नंद
5. नैनों में बदरा छाए (मेरा साया) : राग भीमपलासी
6. झनन झनझना के अपनी पायल (आशिक) : राग शंकरा
7. पिया तोसे नैना लागे रे (गाइड) : राग खमाज
8. सैयां जाओ जाओ मोसे न (झनक झनक पायल बाजे) : राग देस
9. कैसे दिन बीते (अनुराधा) : राग मांझ खमाज
10. हाए रे वो दिन (अनुराधा) : राग जनसम्मोहिनी
11. ए री, जाने न दूंगी (चित्रलेखा) : राग कामोद
12. मैंने रंग ली आज (दुल्हन एक रात की) : राग पीलू
13. मोहे पनघट पे (मुगले आजम): राग गारा
14. मनमोहना बड़े झूठे (सीमा) : राग जयजयवंती
15. है इसी में प्यार की आबरू (अनपढ़) : राग भैरवी
16. जीवन डोर तुम्हीं संग (सती सावित्री) : राग यमनकल्याण
17. धीरे से आजा री अंखियन (अलबेला) : राग पीलू
18. जिया नाहीं लागे ... (सौ साल बाद) : राब आभोगीकान्हड़ा
19. मेघा छाए आधी रात (शर्मीली) : राग मधुरंजनी
20. डोली चढ़ते ही हीर ने (हीर रांझा) : राग भैरवी
21. तू चंदा, मैं चांदनी (रेशमा और शेरा) : राग मांड
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