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आख़िर कब तक करनी होगी सोशल डिस्टेंसिंग

कोरोना वायरस सारी दुनिया के लिए एकदम नया है. ये कहां से आया है?, कैसे रुकेगा? इसका इलाज क्या है? अभी किसी को कुछ नहीं पता.
लेकिन एक बात सौ फीसद सही साबित हो गई है कि इसे सोशल डिस्टेंसिंग से रोका जा सकता है. जिन देशों ने भी इस पर क़ाबू पाया, वहां यही हथियार अपनाया गया है. भारत में भी सोशल डिस्टेंसिंग करने को कहा जा रहा है. और इसीलिए सरकार को लॉकडाउन करना पड़ा. लेकिन ये सोशल डिस्टेंसिंग आख़िर कब तक चलेगी?
पिछली सदी की शुरुआत में जिस वक़्त पहला विश्व युद्ध ख़त्म हो रहा था, तो एक वायरस ने दुनिया पर हमला बोला था. जिसने दुनिया की एक चौथाई आबादी को अपनी गिरफ़्त में ले लिया था. इस महामारी को आज हम स्पेनिश फ्लू के नाम से जानते हैं. पूरी दुनिया में इस महामारी से पांच से दस करोड़ लोगों की जान चली गई थी.
स्पेनिश फ़्लू
साल 1918 में इस महामारी के दौरान ही अमरीका के कई शहर लिबर्टी बॉन्ड परेड की तैयारी कर रहे थे. इस परेड के ज़रिए यूरोपीय देशों को युद्ध में मदद करने के लिए पैसे जुटाए जा रहे थे. फ़िलाडेल्फ़िया और पेंसिल्वेनिया शहरों के प्रमुखों ने महामारी के बावजूद ये परेड करने का फ़ैसला किया.
जबकि इन शहरों में रह रहे 600 सैनिक पहले से ही स्पेनिश फ़्लू के वायरस से पीड़ित थे. फिर भी यहां परेड निकालने का फ़ैसला लिया गया. वहीं सेंट लुई और मिसौरी राज्यों ने अपने यहां होने वाली परेड रद्द कर दी. और लोगों को जमा होने से रोकने के लिए अन्य क़दम भी उठाए.
नतीजा ये रहा है कि फ़िलाडेल्फ़िया में एक महीने में दस हज़ार से ज़्यादा लोग स्पेनिश फ़्लू की चपेट में आकर मर गए. जबकि सेंट लुई जिसने लोगों को जमा नहीं होने दिया था वहां मरने वालों की संख्या 700 से भी कम रही. यानी सेंट लुईस में लोग सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से बच गए.
इतिहास में इसकी कई मिसालें
न्यूज़ीलैंड में महामारियों और संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ अरिंदम बसु का कहना है कि सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब दो या दो से ज़्यादा लोगों को निजी तौर पर मिलने से रोकना है. और वायरस के फैलने में ये बहुत बड़ी रुकावट का काम करता है. कोविड-19 को रोकने के लिए दुनिया भर में सोशल डिस्टेंसिंग का सहारा लिया जा रहा है.
इतिहास में इसकी कई मिसालें मिलती हैं. 1918 में अमरीका ने भी कई शहरों में सार्वजनिक समारोह पर पाबंदी लगा दी थी. स्कूल, थियेटर, चर्च सब बंद कर दिए थे. पूरी एक सदी बाद दुनिया एक बार फिर उसी दौर से गुज़र रही है. लेकिन इस इस सदी में दुनिया की आबादी उस दौर की आबादी की तुलना में 6 अरब ज़्यादा हो चुकी है.
कोविड-19 भी स्पेनिश फ्लू के वायरस जैसा नहीं है. वैज्ञानिकों के लिए भी ये वायरस रिसर्च का विषय है. फ़िलहाल इस पर क़ाबू पाने का एकमात्र उपाय है-सोशल डिस्टेंसिंग. इसके माध्यम से ही कोविड-19 की इन्फ़ेक्शन चेन तोड़ी जा सकती है.